एक समय की बात है महानगर के एक छोटे से कस्बे में पीहू रहा करती थी । नन्हीं पीहू बहुत मासूम थी । उसे सही गलत का फर्क नहीं पता था, बस उसे ये पता था कि अगर गलत करते वक्त उसे किसी ने नहीं देखा है तो वह गलत नहीं है । पीहू की मासूम बुद्धि उसके सारे गलत कामों को भी जस्टिफाई करती रहती ।
ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने के कारण पीहू बचपन से ही धर्म-कर्म में आगे थी । एक बार जब वह 6 साल की थी तब उसे नवरात्रि व्रत रहने का मन हुआ परंतु जब यह बात पीहू की माँ को पता चली तब उन्होंने उस नन्ही सी पीहू को बहुत समझाया । माँ ने कहा
“बेटा तुम अभी छोटी हो और छोटे बच्चे व्रत नहीं रहा करते क्योंकि वे भगवान का स्वरूप होते हैं और इसलिए उन्हें कोई भी व्रत रहने की जरूरत नहीं होती भगवान रोज उनके सपनों में आते हैं और उन्हें प्यार करते हैं”
परंतु पीहू को यह सब नहीं पता था वह तो बस ये जानती थी कि घर मे सब व्रत रहते हैं तो वो क्यूं नही व्रत रहेगी, वो भी रहेगी और इस तरह रोज-रोज की दाल रोटी से उसे एक दिन की तो छुट्टी मिल जाएगी इसलिए पीहू व्रत रहने पर अड़ी रही ।
माँ के मना करने पर उसकी आंखों से टप-टप आंसू गिरने लगे और आखिरकार माँ को हार माननी पड़ी । कलेजे पर पत्थर रखकर प्यारी सी पीहू को माँ ने व्रत रहने की आज्ञा दी हालांकि माँ उसे सारा दिन व्रत छोड़ कुछ खा लेने के लिए कहती, मगर नन्ही पीहू हर हाल मे अपना व्रत पूरा करने को तत्पर थी । देखते ही देखते सारा दिन बीत गया और इसप्रकार उसने अपने जीवन का एक व्रत पूरा कर लिया ।
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अब समय था नवरात्रि की अष्टमी का माँ ने बहुत समझाया मगर वह फिर नहीं मानी और उसने व्रत रखा अब उसे व्रत रहना अच्छा लगने लगा । अब वह घर वालों की देखा देखी सारे व्रत रखना शुरु कर दिया ।
एक दिन जब पीहू संजोग बस व्रत थी तभी उसने गलती से अपनी फेवरेट टॉफी मुंह में डाल ली तभी उसे याद आया कि आज तो उसका व्रत है यह भान पड़ते ही उसने चारों तरफ देखना शुरु कर दिया कि कहीं कोई उसे देख तो नहीं रहा है संजोग से उसे कोई नहीं देख रहा था और तब उसने कमरे की दीवारों पर भी नजर दौड़ाई मगर वहां भगवान की कोई प्रतिमा या कोई फोटो नहीं थी तब पीहू की जान में जान आई । चलो उसको किसी ने टॉफी खाते नहीं देखा उसने फटाफट टॉफी का रैपर नीचे फेंक दिया और घर में किसी को इस बात की भनक तक नहीं लगने दी ।
अब तो पीहू की हर बार की ये आदत बन चुकी थी । जब भी वह व्रत में गलती से टॉफी या चॉकलेट मुंह में डाल लेती और उसे याद आता कि उसका तो आज व्रत है तब वह फटाक से अपने चारो तरफ नजर दौड़ाती कि कहीं उसे कोई देख तो नहीं रहा और फिर तुरंत रैपर को कहीं फेंक कर ये मान लेती कि उसका व्रत नहीं टूटा है क्योंकि किसी ने उसे टॉफी खाते नहीं देखा । हालांकि वह जानकर कभी ऐसी गलतियां नहीं करती मगर ऐसी गलतियां अक्सर उससे हो जाया करती ।
एक दिन जब वह स्कूल जा रही थी तब उसने अपनी माँ से कुछ खाने की वस्तुएं मांगी । माँ ने पैसा न होने की बात कहकर उसे बाद में लाने का प्रॉमिस किया लेकिन इस बात का पीहू को बहुत दुख हुआ । घर आने के बाद रात को जब वह सो रही थी तब उसके स्वप्न में साक्षात ईश्वर प्रकट हुए और उसे उसकी मनपसंद खाने की वस्तुएं देने लगे तभी अचानक उसकी आंख खुल गई और उसने अपने तकिए के बगल में उन सारी वस्तुओं को पड़ा पाया पीहू बहुत खुश हुई और इस बात को बिना किसी से साझा किए चुपचाप उन्हे गटक गई और सो गई ।
धीरे धीरे यह घटना उसके साथ कई बार हुई उसकी जब भी संतान कोई विश पूरी नही होती तब ईश्वर उसके स्वप्न में आकर उसकी विश पूरी करते । मगर नन्ही सी पीहू यह सब देखकर जरा भी अचंभित नही होती क्योंकि उसे तो लगता कि ऐसा सबके साथ होता है । भगवान सबको उनकी मनचाही चीजें देते हैं ।
धीरे-धीरे समय गुजरा और पीहू अब बड़ी हो चुकी थी अब वह अपनी पुरानी गलतियों को नहीं दोहराती । अब वह कर्मकांडी युवती बन चुकी थी । वह सुबह उठकर सबसे पहले करीब 2 घंटे तक पूजा करती और उसके बाद वह घर के सभी लोगों मे प्रसाद बाटती और तब वह स्कूल जाती ।
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बस इतना ही नहीं वह व्रत के सभी नियमों का पालन करते हुए अपने व्रत को काफी अच्छे ढंग से निभाती वह ऐसी कोई गलती नहीं करती जिससे उसका व्रत खंडित हो । पीहू के ऐसे आचरण को देखकर घर के सभी लोग उससे काफी प्रसन्न रहते ।
कॉलेज के सीनियर छात्र-छात्राओ के विदाई समारोह की तैयारियां चल रही थी पीहू भी इस कार्यक्रम में भाग ले रही थी । ऐसे में उसे एक नई ड्रेस की आवश्यकता थी वैसे तो उसके पास ड्रेसेज की कोई कमी नहीं थी परंतु कार्यक्रम के पात्र के हिसाब से उसे एक अलग तरह की ड्रेस चाहिए थी जिसके लिए घर आकर उसने अपनी माँ से एक नई ड्रेस की मांग की परंतु उसकी माँ ने पैसे न होने की बात कहते हुए साफ मना कर दिया ।
पीहू बहुत दुखी हुई और वह रात भर ड्रेस के लिए रोती रही । तभी उसे याद आया कि बचपन में वह जो चाहती भगवान की कृपा से उसे वह सब कुछ मिल जाया करता था तो क्यूं ना ईश्वर से अपनी इच्छाओं को कहा जाए, ऐसा पीहू के मन मे विचार आया ।
उसने फौरन हाथ जोड़कर ईश्वर से अपने लिए उसी खास ड्रेस की मांग की जिसके लिए वह अपनी मां से कह चुकी थी और फिर वह सो गई ।
सुबह उठकर उसने बड़ी उम्मीद से तकिए के बगल मे देखा परंतु वहां कुछ भी नहीं था धीरे-धीरे पीहू ने इस प्रक्रिया को कई बार दोहराया परंतु उसके हाथ कुछ भी नहीं लगा ।
वह बहुत दुखी हुई वह यही सोचने लगी कि
“बचपन में मै एक भी व्रत ठीक ढंग से नहीं रहा करती थी परंतु तब मैं जो चाहती ईश्वर उसे पूरा करते मगर आज देखो, सारे नियमों का पालन करते हुए मैं कठोर से कठोर तप करती हूँ मगर फिर भी मेरा हाथ खाली है, ऐसा क्यूं है”
वह काफी दुखी थी मायूसी उसके चेहरे पर साफ दिख रही थी । मन मे उठे ढेर सारे सवालो का जबाब ढूढते जाने कब नींद आ गई जब वह सो ररही थी तब स्वप्न में एक बार फिर से ईश्वर ने उसे दर्शन दिया भगवान ने पीहू को बताया
“तुम आज उस नन्ही पीहू से बिल्कुल अलग हो वह एक भी व्रत ठीक ढंग से नहीं रहा करती थी वहीं तुम व्रत के सभी नियमों का पालन करती हो एवं कठोर से कठोर तप भी करती हो निश्चित रूप से तुम मेरी एक सच्ची भक्त हो .. . परंतु इन सब के बीच एक चीज जो उस नन्ही पीहू मे था वह तुमसे कहीं गुम हो गई … सरलता । हां अब तुम्हारे अंदर वह सरलता नहीं रही जो उस मासूम सी पीहू के अंदर हुआ करती थी अब तुम कठिन बन चुकी हो तुम्हारे अन्दर में अब वह सरलता नहीं रही जो कभी पीहू मे हुआ करती थी”
इतना कहते ही प्रभु जाने कहां गायब हो गए और पीहू की आंख खुल गई ।
कहानी से शिक्षा | Moral Of This Best Inspirational Story In Hindi
तप, व्रत एवं अन्य कर्मकांडों को करना आस्था का एक महानतम स्वरूप हो सकता है मगर जिसने सरलता को प्राप्त कर लिया वास्तव में वही ईश्वर का सच्चा भक्त है !
लोग ईश्वर की कृपा प्राप्त करने के लिए कठोर से कठोर तप किया करते हैं महीने में कई-कई दिन व्रत रहा करते हैं कुछ तो निराजल व्रत रखा करते हैं और ऐसा करके वो यह मान लेते हैं कि मैने ईश्वर को प्राप्त करने की सबसे महानतम कोशिश की है जहां मैं की भावना आ गई वहां अहंकार ने जन्म लिया और हमारी सरलता कहीं खो गई हम जितने सरल होंगे हमें प्रभु उतनी ही आसानी से प्राप्त होंगे ।
क्योंकि प्रभु कहीं और नहीं हमारे हृदय में वास करते हैं उनको पाने के लिए हमें मंदिरो, मस्जिदों में दौड़ लगाने की कोई जरूरत नहीं है वो तो हमारे हृदय के एक कोने में सर्वदा विराजमान रहते हैं । हमें इसे समझना होगा और हम ईश्वर को तभी प्राप्त कर सकते हैं जब हमारे मन में एक सरलता होगी क्योंकि हमारी सरलता ही आत्मा को परमात्मा से मिला सकती है ।