सुशीला एक छोटे से गाँव से थी । वो सिलाई का काम करती, वो ज्यादा पढ़ी लिखी भी नही थी। उसका गुजारा मुश्किल से होता था, सिलाई से भी ज्यादा नही मिलता था, तीन बेटियो की जिम्मेदारी थी उस पर , पति के जाने के बाद सारी जिम्मेदारी अपने कन्धों पर उठा रखी थी ,वह कुछ और काम भी ढुढ रही थी जिससे अपने बच्चो कि परवरीश अच्छे से कर सके, इसबारे मे वो कई लोगो से कह रखी थी। एकदिन चाचा रामलाल आते है
चाचा रामलाल – ” एक काम है काम छोटा ही है “
सुशीला – “कोई बात नही, आप बताईये “
रामलाल – “यही पास के एक बडे आदमी के घर नौकरानी का काम है”
सुशीला- “क्या मिलेगा “
रामलाल- “रहना खाना और पाँच हजार रूपये “
(सुशिला खुश हो गई यहा पर तो तीन हजार में ही सब करना पड़ता हैं, मकान का किराया, खान पीना सब) वह तैयार हो गई,
रामलाल – ” साहब की एक माँ है जिसकी भी देख रेख करनी होगी”
(सुशिला अपनी बेटियो के साथ साहब रमेश सिंह के घर उसके पास जो थोड़ा बहुत सामान था उसे लेकर चल दी, रामलाल पहले सिंह साहब के घर ड्राइवर था अब जब कही जाना होता है तो उसे फोन कर के बुला लेते )
रामलाल ने अपने साहब से सुशीला को मिलवाया , साहब ने रामलाल से पूछा इसे सारा काम समझा दिया है , रामलाल ने हा मे सर हिलाया ,रामलाल ने सुशीला को घर का सारा काम समझा दिया और साहब की माता जी बड़ी मालकिन से भी मिला दिया सुशीला ने भी मालकिन का पैर छु कर उन के दिल मे जगह बना ली, अपने बेड पर बैठे बैठे बहुत सारा आशिर्वाद दिया ,सुशीला ने अपना सामान नौकरो के कमरे रख दिया रूम कि थोड़ी बहुत सफाई करने के बाद शाम के चार बजे साहब के पास चाय लेकर गई , साहब सोफे पर बैठ कर टी वी देख रहे थे , साहब ने पुछा माँ को चाय- दिया सुशीला ने हाँ मे सर हिलाया , साहब ने कहा अपने घर की तरह ही इस की देख रख करो माँ का ख्याल रखो और डर ने की जरूरत नही मुझसे ,आज पहला दिन था, उसके हाव भाव से साहब को पता चल गया था कि वह डर रही है , साहब की बातो से वह थोड़ा निश्चिंत हुई ,शाम के खाने मे क्या बनेगा साहब ने इस की भी छुट दे दी जो वह चाहे बनाये बस माँ को एक बार यह बता दे कि क्या बनाने वाली है ,साहब की भी सेहत ठीक नही रहती थी बीबी के जाने के बाद वह एकदम से टुट गये थे छ: महीने मे सेहत बहुत गिर गई थी
बिमार न होने के बाद भी वह बिमार लग रहे थे रामलाल ने बताया था, सुशीला को कि साहब की बीबी बहुत सुन्दर थी शादी के पहले वह उनकी माँ से बहुत मिठी मिठी बाते करती थी , साहब की माँ को ऐसा लगने लगा था कि बहू के आने के बाद सारे दु:ख दुर हो जायेंगे उनको यह नही पता था कि यह बहू मुँह मे राम बगल मे छुरी रखती है उसे लगा यू बेड पर बैठे-बैठे कुछ नही मिलेगा ,शादी के दुसरे दिन ही उसने अपना रूप दिखा दिया , माँ बेटे में झगड़े कराने के नित नये उपाय करती , साहब को अपनी माँ पर पूरा विश्वास था एक दिन बात इतनी बढ़ गई कि साहब को अपनी माँ और बीबी में किसी एक को चुनना था साहब ने माँ को चुना लेकिन बीबी को भुला नही पाये माँ ने भी बहुत कहा “मेरा क्या है मै कितने दिन की मेहमान हुँ उसी के साथ रह ले” लेकिन साहब का फैसला नही बदला ,
एक दिन साहब ने सुशीला से पूछा “बच्चे स्कूल नही जाते है क्या” , सुशीला ने नही मे सर हिलाया ,साहब ने पूछा क्यों , सुशीला ने बताया कि पिछली साल उनके जाने के बाद स्कूल की फीस नही दे पाई, स्कूल वालो ने फीस बाकी होने के बाद भी पढने दिया ,अभी वही फीस बाकी है इस लिए इन साल नाम नही लिखवाया ,
साहब – ” कल मुझसे पैसे ले कर बच्चों का एडमिशन करा लेना ,
सुशीला – जी साहब
साहब – कितने महीने की फीस बाकी है
सुशीला – जी ग्यारह महीने की
(सुशीला हैरान थी और सोच मे पड़ गई कि क्या कारण है इस एहसान के पीछे , अभी बीस दिन हुए हमे आये , फिर सोचा कोई बात नहीं जो पेमेंट मिलेगा उसी मे से करवाती रहूंगी थोड़ा -थोड़ा , यही सब सोचते सोचते सुशीला सो गयी , वह यह नहीं जानती थी कि साहब की माँ की जो सेवा उसने इन दिनो मे की है उससे उसने साहब का दिल जीत लिया था)
सुबह जब सुशीला किचन मे काम कर रही थी तभी साहब ने उसे बुलाया
सुशीला -” जी साहब
साहब- ( पैसे देते हुए) “जो भी पढ़ाई का खर्च आएगा वह मै दूंगा , तुम पहले जाकर एडमीशन करवाओ और ड्रेस और कॉपी किताब भी ले लेना,”
सुशीला -” ठीक है साहब”
साहब – बच्चे कल से स्कूल जायेगे
(सुशीला घर का काम खत्म कर के स्कूल गई और बच्चो का एडमिशन करा कर घर आ गई , बच्चो ने जब अपनी कापी किताब और ड्रेस देखी तो खुशी मे झुम गये और माँ के सब गले लग गये ,
सुशिला पौधो को पानी दे रही थी , रामलाल को साहब ने बुलाया था
रामलाल – “कैसी है सुशीला”
सुशीला-“ठीक हुँ ,चाचा जी आप कैसे है “
रामलाल – “ठीक हुँ भगवान की कृपा है , आज बच्चो को स्कूल जाते देखा बहुत खुशी हुई “
सुशीला – “ये सब साहब कि मेहरबानी है, एडमिशन के पैसे साहब ने ही दिया” ,
रामलाल – “साहब बहुत अच्छे आदमी है , साहब से दो दिन पहले मुलाकात हुई थी साहब बहुत खुश थे, तुम लोगो ने उनकी माँ की जो देखभाल की उसकी बहुत तारीफ कर रहे थे , उन्होंने कहा रामलाल पहले घर मे सिर्फ हम माँ बेटे थे तो घर बहुत सुना सुना लगता था सुशीला और बच्चों ने घर को घर बना दिया”
( साहब के आते ही रामलाल उनके साथ चले गये , सुशीला सोचने लगी कि कैसे कोई औरत आते ही बेटे को उसके परिवार से अलग करने की सोच सकती है
साहब के घर काम करते दो साल हो गया था एक दिन
साहब की माँ – सुशीला तुम से एक बात करनी है
सुशीला -” कहीये माँ जी”
साहब की माँ – “मेरी बहू के जाने के बाद मैं और मेरा बेटा दोनो एक दम से टूट गये थे तुम्हारे और बच्चो के आने से हम दोनो ने एक नई जिन्दगी शुरू की है , मेरा बेटा भी तुम्हारी बच्चो का बहुत ख्याल रखता है तुमने मेरी बहू न होते हुए भी बहू का सुख दिया है ( थोड़ी हिचकते हुई ) मैं सोच रही थी तुम इस घर की बहू बन जाओ
सुशील -“माँ जी , मै तीन बेटीयो की माँ हुँ ,और एक विधवा हुँ मै ऐसा सोचा भी नही सकती “,
साहब की माँ – “मैने तुम से ज्यादा दुनिया देखी है बेटी अकेले जीना बहुत मुश्किल है ,मेरे बेटे मे कोई कमी हो तो बताओ अगर ऐसा नही है तो ना न कहो”
सुशीला बिना कुछ कहे चली गई ,बहुत सोचा तीन बेटीयो की जिम्मेदारी निभाने के लिए उसे किसी का साथ लेना चाहिए क्या यह सही होगा ,क्या यह उसके पति श्याम के साथ बेवफाई नही होगी , बच्चो के भविष्य को देखते हुए वह माँ जी की बहू बन गई , आज उसका बेटा भी है , रमेश सबका बहुत ख्याल रखता है माँ जी बहुत खुश है।
Writer
Prabhakar
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