बेटे की कहानी | अनाथ बच्चे की प्रेरणादायक कहानी

बेटे की प्रेरणादायक कहानी | निसंतान दंपत्ति और अनाथ बच्चे की दिल को छू लेने वाली कहानी | Best Motivational Story of Son in Hindi

Best Motivational Story of Son in Hindi

उदयपुर गांव में मोहन नामक युवक अपनी पत्नी के साथ रहा करता था । शादी के कई साल बीत जाने के बाद भी उनकी कोई संतान नहीं थी तब उन्होंने गांव के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में अपना इलाज कराया परंतु कोई लाभ न‌ होने पर वे गांव से थोड़ी दूर स्थित नदी को पार करके, बड़े शहर इलाज के लिए जाते हैं परंतु इससे भी उन्हें कोई फायदा नहीं होता जिसके कारण वे काफी हताश व निराश हो जाते हैं ।
एक बार जब मोहन अपनी पत्नी की दवाइयां, शहर से लेकर घर लौट रहा था तब उसे नदी किनारे झाड़ियों में एक बच्चे के रोने की आवाज सुनाई देती है । वहां पहुंचकर देखने पर झाड़ियों में एक दूधमुंआ बच्चा भूख से छटपटा रहा है परंतु आश्चर्य की बात ये थी कि वहां दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा । मोहन को उस बच्चे पर दया आ जाती है और वह उसे लेकर अपने घर आ जाता है । बच्चें को देखकर मोहन की पत्नी उमा आश्चर्य भरे अंदाज में कहती है 
“ये किसका बच्चा तुम उठा लाए ? कौन हैं इसके माता-पिता जो अपने रोते बिलखते बच्चे को तुम्हारे पास छोड़ गए ? लाओ इसे मुझे दो”

मैं नहीं जानता कि इस बच्चे के माता पिता कौन हैं । मुझे ये बच्चा नदी किनारे भूख प्यास से तड़पता मिला । यदि में इसे नही लाता तो शायद यह काल का ग्रास बन जाता । हालांकि मैंने वहां बहुत देर तक इसके माता-पिता को ढूंढ़ा परंतु मुझे वहां कोई नहीं मिला तब मैं ये सोचकर कि शायद भगवान ने इसे हमारे लिए ही भेजा होगा । मैं इसे अपने साथ ले आया

बच्चे की करुण पुकार को सुनकर उमा खुद को रोक नहीं पाती । धीरे धीरे बच्चे के प्रति उनका लगाव बढ़ने लगता है । वे उस बच्चे का नाम मोहित रखते हैं । मोहित के पालन पोषण में वे कोई कमी नहीं छोड़ते । उमा और मोहन उस बच्चे में इतना डूब जाते हैं कि उन्हें खुद के बच्चे के बारे में सोचने की फुर्सत नहीं ।
परंतु इस बीच उन्हें हमेशा इस बात की चिंता सताती रहती है कि कहीं गांव वाले किसी दिन उसके बच्चे को ये ना बता दे कि वह उनकी संतान नहीं है । बच्चे के बढ़ने के साथ-साथ उनका यह डर भी बढ़ने लगता है और आखिरकार एक दिन वो उस गांव को ही छोड़कर, दूसरे शहर चले जाते हैं परंतु गांव वालों से उनका पीछा यहां भी नहीं छूटता और कोई न कोई गांव वाला उनसे यहां टकरा ही जाता है । इस प्रकार वह एक शहर से दूसरे शहर बंजारों की भांति भटकते रहते । 
इस बीच उनके आशीर्वाद और अपने अथक प्रयासों के द्वारा मोहित स्टेशन मास्टर की सरकारी नौकरी पाने में सफल रहता है । इस खबर से उमा और मोहन खुशी से फूले नहीं समाते परंतु एक दिन मोहित का ट्रांसफर, मोहन के पैतृक गांव उदयपुर में हो जाता है । इस खबर से उमा और मोहन की रूह कांप जाती है ‌। वे मोहित से वहां न जाकर, अपना ट्रांसफर रुकवाने के लिए कहते हैं परंतु मोहित के लाख प्रयासों के बावजूद उसका ट्रांसफर नहीं रूकता जिसके परिणामस्वरूप मोहन को उसके पैतृक गांव आना पड़ता है । स्टेशन पर रहते हुए मोहित की नज़दीकियां धीरे-धीरे गांव वालों से बढ़ने लगती है ।
एक दिन जब मोहित, स्टेशन पर स्थित गांव के ही लखन चाचा की चाय की दुकान पर अपने वॉलेट से पैसे निकालकर दे रहा था तभी उसकी वॉलेट में लगी उसके माता-पिता की फोटो को लखन देख कर चौक जाता है और कहता है “तो क्या तुम मोहन के बेटे हो ?”
लखन के मुख से, अपने पिता का नाम सुनकर मोहित भी चकित रह जाता है ‌। वह पूछता है “आप मेरे पिता को कैसे जानते हैं ?”

तो क्या मोहन ने तुम्हें नहीं बताया कि वो इसी गांव का रहने वाला है ? अच्छा तो अब समझ में आया कि आखिर तुम्हारे मिलने के बाद उसने ये गांव क्यूं छोड़ दिया ?

(लखन, मोहित से कहता है)
लखन की रहस्यमई बातों को सुनकर मोहित चौक जाता है और उससे सब कुछ साफ-साफ बताने के लिए कहता है परंतु लखन उसे कुछ भी बताने के लिए तैयार नही ।
“आखिर उसके पिता ने उसे उसके गांव के बारे में क्यों नहीं बताया और यहां ऐसा क्या है जिसकी वजह से उसके माता-पिता उसके यहां ट्रांसफर होने पर इतना घबरा रहे थे ?”
स्टेशन से अपने सरकारी आवास पर लौटे मोहित के मन में ये सवाल बार-बार घूम रहा है जिनका जवाब ढूंढने वह गांव में निकल पड़ता है और आखिरकार उसे सारी सच्चाई का पता चल ही जाती है । सच्चाई पता लगते ही वह काम से छुट्टी लेकर फौरन अपने माता पिता के पास पहुंचता है । मोहित को सारी सच्चाई का पता चल चुका है यह जानकर उमा और मोहन का कलेजा हाथ में आ जाता है ।

जब मुझे जन्म देने वाले, मुझे नदी किनारे मरने के लिए छोड़ गए तब आप लोगों को भगवान ने मेरा सगा बनाकर भेजा परंतु आपने ऐसा कैसे सोच लिया कि मैं ये जानने के बाद कि मुझे आप लोगों ने नहीं बल्कि किसी और ने जन्म नही दिया है, मैं आप लोगों को छोड़कर चला जाऊंगा, बेशक आप लोगों ने मुझे जन्म नही दिया परंतु मुझे उंगली पकड़कर चलना आपने ही सिखाया, जीने का सही मार्ग सिखलाया, इस काबिल बनाया कि मैं अपने और पराए एवं सही और गलत में फर्क कर सकूं

मोहित की बातों को सुनकर, आज तक बंजारों की तरह गली-गली भटकने वाले उमा और मोहन फूट-फूट कर रोने लगते हैं । मोहित अपने माता पिता को लेकर गांव वापस लौट आता है ।
दोस्तों सत्य को छुपाने से कोई फायदा है । वह आज नहीं तो कल सामने आ ही जाता है और तब हमें अपने किए पर सिर्फ पछतावा होता है । इससे तो बेहतर है कि हम सदा सच बोलने की हिम्मत करें ऐसा करने से जो हमारा है वो हमारे साथ ही रहेगा और जो नहीं है वो चला भी जाए तो क्या फर्क पड़ता है परंतु ऐसा करके हम अपनों की नजर में निश्चित रूप महान बन सकते हैं ।
महान सिर्फ वो नहीं जिसने हमें जन्म दिया बल्कि महान वो भी है जिसने हमें दुनिया में चलना सिखाया, हमें इस काबिल बनाया कि हम अपने पैरों पर खड़े हो सके ।

author

Karan Mishra

करन मिश्रा को प्रारंभ से ही गीत संगीत में काफी रुचि रही है । आपको शायरी, कविताएं एवं‌‌ गीत लिखने का भी बहुत शौक है । आपको अपने निजी जीवन में मिले अनुभवों के आधार पर प्रेरणादायक विचार एवं कहानियां लिखना काफी पसंद है । करन अपनी कविताओं एवं विचारों के माध्यम से पाठको, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने का प्रयत्न करते हैं ।

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