कभी सोचा न था !
आत्मा की बेचैनी ,
यूँ तुझे तड़पाएगी ,
हृदय की जलती अंगीठी ,
ठिठुरते ठंढ़ में ,
हाथ सेंकने के काम आएगी ।
कभी सोचा न था !
मन की यह जलन,
धुआँ बन कर ,
फेफड़ों में भर जाएगी
सांसों की डोर थामे,
जीवन की गाड़ी,
चलते – चलते बस –
यूँ ही ठहर जाएगी ।
कभी सोचा न था !
यादें तेरी धरोहर बन कर ,
मेरे अन्तर में घुल जाएगी ,
और , ये मेरी बेमानी – सी ,
जिन्दगी ! अचानक !
एक कहानी बन जाएगी ।
कभी सोचा न था !
मेरे श्रद्धा और विश्वास के –
जल से सिञ्चित
तेरे सपनों के बाग लहलहायेंगे
,पर अपने ही माली के,
एक स्पर्श की कामना,
कायिक सुख के स्वार्थ की
घोषणा कर जाएगी ,
कभी सोचा न था !!
Writer
यह कविता “डॉ बन्दना पाण्डेय जी” द्वारा रचित है । आप मधुपुर, झारखंड स्थित एम एल जी उच्च विद्यालय, में सहायक शिक्षिका हैं । आपको, कविता, कहानी और संस्मरण के माध्यम से मन की अनुभूतियों को शब्दों में पिरोना बेहद पसंद है । आप द्वारा लिखी गई कहानी कैद से मुक्ति, सो गईं आँखें दास्ताँ कहते कहते , अहंकार या अपनापन व लेख “एक चिट्ठी यह भी” आपके गहरे चिंतन पर आधारित है । अपनी रचना MyNiceLine.com पर साझा करने के लिए हम उनका हृदय से आभार व्यक्त करते हैं!
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