अहंकार या अपनापन | चिड़िया की कहानी

अहंकार या अपनापन chidiya ki kahani

  आचार्य  हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का एक संस्मरण पढ़ा था “एक कुत्ता और एक मैना “ गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के शांतिनिकेतन का वर्णन था ।मैं सोच में पड़ गई थी क्या पशु-पक्षियों के साथ ऐसा रागात्मक संबंध भी हो सकता है कि हम उनके जीवन की कहानी को समझ पाएं? क्या उनसे हमारा जुड़ाव ऐसा भी हो सकता है कि हमारे जीवन की खुशियाँ हमारे गम उनसे जुड़ जाएँ?

 –समय पंख लगा कर उड़ता रहा,बचपन की जिज्ञासा मन के किसी कोने में गुम सी हो गई ।
  आज एक अर्से बाद मैं अपने बालपन की सखी रागिनी  से मिल रही थी । रागिनी के जीवन का संघर्ष काफी लम्बा था । पति बहुत पहले ही दो बच्चों विनय और विनीता की जिम्मेदारी रागिनी पर छोड़कर चले गए थे । रागिनी ने एक एक कर सारे फ़र्ज निभाए ।अब बच्चे बड़े हो गए थे और चाहते थे कि रागिनी उनके साथ उनके घर में रहे पर रागिनी ने भी स्पष्ट कर दिया कि वह यहीं अपने छोटे से घर में रहेगी पति की यादों के साथ ।
  बच्चे भी चले गए, अब कभी-कभार फुर्सत निकाल कर माँ से बातें कर लिया करते हैं । रागिनी प्रकृति के गोद में बसे एक छोटे से गाँव के छोटे से घर में  बहुत खुश रहती । मैंने नोटिस किया उसके ढेर सारे दोस्त हैं गौरैया, गिलहरियाँ, उसने एक पामेलियन भी पाल रखा था ।

  मैं स्नान घर में थी – बाहर से बच्चे को डांटने की आवाज़ आ रही थी – ‘एक दिन बासी रोटी नहीं खा सकता, जिद्दी‘ मुझे लगा आसपास का कोई बच्चा होगा । बाहर निकलकर देखा तो उसका कुत्ता उसके पैरों के पास बैठा पूँछ हिला रहा था और वह गर्म रोटियाँ सेंक रही थी ।
  मेरे होठों पर अनायास एक मुस्कान बिखर गई । मुझे अचानक बचपन की गुमी हुई कहानी याद आ गयी और अब रागिनी और उसके दोस्तों के बीच मैं भी आनंद लेने लगी । जो संस्मरण मुझे कभी कल्पना की उड़ान प्रतीत होता था आज रागिनी उस कथा को जी रही थी ।
  सुबह उठकर रागिनी आँगन को साफ कर चावल के दाने बिखेरते हुए कह रही थी – ‘अभी आ जाएंगी सब और दाने नहीं रहे तो चिल्लाएंगी ‘ फिर कुछ रोटी के टुकड़े लिए उसे एक प्लेट में तोड़ कर डाल दिया । मेरे आँखों में प्रश्न देख उसने मुस्कुराते हुए कहा-ये गिलहरियों के लिए है । फिर तीन चार कटोरों में अलग-अलग जगहों पर पानी रखा ।
  मैंने देखा सूरज की पहली किरण के साथ आँगन गौरैयों के कलरव से भर गया । हम वहीं बरामदे में बैठे चाय पी रहे थे तभी एक छोटी सी चिड़िया फुदकती हुई आई, उससे कुछ कहा और उड़ गई। रागिनी उठी रसोई में गई और जब लौटी तो उसकी मुट्ठी में चावल के दाने थे , मेरी नजर आँगन में बिखरे चावल के दानों की ओर गई वहाँ दाने खत्म हो गए थे । मेरे होठों पर पुनः मुस्कान ने आकर कहा- देख तेरी सखी कैसे उस दुनिया में जी रही है जिसे तूने कल्पना समझा था ।
  मेरे मन में रागिनी के अकेलेपन को लेकर जो एक डर था वह डर धीरे-धीरे खत्म होने लगा था । मैं देख रही थी रागिनी को, बचपन में दादी की कही बात याद आ रही थी- ‘जिस घर में गौरैया चहकती है उस घर में खुशियाँ भी चहकती रहती हैं ।‘ वापसी में मेरा मन शांत एवं हल्का सा था ।

———-
  अगली गर्मी की छुट्टियों का इंतजार था जब मैं पुनः उस नैसर्गिक प्रेम के दर्शन कर पाऊँगी । समय जाते देर नहीं लगती मैं फिर अपने सखी के घर की घंटी बजा रही थी, तभी एक मैना चिचियाती हुई मेरे सिर के उपर से गुजरी, मैं हड़बड़ाकर झुक गई थी । तभी रागिनी प्रकट हुई तो मेरे मुख से अनायास ही एक शिकायत सी निकल गई—रागी अब तूने ये क्या बला पाल रखी है और हम दोनों ही हँसते हुए घर में घुस गए ।
  रागिनी चाय बना लाई कप लेकर मैं बरामदे की ओर बढ़ी तो रागिनी का उदास स्वर मेरे कानों से टकराया ‘आ यहीं बैठते हैं’ । फिर मुझे याद आया आँगन में चावल के दाने नहीं बिखरे थे कहीँ, मैं पूछ बैठी तेरी सहेलियाँ कहाँ चली गईं उनकी आवाज़ सुनाई नहीं दे रही । ऐसा लगा जैसे मैंने उसकी दुखती रग को छू दिया हो ।उसने जो कहानी बताई सुनकर मैं हतप्रभ रह गई- रागिनी बोलती जा रही थी मैं उसके हाथों को पकड़े कहानी सुन रही थी। हाँ ! कहानी जैसी ही तो थीं उसकी बातें । हमारी लेटेस्ट (नई) कहानियों को, Email मे प्राप्त करें. It’s Free !
  “क्या कहूँ एक दिन यह मैना आई और बरामदे के वेन्टिलेटर में घर बना लिया मैं बहुत खुश थी नये सदस्य के जुड़ने से । वह तिनका-तिनका जोड़कर आशियाना बना रही थी मैं भी उसे देख देखकर पुलकित हो रही थी । घर का माहौल धीरे-धीरे बदल रहा था । एक छोटी चिड़िया ने कुछ कहना चाहा पर मैं ही टाल गई, मुझे लगा नये सदस्य को एडजस्ट करने में थोड़ा समय तो लगेगा ही । दोनों की अपनी अपनी जगह है फिर एक दूसरे से बैर कैसा? परंतु अब गौरैयों की चहचहाट कम होती जा रही थी ।अब तो उन सबने मैना की शिकायत करना भी छोड़ दिया था ।एक दिन मैना के घोसले से बच्चों के चहचहाने की आवाज सुनाई दी, उत्सुकतावश मैंने उचक कर देखना चाहा तो उसने मेरे सिर पर जोर से चोंच मार दिया । मैं परे हट गई पर वह एक ऐसा पल था जब से मैंने उसके व्यवहार पर ध्यान देना शुरू किया था ।
  मैंने देखा आँगन में जब गौरैयों का झुंड खुशी से चहचहा रहा होता तो मैना उनके बीच जाकर बैठ जाती उन्हें अपनी उपस्थिति की दावेदारी पेश करती, बीच-बीच में उन्हें चोंच मारती, कभी उनपर चिल्लाते हुए जोर से गोल उड़ती और अपनी चोंच से गिलहरियों के उपर भी प्रहार करती । मैंने इसे सुधारने का बहुत प्रयास किया, तो मुझे ही चोंच मारती है । मैं भी क्या करती छोड़ दिया सबको अपने हाल पर । धीरे-धीरे गौरैयों की संख्या घटने लगी, गिलहरियों ने भी किनारा कर लिया और देख न -अब तो दिनभर यही चिचियाती रहती है, पहले चिड़ियों को तंग करती थी अब पति से ही लड़ती रहती है । हर आने-जाने वाले को अविश्वास की नजर से देखती है । इसके छोटे छोटे बच्चों की मासूमियत बांध लेती है । वरना इसने तो ऐसा माहौल बना रखा है कि सबने इधर आना ही छोड़ दिया है ।
  मैं आवाक् सी रागिनी का मुँह ताक रही थी,  जो दर्द की किताब बना हुआ था, जिसके हर लफ्ज़ में दर्द टपक रहा था । मैना की बेवकूफी से भरे अहं और ईर्ष्या ने रागिनी के मन की शांति ही छीन ली थी । मैं क्षणभर के लिए यह सोचने पर मजबूर हो गई कि यह कहानी है या सत्य है ! कहीं  ये अपने बच्चों की बात तो नहीं बता रही ! और मैं पूछ ही बैठी – रागी बच्चे कैसे हैं ? कहाँ हैं  ? सब ठीक तो हैं न ? उसका ध्यान भी भंग हुआ और हम दोनों ही हँस पड़े  । उसने कहा अरे ! वो सब तो ठीक हैं । मैं सोचती रह गई कैसा लगाव है उसका इन परिंदों से  , जो उसके हृदय को उद्द्वेलित कर रहा है ।

———-
  सच ! यदि हमारे हृदय में प्रेम और अपनापन हो तो अपनों की कमी नहीं  होती । पशु – पक्षी भी प्रेम और अपनेपन की तलाश में ही भटकते रहते हैं ।परंतु हमारी ईर्ष्या हमारा अहं सब समाप्त कर देता है । धीरे धीरे सभी हमसे दूरी बना लेते हैं ।तब स्वयं पर झल्लाने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं होता है ।

    Writer
             बंदना पाण्डेय वेणु               

       

     यह कहानी “डॉ बन्दना पाण्डेय जी” द्वारा रचित है । आप मधुपुर, झारखंड स्थित एम एल जी उच्च विद्यालय, में सहायक शिक्षिका हैं । आपको, कविता, कहानी और संस्मरण के माध्यम से मन की अनुभूतियों को शब्दों में पिरोना बेहद पसंद है । आप द्वारा लिखी गई कहानी सो गईं आँखें दास्ताँ कहते कहते व लेख “एक चिट्ठी यह भी” आपके गहरे चिंतन पर आधारित है । अपनी रचना MyNiceLine.com पर साझा करने के लिए हम उनका हृदय से आभार व्यक्त करते हैं!

    यदि आप के पास कोई कहानी, शायरी , कविता  विचार या कोई जानकारी ऐसी है जो आप यहाँ प्रकाशित करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपने नाम और अपनी फोटो के साथ हमें इस पते पर ईमेल करें:

      Contact@MyNiceLine.com
      हम  आपकी पोस्ट को, आपके नाम और आपकी फोटो (यदि आप चाहे तो) के साथ यहाँ पब्लिश करेंगे ।

    अहंकार या अपनापन | चिड़िया की कहानी आपको कैसी लगी, कृपया नीचे कमेंट के माध्यम से हमें बताएं । यदि कहानी पसंद आई हो तो कृपया इसे Share जरूर करें !




    • Best शायरी यहाँ पढें

    • Best Love शायरी यहाँ पढें

    • Best Sad शायरी यहाँ पढें



    author

    Karan Mishra

    करन मिश्रा को प्रारंभ से ही गीत संगीत में काफी रुचि रही है । आपको शायरी, कविताएं एवं‌‌ गीत लिखने का भी बहुत शौक है । आपको अपने निजी जीवन में मिले अनुभवों के आधार पर प्रेरणादायक विचार एवं कहानियां लिखना काफी पसंद है । करन अपनी कविताओं एवं विचारों के माध्यम से पाठको, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने का प्रयत्न करते हैं ।

    इन्हें भी पढें...

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    error: Content is protected !!