वक़्त गुजर जाता है पर कुछ जख्म नहीं भर पाते शायरी
वक़्त गुजर जाता है पर कुछ जख्म नहीं भर पाते शायरी

वक़्त गुजर जाता है पर कुछ जख्म नहीं भर पाते । करन मिश्रा । शायरी

वक़्त गुजर जाता है पर कुछ जख्म नहीं भर पाते,
खाक हुए सपनों को फिर से पंख नहीं लग पाते.
धीरे-धीरे ठंडी पड़ जाती है आग लगन की,
टूटे डाली के फुल फ़िज़ा में फिर से ना खिल पाते.

Waqt Gujara Jata Hai Par Kuchh Jakhma Nahi Bhar Pate,
Khak Hue Sapno Ko Fir Se Pankh Nahi Lag Pate.
Dhire Dhire Thandhi Pad Jati Hai Aag Lagan Ki,
Tute Dali Ke Ful Fiza Me Firse Na Khil Pate.

वक़्त गुजर जाता है पर कुछ जख्म नहीं भर पाते शायरी
वक़्त गुजर जाता है पर कुछ जख्म नहीं भर पाते शायरी



• Best शायरी यहाँ पढें

• Best Love शायरी यहाँ पढें

• Best Sad शायरी यहाँ पढें



author

Karan Mishra

करन मिश्रा को प्रारंभ से ही गीत संगीत में काफी रुचि रही है । आपको शायरी, कविताएं एवं‌‌ गीत लिखने का भी बहुत शौक है । आपको अपने निजी जीवन में मिले अनुभवों के आधार पर प्रेरणादायक विचार एवं कहानियां लिखना काफी पसंद है । करन अपनी कविताओं एवं विचारों के माध्यम से पाठको, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने का प्रयत्न करते हैं ।

इन्हें भी पढें...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!