रिटायरमेंट के बाद भी प्रोफेसर रामाकांत की प्रोफ़ेसरगिरी अभी जारी है । कॉलोनी में रहने वाले तकरीबन सभी युवा प्रोफेसर साहब के शिष्य रह चुके हैं ।
जिसके कारण यूनिवर्सिटी से रिटायर हो जाने के बाद भी उनके प्रोफ़ेसर होने का रौब बरकरार है । सब उनका अत्यधिक आदर और सम्मान करते हैं । वे उन्हें एक पड़ोसी की भाँति ही नहीं बल्कि अपने गुरुवर के रूप में देखते हैं ।
लंबे अरसे से चली आ रही आपाधापी को अलविदा कह प्रोफेसर साहब अब शांति और सुकून की एक नई जिंदगी की शुरुआत करने जा रहे हैं । वैसे तो प्रोफेसर साहब का पूरा दिन बहुत शांति और सुकून से गुजरता है । परंतु शाम होते-होते सामने पार्क में आए कालोनी के सारे बच्चे अपने शोरगुल से प्रोफेसर साहब के कानों में आतंक देते हैं ।
उन शैतान बच्चों से तंग आकर प्रोफेसर साहब ने कॉलोनी वालों से बच्चों की खूब शिकायत की हैं और उन्हें अनुशासन में रखने की हिदायत भी दी। बस फिर क्या था अगले दिन से बच्चे पार्क में आते तो जरूर मगर अब शोरगुल तो दूर वे आपस मे बात तक नही करते बस मूक बधिर बने प्रोफेसर साहब के घर को घूरते रहते ।
एक ही पल में प्रोफ़ेसर साहब ने उन बच्चों की सारी खुशियों पर ताला जड़ दिया था उधर अपने खिड़की से प्रोफ़ेसर साहब उन्हें शांत बैठा देख बहुत खुश होते परन्तु उनकी ये खुशियाँ बस कुछ एक दिनो की मेहमान थी । देखते ही देखते बच्चों की खुशियां छीनने वाले प्रोफेसर साहब उन्हें फिल्म के किसी विलन जैसे नजर आने लगे ।
वे प्रोफ़ेसर साहब को मजा चखाने के लिए उतावले हो रहे हैं । कुछ ही दिनो बाद प्रोफेसर साहब की झाड़ू, नहाने की बाल्टी, मग गायब होने लगी हैं इतना ही नहीं प्रोफेसर साहब के न रहने पर उनके खिड़की के शीशे भी टूट रहे हैं । इनसब के पीछे कौन है ? ये बच्चों के चेहरे पर लौटी खुशी देखकर समझ आ जाता है ।
कुछ ही दिनों बाद सर्दियों का खुशनुमा मौसम आता है तकरीबन एक हफ्तों से धूप नहीं निकली है । सूरज न जाने कहां जाके छुप गया है जिसके कारण कपड़े भी नहीं सूख पा रहे हैं । तभी एक दिन हल्की-हल्की धूप बादलो को चिरती बाहर आती है । प्रोफ़ेसर साहब अपना गिला कच्छा बाहर धूप में डाल, खुद नहाने चले जाते हैं । ताक मे बैठे नन्हे शैतान इस मौके को गंवाना नहीं चाहते थे । वे चुपचाप पैरो को दबाते प्रोफ़ेसर साहब की चारदीवारी कूदकर सामने टंगे कच्छे को उठा ले जाते हैं ।
थोड़ी ही देर मे प्रोफ़ेसर साहब तौलिया लपेटे अपना कच्छा लेने बाहर आते हैं मगर कच्छा तो वहां से गायब है । प्रोफेसर साहब इधर-उधर अपना कच्छा ढूँढते हैं मगर वहां न उन्हें अपना कच्छा दिखाई देता है और न ही कच्छा चुराने वाला।
प्रोफेसर साहब का पारा हाई हो जाता है वो तोलिया लपेटे ही बाहर निकल जाते हैं और कॉलोनी वालों पर जमकर खीस निकालते हैं । कॉलोनी वाले अपने बच्चों को बहुत डांट फटकार लगाते हैं मगर प्रोफेसर साहब को इसतरह परेशान कौन कर रहा ये वे जानने मे नाकाम रहते हैं ।
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इन सब के बीच कॉलोनी में एक नए मेहमान सिंह साहब का आगमन होता है । कुछ ही दिनों में उनकी बच्चों से काफी गहरी दोस्ती हो जाती है । प्रोफ़ेसर साहब अपनी बालकनी से अक्सर अपने हमउम्र सिंह साहब को बच्चों के साथ हंसी ठिठोली करते देखते हैं । एक दिन जब सिंह साहब अकेले पार्क में बैठे थे तब प्रोफ़ेसर साहब उनके पास आते हैं । दोनों में काफी देर तक वार्ता चलती रहती है तभी प्रोफेसर साहब सिंह साहब से पूछ बैठते हैं
“यार तुम इन शैतान बच्चों को कैसे झेलते हो मैं तो इन्हें एक पल भी बर्दाश्त न करूं”
तब सिंह साहब कहते हैं
“नहीं-नहीं दोस्त ये शैतान नहीं हैं, हां थोड़े शरारती जरूर हैं मगर क्या करें ये है तो आखिर बच्चे न अब भला बचपना ये नही करेंगे तो फिर क्या हम आप करेंगे? प्रोफेसर साहब इनकी मासूम शरारतो से नाराज क्या होना आखिर इन बच्चो से ही तो कॉलोनी की रौनक है”
“कैसी रौनक, अरे इन्होंने तो कॉलोनी को जहन्नुम बनाकर रख दिया है”
(प्रोफेसर साहब, सिंह साहब से कहते हैं)
तब सिंह साहब कहते हैं
“अरे दोस्त तुम अपनी इस प्रोफ़ेसर गिरी से थोड़ा बाहर आओ । कभी इन बच्चों के साथ बैठो उनसे दो बातें करो, उनके साथ थोड़ा खेलो फिर देखना ये तुम्हारी जिंदगी कैसे बदल कर रख देते हैं”
धीरे-धीरे दोनों मे काफी गहरी दोस्ती हो जाती है । दोनों रोज शाम को पार्क में बैठकर गप्पें लड़ाते हैं । वही बच्चे धीरे-धीरे प्रोफ़ेसर साहब को भी बच्चा समझ बैठते हैं । अब वे उनके साथ और शरारती हो गए हैं हालाँकि सिंह साहब की लेक्चर से बचने के लिए प्रोफेसर साहब उन्हें कुछ नहीं कहते मगर अंदर ही अंदर वे उबलते रहते हैं ।
वक्त करवट बदलता है और सिंह साहब का तबादला हो जाता है उनके जाने के बाद प्रोफेसर साहब एक बार फिर अकेले हो जाते हैं वे पार्क की बेन्च पर बैठे सिंह साहब को याद कर बहुत उदास हैं और कयूँ न हों आखिर उन्होंने अपना बेस्ट फ्रेन्ड खो दिया है । तभी एक जोरदार धमाका होता है । वह पलट कर देखते हैं तो पता चलता है उनकी कुर्सी के ठीक पीछे किसी ने पटाखा फोड़ा है । सामने ढेर सारे बच्चे खड़े हैं । वे उन्हें हैप्पी दिवाली बोलते हैं और ठहाके मारकर जोर-जोर से हंसने लगते हैं ।
प्रोफेसर साहब के तन मन में बिजली दौड़ जाती है । वे अपनी लाठी लिए बच्चों को सबक सीखाने दौड़ पड़ते हैं इस पकड़म पकड़ाई मे प्रोफेसर साहब की लाठी मे फसकर नन्हे चिकू की पतलून उतर जाती है जिसे देखकर सब हंसने लगते हैं उन्हें हंसता देख प्रोफेसर साहब खुद को रोक नही पाते और वे भी हंस पड़ते है वे नन्हे चिकू को गोद मे उठाकर उसकी पतलून पहनाते हैं ।
कहानी से शिक्षा | Moral Of This Best Inspirational Story In Hindi
जिन्दगी का असली मजा सबके साथ जीने में है अकेले जीने में नही !