इश्क ही अब मजहब है मेरा | शायरी | करन‌ मिश्रा
इश्क ही अब मजहब है मेरा | शायरी | करन‌ मिश्रा

इश्क ही अब मजहब है मेरा | शायरी | करन‌ मिश्रा

इश्क ही अब मजहब है मेरा,
उनका दिल हुआ मेरा ठिकाना.
बस उनकी इबादत करना है मुझको,
मुझको मक्का-मदीना नहीं जाना.

Ishq Hi Ab Majahab Hai Mera,
Unka Dil Hua Mera Thikana.
Bas Unki Ibadat Karana Hai Mujhako,
Mujhako Makka Madina Nahi Jana.

इश्क ही अब मजहब है मेरा | शायरी | करन‌ मिश्रा
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Karan Mishra

करन मिश्रा को प्रारंभ से ही गीत संगीत में काफी रुचि रही है । आपको शायरी, कविताएं एवं‌‌ गीत लिखने का भी बहुत शौक है । आपको अपने निजी जीवन में मिले अनुभवों के आधार पर प्रेरणादायक विचार एवं कहानियां लिखना काफी पसंद है । करन अपनी कविताओं एवं विचारों के माध्यम से पाठको, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने का प्रयत्न करते हैं ।

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