शायरी

कोई हो न हो तुम हो ना | करन‌‌ मिश्रा | शायरी

जब दिखता नहीं है अपना कोई तो सोचता हूँ तुम हो ना,
जब दुखाता है दिल अपना कोई तो सोचता हूँ तुम हो ना ।
ताश के पत्तों की तरह बिखर जाता हूँ कभी मै भी मगर,
संवर जाता हूँ ये सोचकर कोई हो न हो तुम हो ना ।

Jab dikhata nahi hai apna koi to sochata hun tum ho na,
Jab dukhata hai dil apna koi to sochata hun tum ho na.
Tash ke patto ki tarah bikhar jata hun kabhi mai bhi magar,
Sawar jata hun ye sochkar koi ho na ho tum ho na.

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Karan Mishra

करन मिश्रा को प्रारंभ से ही गीत संगीत में काफी रुचि रही है । आपको शायरी, कविताएं एवं‌‌ गीत लिखने का भी बहुत शौक है । आपको अपने निजी जीवन में मिले अनुभवों के आधार पर प्रेरणादायक विचार एवं कहानियां लिखना काफी पसंद है । करन अपनी कविताओं एवं विचारों के माध्यम से पाठको, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने का प्रयत्न करते हैं ।

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