मीना की कहानी | मीना और राजू की प्रेरणादायक कहानी

मीना की प्रेरणादायक कहानी | मीना और राजू की कहानी | Short Inspiring story of meena in Hindi | समझदार मीना की सीख- अपनो को जाने, उनसे करें बात, दें वक्त

Short Inspirational Hindi Story of Meena

“आओगे बेटा, पिछली बार भी नहीं आए, दिवाली पर हम तुम्हारी राह ही देखते रह गए”
“तुम तो जानती ही हो मां, आने जाने में कितना वक्त लगता है । उसके बाद कंपनी का प्रेशर और फिर बच्चों की भी पढ़ाई डिस्टर्ब होती है”
(राजू  फोन पर अपनी मां से कहता है)
मां “जानती हूं बेटा पर क्या करूं तुम्हारे बाबा नहीं समझते । वो तो पूरे साल बस दीपावली का ही वेट करते रहते हैं तुम्हें एक झलक देखने की चाह में, चलो ठीक है मैं उन्हें समझा लूंगी”
राजू  “ओके मां, मैं कोशिश करूंगा”
संडे का दिन है राजू  सुबह से ही t20 मैच के शुरू होने का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहा है । थोड़ी देर में मैच शुरू हो जाता है परंतु तभी राजू  का फोन बजता है ।
“कौन है मीना ?”
(राजू  अपनी पत्नी मीना से कहता है)
मीना “मां का फोन है”

अभी कल ही तो इतनी देर तक बात हुई थी । भला अब कौन सी बात बाकी रह गई । मीना अभी तुम फोन पिक कर लो मैं बाद में बात कर लूंगा

(राजू , मीना से कहता है)
राजू  मुंबई के एक स्थानीय न्यूज़ चैनल में जनरलिस्ट है इसके साथ-साथ वह अपनी छोटी-छोटी टेलीफिल्म्स के माध्यम से समाज के दबे कुचले लोगों के दुख दर्द को  सामने लाने का काम भी करता है ।
मीना को राजू  की बनाई टेलीफिल्म्स बहुत पसंद आती है । संजोगवश आज उसकी ऐसी ही एक टेलिफिल्म, एक स्थानीय न्यूज़ चैनल पर रिलीज होने जा रही है । मीना घर के सारे काम निपटाकर बड़े इत्मीनान से फिल्म देखने बैठ जाती है ।

वह बड़े ही मन से टेलीफिल्म देख रही है । आधे घंटे की टेलीफिल्म में लगभग 25 मिनट का समय खत्म हो चुका है और बचे हुए आखिरी 5 मिनट में हर बार की तरह इस बार भी राजू  उपस्थित होकर फिल्म से रिलेटेड कुछ रोचक बातें दर्शको से साझा करने टीवी स्क्रीन पर आता है परंतु उसके स्क्रीन पर आते ही, मीना चैनल बदल देती है जिसे देखकर राजू  चौक जाता है और कहता है ।

“तुमने, चैनल क्यों बदल दिया ?”
मीना “तो क्या तुम्हारी बकबक सुनु”

25 मिनट की फिल्म देखने में तुम जरा भी बोर नहीं हुई मगर उस फिल्म को बनाने के पीछे जिसने दिन रात कड़ी मेहनत की है उसे 2 मिनट सुनने का भी तुम्हारे पास वक्त नहीं है । उसकी बाते तुम्हे बकबक लग रही हैं

(राजू , मीना से कहता है)
“हां, पर ये तो जमाने की रीत है, लोग आम का मजा लेते हैं उसे लगाने वाला कौन था ? उसे इतना बड़ा किसने किया ? यह भला कौन जानना चाहता है और फिर ये तुम कह रहे हो”
(मीना, राजू  से कहती है)
राजू  “तुम कहना क्या चाहती हो ?”

तुम अपनी कुछ दिनो की मेहनत में, इस 30 मिनट की टेलीफिल्म को बनाकर ये चाहते हो कि लोग तुम्हे सुने  तुम्हारे बारे में जाने, मगर जिसने तुम्हारे उज्ज्वल भविष्य की खातिर अपनी पूरी जिंदगी लगा दी उन्हें सुनने, उनको जानने का तुम्हारे पास वक्त ही नहीं । तुम्हे पाल-पोस कर जिसने इतना बड़ा किया, तुम्हे इस लायक बनाया कि तुम अपने पैरो पर खड़े हो सको, वो कैसे हैं, आज का दिन उनका कैसा बिता, इन सबमे तुमको कोई इंटरेस्ट नही है । तुम्हे तो उनसे फोन पर बात करने तक की फुर्सत नहीं है । उनसे मिले हुए तो तुमको जमाने हुए ।

(मीना, राजू  से कहती है)
मीना की बातो ने राजू  को अपनी ग़लतियों का एहसास करा दिया है । वह अपने मां-बाबा से मिलने के लिए टिकट बुक कर रहा है ।

मीना की कहानी से शिक्षा 

दोस्तों लोग अपने 2-4 घंटो की मेहनत में एक 5 मिनट का वीडियो बना लेते हैं और फिर चाहते हैं उसे देखने वाले वीडियो को लाइक करें, शेयर करें और उसपर एक अच्छा सा कमेंट भी करें । मगर जिसने हमारा भविष्य सवारने में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी । उसके लिए क्या आपने कभी कोई छोटा सा भी कमेंट किया है अगर नहीं किया है तो आज जरूर करें क्योंकि शायद उसे भी आपसे कुछ ऐसी ही उम्मीद है !

author

Karan Mishra

करन मिश्रा को प्रारंभ से ही गीत संगीत में काफी रुचि रही है । आपको शायरी, कविताएं एवं‌‌ गीत लिखने का भी बहुत शौक है । आपको अपने निजी जीवन में मिले अनुभवों के आधार पर प्रेरणादायक विचार एवं कहानियां लिखना काफी पसंद है । करन अपनी कविताओं एवं विचारों के माध्यम से पाठको, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने का प्रयत्न करते हैं ।

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