असफलता ही सफलता की सीढ़ी है – प्रेरणादायक हिंदी कहानी
वसुंधरा के दो बेटे थे जय और विजय दोनों को उसने एक ही दिन जन्म दिया था अर्थात दोनों जुड़वा थे । वसुंधरा ने दोनों का लालन-पालन एक जैसा ही किया । दोनों को समान सुविधाएं दी ।
वही दूसरी तरफ वसुंधरा अपने बेटे को वहां भेज कर माता-पिता की चिंता से मुक्त अवश्य हो गई परंतु अब उसे एक नई चिंता हर पल सता रही थी और वह थी अपने लाल की चिंता । स्कूल से आने के बाद वसुंधरा रोज शाम को विजय को फोन पर बात जरूर करती और हर महीने उससे मिलने जाया करती । विजय के हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी करने के कुछ दिनों बाद ही वृद्ध नानी की मृत्यु हो गई ।
काफी विचार विमर्श के बाद दोनों ने सरकारी जॉब की सोची । इसके लिए दोनों ने कड़ी मेहनत करना शुरू कर दिया । दोनों रात दिन परीक्षाओं की तैयारी में लगे रहे । एक दिन विजय अपने चाचाजी को काफी परेशान देखा असल मे वे अपने दोनों छोटे बच्चो को विजय की तरह पढ़ाई-लिखाई में अव्वल बनाना चाहते ।
अब उन्हें अपनी कक्षा में सबसे ज्यादा नंबर मिल रहे थे । यहां तक कि स्कूल में भी अब उनकी पोजीशन भी आने लगी थी । यह देखकर चाचा-चाची उससे बहुत खुश हुए । जय भी यह कार्य कर सकता था परंतु उसे खुद के सिवा किसी से कोई मतलब नहीं था । वह सिर्फ अपने काम से काम रखने वालों में से था ।
इन सब बातों से खुश होकर दादाजी विजय सौ रूपये महीने के पॉकेट खर्च के लिए देने लगे जबकि जय को जो मिलता था वही मिलता रहा ।
प्रतियोगी परीक्षाओं की लंबी तैयारी के बाद अब समय था दोनों के एग्जाम में बैठने का परीक्षा अच्छे से संपन्न हुई । दोनों को परीक्षा के रिजल्ट के परिणामों से काफी आशा थी ।
इस असफलता का प्रमुख कारण था विजय का सभी को खुश करने में लगे रहना ।
Moral Of The Story
जीवन में ऐसी बहुत सी जिम्मेदारियां हैं जिनको निभाना अति आवश्यक है । जिससे मुंह फेर लेना लगे बिल्कुल भी सही नहीं है परंतु यदि हम सबको खुश करने मे लगे रहेंगे करते तो हो सकता है कि हम जिस लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं उसमें हमें सफलता ना मिले । हमें सबसे ज्यादा अपने लक्ष्य पर फोकस करना चाहिए उसके अतिरिक्त अन्य कही भी विशेष ध्यान नहीं देना चाहिए ।
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