स्कूल में मनजीत अपनी क्लास के सभी बच्चों में काफी कमजोर था। वो स्कूल में रोज खड़ा किया जाता। उसके सारे दोस्त उस पर हंसते, हर पैरेंट्स मीटिंग में उसकी माँ पल्लवी को हमेशा अपने बेटे की खराब परफॉर्मेंस की वजह से शर्मिंदा होना पड़ता।
अर्धवार्षिक परीक्षा में पुनः मनजीत के खराब नंबर आने से लज्जित न होना पड़े। इसके लिए पल्लवी ने मनजीत को पढाने की बहुत कोशिश की। मनजीत भी माँ के कहे के अनुसार प्रयास करता रहा। अब समय था, रिजल्ट का पल्लवी को स्कूल में मनजीत का रिजल्ट देखने आना था। वो जल्दी से सारा काम खत्म करके काफी उम्मीद के साथ मनजीत को लेकर स्कूल समय से पहुंच गई।
मगर परिणाम उसकी उम्मीदो से बिल्कुल विपरीत थे, उसके लाख प्रयासों के बावजूद मनजीत के इस बार भी सभी विषयों में नंबर काफी खराब थे। दो विषयों में तो वो फेल भी हो गया था। शेष विषयों में भी वो बस पासिंग मार्क्स ही पा सका था।
वहां अन्य बच्चों के भी पैरेंट्स उपस्थित थे। पल्लवी ने वहां अत्यंत लज्जा का अनुभव किया। उसने बगैर कुछ कहे मनजीत का हाथ पकड़े उल्टे पांव घर वापस चली आयी। हालांकि मनजीत की क्लास टीचर ने उसे रोकने की कोशिश बहुत की। घर आकर मनजीत से बिना कुछ पूछे उसकी खूब पिटाई की।
दूसरे दिन जब मनजीत स्कूल पहुंचा मास्टर साहब उसका हाल देखकर चौंक गए। उसके दोनों गाल में स्वेलिंग आ गई थी। मास्टर साहब ने मनजीत से पूछा तुम्हें ये चोटे कैसे लगी। मनजीत ने बताया कि
“मम्मी ने कल मुझे बहुत मारा कल मेरे खराब मार्क्स के कारण उन्होंने बहुत इंसल्ट फील किया बस इसीलिए” क्लास के सारे लड़के उसकी दशा पर जोर जोर से हंसने लगे। वो सर झुका लेता है, उसकी आंखों से डब-डब आंसू निकल आते हैं। मास्टर साहब मनजीत से कहते हैं ।
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“तुम कल अपनी मम्मी को लेकर आना”
दूसरे दिन पल्लवी स्कूल आती है। पल्लवी से मास्टर साहब पूछते हैं। “आपने इतनी बड़ी सजा क्यों दी मारने से क्या यह पढ़ने लगेगा”
पल्लवी “मैं तंग आ गई हूँ। पढ़ाने को तो मैं इसे रोज पढ़ाती हूं। मगर फिर भी न जाने क्यूं इसके दिमाग में जैसी कुछ घुसता ही नहीं,
पल्लवी की सारी बातें मास्टर साहब बड़े गौर से सुनते रहे, फिर उन्होंने स्कूल खत्म होने के बाद मनजीत को अपने घर बुलाया। जब मनजीत मास्टर साहब के घर पहुंचा तो मास्टर साहब ने अपनी पत्नी से एक थाली और चावल के दाने मंगवाए। और फिर थाली में थोड़ा चावल को डाला। उन्होंने मनजीत को उसे देकर चावल में से कंकर चुनने को कहा मनजीत ने मास्टर साहब के कहे के अनुसार ही किया। चावल में से ककड़ चुनने के बाद, वो जब भी वह थाली मास्टर साहब की और बढ़ाता तो मास्टर साहब थाली के उसी साफ किए हुए चावलो में से ककड़ दोबारा चुनने को कहते।
मनजीत के काफी प्रयासों के बाद भी हर बार थोड़े बहुत चावल में कंकड़ रह ही जाते। तब मास्टर साहब ने उस चावल को थाली में से निकाल कर पुराने चावलों में से थोड़ा चावल पुनः उसी प्रकार थाली में रखा और उसमें से ककड़ चुनने के लिए थाली फिर से मनजीत की और बढ़ाते हुए कहा
“मनजीत इस बार तुम पूरे मन से और पूरा समय लेते हुए बड़े ही ध्यानपूर्वक ककड़ चुनना याद रहे तुम्हारा ध्यान इस कार्य से कही और भटकना नहीं चाहिए” इस बार मनजीत ने एक ही प्रयास में चावल में से सारे ककड़ निकाल दिए।
कहानी से शिक्षा
दोस्तों एक बार पूरे मन से किया गया प्रयास आधे अधूरे मन से किए गए सैकड़ो प्रयासो से कहीं ज्यादा असरदार होता है।
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