अखबार पढ़ते हुए विष्णु ने सुनंदा को आवाज लगाई और बोले
“अरे भाई सुनंदा सुनती हो आओ जरा यहां तुम्हें एक खबर सुनाता हूँ”
सुनंदा
“क्या है वहीं से बताइए ना मैं किचन का कुछ जरूरी काम कर रही हूँ “
“क्या है वहीं से बताइए ना मैं किचन का कुछ जरूरी काम कर रही हूँ “
विष्णु
“अरे काम तो तुम रोज ही करती रहती हो जरा दो मिनट सुन लोगी तो क्या बिगड़ जाएगा”
सुनंदा
“अरे काम तो तुम रोज ही करती रहती हो जरा दो मिनट सुन लोगी तो क्या बिगड़ जाएगा”
सुनंदा
“अच्छा आती हूँ”
सुनंदा विष्णु के पास आकर सोफे पर बैठ जाती है तब विष्णु उसे बताते हैं कि
सुनंदा विष्णु के पास आकर सोफे पर बैठ जाती है तब विष्णु उसे बताते हैं कि
“देखो अखबार (newspaper) में कैसी खबर छपी है आजकल कुछ लोग रिश्तेदार बनकर घर में आते हैं और फिर सब कुछ लूट कर चले जाते हैं । उनसे जरा सावधान रहने की जरूरत है । चूंकि बहू अक्सर घर में अकेले ही रहती है इसलिए तुम उसे भी ठीक से समझा देना कि किसी भी अजनबी पर भरोसा करने की जरूरत नहीं है”
थोड़ी ही देर बाद विष्णु कपड़े पहन कर बाजार (market) को निकलते हैं और कहते हैं ।
“सुनंदा कुछ मंगाना हो तो बता दो मैं बाजार जा रहा हूं वहां से लेता आऊंगा”
सुनंदा “नहीं नहीं जी कुछ नहीं मंगाना, सब हो गया है”
विष्णु “अरे भाई तीन बजे की ट्रेन है ऐसा न हो कि कुछ छूट जाए”
सुनंदा “नहीं नहीं कुछ नहीं छूटेगा सब पहले से मंगा कर रख लिया है पैकिंग हो गई है बस चलना ही है “
आज दोपहर के तीन बजे विष्णु और सुनंदा तीर्थ यात्रा पर जा रहे हैं । जाते-जाते सुनंदा अपनी बहू कृष्णा को किसी भी अजनबी (stranger) को घर में न आने देने की हिदायत (warning) देते हुए चली जाती है । शाम के लगभग चार बज चुके हैं । कोई डोर बेल बजा रहा है । घर में बहू कृष्णा अकेली है वह दरवाजा खोलती है तो सामने एक बुजुर्ग कुछ अजीबोगरीब हालत मे खड़ा हैं । वह बताते है कि वह उसके पति के चाचा जी हैं और उनसे मिलने आए हैं । बेचारी कृष्णा बड़ी दुविधा में फंस जाती है । अब वह करे तो क्या करें क्योंकि आज ही ऐसे रिश्तेदारों (relationships) के बारे में पेपर में छपा हुआ है । जो खुद को आपका रिश्तेदार बता कर घर में घुस आते हैं और फिर घर लूटकर चले जाते है ।
कृष्णा के पास दो ही रास्ते हैं या तो वह अपने पति के तथाकथित चाचा जी को घर के अंदर प्रवेश कराएं या फिर उन्हें शाम को अपने पति के आने के बाद आने को कहे मगर चाचा जी काफी क्रोध (angry) वाले नजर आ रहे हैं । कहीं ऐसा न हो कि वह वाकई में कृष्णा के पति मणिशंकर के चाचाजी ही हो और उसके ऐसे व्यवहार से नाराज हो जाएं और दोबारा फिर वहां कभी न आए परंतु ऐसे शख्स (person) को जिसे वह तनिक भी पहचानती नहीं, उसे घर में लाना भी ठीक नहीं है काफी देर तक कृष्णा इन्हीं सब सवालों में उलझी रहती है तभी चाचा जी बोल उठते हैं
“क्या हुआ बेटा ? क्या तुम मुझे बाहर ही खड़ा रखोगी अंदर नहीं बुलाओगी वैसे ये सही भी है तुम मुझे क्यो पहचानोगी मै तो तुम्हारी शादी में भी नही आ सका था । अब फुर्सत मिली है तो सोचा बहू और बेटे से मिल लू”
कृष्णा एक बार फिर सोच में पड़ जाती है मगर उसके पास फैसला लेने के लिए भी ज्यादा समय नहीं है । अगले कुछ ही पलों (some time) में उसे कोई न कोई फैसला लेना ही पड़ेगा कृष्णा के ऊपर उसके संस्कार हावी हो जाते हैं और वह चाचा जी को घर के अंदर दाखिल होने को कहती है हालांकि चाचाजी की रहस्यमई नजर घर में घुसते ही इधर-उधर देखना शुरु कर देती हैं वो कहते हैं घर तो बड़ा सुंदर (very beautiful) तुमने काफी साफ सुथरा रखा है । परंतु थोड़ी और सफाई (clean) की जरूरत है । कृष्णा कहती है
“जी चाचा जी आइए बैठिए मैं आपके लिए कुछ चाय नाश्ता लाती हूँ “
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कृष्णा चाय नाश्ता लेने चली जाती है तभी चाचा जी उठकर घर में इधर-उधर घूमने लगते हैं । कृष्णा अंदर से काफी डरी हुई है और वह जैसे ही ड्राइंग रूम में चाचा जी को चाय नाश्ता देने जाती है । अचानक चाचा जी वहां से गायब (missing) है वह बिल्कुल घबरा जाती है । उसके पसीने छूटने लगते हैं तभी सामने टॉयलेट से चाचाजी बाहर निकलते हैं । उन्हें देखकर कृष्णा की जान में जान आती है । डरी हुई कृष्णा को देखकर चाचा जी (uncle) कहते हैं ।
“क्या हुआ बेटा तुम डर क्यों रही हो कोई बात है क्या ? किससे डर रही हो मुझे बताओ ?
कृष्णा कहती है
“नहीं नहीं चाचा जी ऐसी कोई बात नहीं है”
दोपहर (afternoon) से शाम हो जाती है और कृष्णा का पति मणिशंकर भी घर आ जाता है । उस समय चाचा जी बड़े ही आराम से सोफे पर पड़े सो (sleep) रहे हैं कृष्णा पति को सारी बात बताती है। मणिशंकर चाचा जी को बिल्कुल (difficulty) भी नहीं पहचान रहा है । रात को चाचा जी जब मणिशंकर के साथ डाइनिंग टेबल पर बैठे डिनर कर रहे थे तब मणिशंकर उनसे पूछता है ।
“माफ करिए चाचाजी मगर मैं आपको पहचान नहीं रहा हूं आपने कृष्णा को बताया कि आप मेरे चाचा जी है और शादी (marriage) में आप नहीं आ सकते थे मगर चाचा जी मैं आपको बिल्कुल भी नहीं पहचान रहा हूँ कृपया आप अपने बारे में कुछ बताएं”
चाचा जी चेहरे पर एक कातिलाना मुस्कान लिए हुए कहते हैं
“नहीं नहीं बेटा इसमें नाराज (angry) होने वाली कोई बात नहीं । मैं तो तुमसे तब मिला था, जब तुम बहुत छोटे थे उसके बाद से तो मेरी तुमसे कभी मुलाकात हुई ही नही तो भला तुम मुझे कैसे पहचानोगे । हालांकि बीच-बीच में एक आद बार यहां आता जाता रहा हूँ परंतु संजोगवश, तब तुम घर पर नहीं रहे होगे इसलिए हमारी तुम्हारी कभी मुलाकात नहीं हुई”
मणिशंकर हैरान हैं मगर वह भी उसी दुविधा (doubt) में पड़ा हुआ है जिसमें कृष्णा पड़ी है ऐसे में वह भी चाचा जी के बारे में कोई राय (advice) नहीं बना पा रहा है । ऐसे में न कुछ कहते बन रहा है न चुप ही रहते बन रहा है बड़ी असमंजस (suspense) की घड़ी है । मणिशंकर घुमा-घुमा के चाचा जी के बारे में जानकारी इकट्ठा करना चाहता है मगर वह जितना भी चाचा जी के बारे में ज्ञान प्राप्त करता है वह उतनी ही अबूझ पहेली बनते चले जाते हैं ।
डिनर के बाद सब अपने-अपने कमरे में सोने तो चले जाते हैं । मगर कृष्णा और मणिशंकर को पूरी रात नींद नहीं आती है । रात (night) को जब कुछ खटकने की हल्की सी भी आवाज (voice) होती तो वे दोनों हाथों में डंडा लिए, पैरो को दबाए कमरे से बाहर आते हैं और फिर सबसे पहले वे चाचा जी की कमरे में झांककर देखते हैं कि चाचा जी वहां हैं या नहीं फिर वे लौट कर अपने कीमती सामानों को निहारते हैं की कहीं इसमें से कुछ कम तो नहीं हुआ । इसी तरह जगराता करते हुए उनकी पूरी रात गुजर जाती है ।
सुबह चाचाजी उठकर सोफे पर पेपर पढ़ (read) रहे हैं । कृष्णा उनके लिए चाय (tea) लाती है । उसकी आंखें (eye) रात भर न सो पाने की वजह से एकदम लाल हैं । चाचा जी उसकी आंखों को देखकर कहते हैं ।
“क्या हुआ बेटा काफी थकी-थकी सी नजर आ रही हो रात भर सोई नहीं क्या ?”
तब कृष्णा करती है
“नहीं नहीं चाचा जी ऐसी कोई बात नहीं है”
सुबह (morning) के नौ बज रहे हैं मणिशंकर के ऑफिस जाने का वक्त हो जाता है वैसे तो वह घर अकेला छोड़कर जाना तो नहीं चाहता मगर कंपनी (company) का काफी ज्यादा प्रेशर है तभी कृष्णा उसका हाथ पकड़ लेती है । उसके हाथ कांप रहे हैं वह काफी डरी-डरी (fear) सी है । मणिशंकर उसके मन की स्थिति को समझ (understand) रहा है ऐसे मे वह एकबार फिर बहुत बड़ी दुविधा में पड़ जाता है कि वह घर रहे या ऑफिस जाए ।
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इन्हीं सब सवालों में उसे काफी लेट हो जाता है और वह फिलहाल घर पर ही रूकने का निर्णय लेता है । धीरे-धीरे दो दिन गुजर जाते हैं । अब तो ऑफिस (office) वाले भी लगातार फोन (phone) पर फोन किए जा रहे हैं । मणिशंकर को कुछ सूझ नहीं रहा है । इधर चाचा जी भी जाने का नाम नहीं ले रहे हैं । तभी विष्णु और सुनंदा का तीर्थ यात्रा से लौटना होता हैं । वापस आते ही उन्हें तथाकथित चाचाजी के बारे में पता चलता है । सुनंदा और विष्णु बताते हैं कि
“ऐसे तो कोई चाचाजी उनके नहीं हैं”
मणिशंकर और कृष्णा उनके मुहँ से यह सब सुनकर चाचाजी पर भड़क (angry) जाते हैं । चारों फौरन चाचा जी के पास पहुंचते हैं और पूछते हैं ।
“सच-सच बताओ आप कौन हो”
तब चाचा जी कहते हैं
“अरे भाई मैंने बताया न मैं आपका चाचा हूँ”
तब विष्णु और सुनंदा उसके उपर बरस पड़ते हैं वे कहते हैं कि
“तुम इन बच्चों को बेवकूफ बना सकते हो मगर हमें नहीं अब या तो सच (true) बताओ नही तो हम पुलिस बुलाते हैं । तुम्हारे जैसे लोग के बारे में हमने अखबार में पढ़ रखा है तुम बहरूपिए चाचाजी बन कर इस घर में आ तो सकते हो मगर अब यहां से जा नहीं पाओगे”
तभी एक बार फिर से डोर बेल बजती है । दरवाजे पर पुलिस खड़ी है । पुलिस के साथ कुछ और लोग भी हैं वे बताते हैं कि
“वो किसी पागल खाने से आए हैं और ये चाचा जी भी वहीं से भागकर आए हैं ये मौका पाकर पागलखाने से अक्सर भाग जाते हैं और फिर किसी के भी घर उसका चाचाजी बताकर वहां रहने की कोशिश (try) करने लगते हैं हालांकि ये कोई चोर उचक्के नहीं है बल्कि जब तक वे वहां रहते हैं तब तक उस घर का और घरवालों का पूरा ख्याल (care) रखते हैं”
यह सुनकर विष्णु, सुनंदा, कृष्णा और मणिशंकर अंदर ही अंदर खुद को काफी शर्मिंदा महसूस करते हैं । वह हाथ जोड़कर चाचा जी से माफी मांगते हैं परंतु तभी चाचा जी को पागलखाने के वार्ड बॉय खींच कर ले जा रहे हैं वे वार्ड बॉय को रोकते हैं और चाचाजी से कहते हैं ।
“माफ करिए हमने आपको पहचानने में भूल की मगर कोई बात नहीं हम आपसे समय-समय पर वहां मिलने आया करेंगे”
कहानी से शिक्षा | Moral Of This Best Inspirational Story In Hindi
किसी भी अनजान शख्स के बारे में पूरी जानकारी इकट्ठा करने से पहले उसे घर में दाखिल ना होने दें !
पहली नजर का धोखा यह कोई आम बात नहीं है अक्सर हमें पहली नजर में जो शख्स जैसा दिखाई देता है वह वाकई में वैसा ही हो यह कोई जरूरी नहीं इसीलिए किसी के विषय में कोई भी राय बनाने से पहले उसे थोड़ा समझना आवश्यक है !