मेरी मम्मा भी सो गई, मेरे पापा भी सो गए जिसने चलना सिखाया था कहा जाने वो खो गए

मेरी मम्मा भी सो गई, मेरे पापा भी सो गए । करन मिश्रा | शायरी

मेरी मम्मा भी सो गई, मेरे पापा भी सो गए
जिसने चलना सिखाया था कहा जाने वो खो गए

कभी जो लड़खडाया मै तो उसने ही सम्भाला था
मेरी गीली सी आखों को, उसने हसना सिखाया था,
न कोई आरजू है अब, न कोई अरमान बाकी है,
मै जिन्दा हूँ यहाँ लेकिन न मुझमें जान बाकी है,
मेरे अपनो के संग मेरे सभी सपने भी सो गए
जिसने चलना सिखाया था कहा जाने वो खो गए…

जो आते वो कभी ख्वाबों में, तो मैं पूछता उनसे
जो लाए थे हमें तुम साथ, तो क्युं ना साथ ले गए
तुम्हारे बिन मुझे अब सारी खुशियां फीकी लगती है
तुम्हारे बिन मुझे ये घर ये गलियां सुनी लगती है
मेरे जीने की हर एक वजह वो साथ ले गए,
जिसने चलना सिखाया था कहा जाने वो खो गए

मेरी मम्मा भी सो गई, मेरे पापा भी सो गए
जिसने चलना सिखाया था कहा जाने वो खो गए।

मेरी मम्मा भी सो गई, मेरे पापा भी सो गए
जिसने चलना सिखाया था कहा जाने वो खो गए



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Karan Mishra

करन मिश्रा को प्रारंभ से ही गीत संगीत में काफी रुचि रही है । आपको शायरी, कविताएं एवं‌‌ गीत लिखने का भी बहुत शौक है । आपको अपने निजी जीवन में मिले अनुभवों के आधार पर प्रेरणादायक विचार एवं कहानियां लिखना काफी पसंद है । करन अपनी कविताओं एवं विचारों के माध्यम से पाठको, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने का प्रयत्न करते हैं ।

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