बहुत समय पहले एक लकड़ी व्यापारी के तीन लड़के थे। व्यापारी खुद तो पढ़ा लिखा नहीं था। मगर वह अपने तीनों बच्चों को शिक्षित करना चाहता था। क्योंकि शायद उसने अशिक्षा का दंश झेला था।
इसलिए वह अपने तीनों बच्चों को पढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास करता। वह खुद तो काम करने के बाद काफी लेट से सोता। मगर अपने तीनों बच्चों को पढ़ाने के लिए खुद सुबह चार बजे ही उठ जाता। फिर तीनों बच्चों को बड़े ही प्रेम से जगाता, और लैम्प जला कर उन्हें पढ़ने को कहता।
व्यापारी के दो बच्चे पिता के रहने तक तो पढ़ने का दिखावा करते परंतु पिता के जाते ही खराब रोशनी को वजह बताकर पुनः सो जाते, वही तीसरा बेटा लैम्प की रोशनी में पढ़ता रहता। वह शाम को अंधेरा होने पर स्वयं लैंप जलाकर पढता। परंतु दोनों भाई शाम को पिता के न होने के कारण खराब रोशनी की बात कहकर सिर्फ मौज मस्ती करते।
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तीसरा भाई उन्हें समझाता पिता की उम्मीदों को उन्हें याद दिलाता तो दोनों भाई उस पर गुस्सा हो जाते। देखते ही देखते समय गुजरा और जनवरी का महीना आ गया। अब तो ठंड भी काफी पड़ने लगी, और फरवरी के आखिरी सप्ताह में परीक्षाएं भी होने वाली थी।
मगर दोनों भाई अत्यधिक ठंड के कारण दिक्कत की बात कह कर अपनी-अपनी रजाईयो में घुस जाते। वही सबसे छोटा भाई छोटी छोटी लकड़ियों और बाग से सूखे पत्तों को इकट्ठा करता और फिर उन्हें लाकर जलाता। फिर उस आग के पास बैठ कर वहीं पढ़ाई करता। वह वहां अपने दोनों भाइयों को भी बुलाता मगर वो फिर अत्यधिक ठंड की बात कह कर रजाई मे ही पड़े रहते।
वक्त के साथ इग्जाम का दिन भी आ गया। तीनों भाइयों ने परीक्षा दी। जब परिणाम आया तो दोनों बड़े भाई असफल रहे, जबकि तीसरे ने बड़ी सफलता हासिल की।
Moralof the story
परिस्थितियां चाहे जैसी भी हो, सफलता के अवसर हमेशा रहते हैं। असफल लोग हमेशा परिस्थितियों को ही दोष देते रहते हैं। जबकि सफल लोग विषम परिस्थितियों में भी निरंतर प्रयासरत रहकर अपने सफल होने का मार्ग प्रशस्त करते हैं !
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