अभी क्यूँ नहीं ? प्रेरक कहानी I Why not now ? Inspirational Hindi Story
काफी देर से कोई दरवाजा खटखटाये जा रहा है पर कमरे के अंदर सोए हुए उमंग के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है । बाहर से आ रही आवाज अब धीरे-धीरे कठोर होती जा रही है । काफी देर की मशक्कत के बाद आखिरकार उमंग को उठना ही पड़ा, उठते ही उमंग ने ऊपर दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ देखा पर अभी तो सुबह के 5:00 बज रहे हैं ऐसे में कुछ बड़बड़ाते हुए उमंग ने दरवाजा खोला सामने उसके पिताजी खड़े हैं । वह उमंग से कहते हैं कि
“दरवाजा खोलने में तुम्हें इतनी देर क्यूं हुई तुम्हें कितनी बार कहा है भोर मे पढना अच्छा होता है दिमाग फ्रेश होने के कारण सबकुछ अच्छे से याद हो जाता है, तुम्हे कहते-कहते थक चूका हूँ कि सुबह उठकर थोड़ा व्यायाम किया करो और ज्यादा नहीं तो कम से कम दो-चार बार पार्क के चक्कर ही मार आया करो पर तुम्हारे दिमाग में तो कुछ घुसता ही नहीं । तुम्हारी तो नींद दस बजे से पहले टूटती ही नहीं । अगर अब नहीं करोगे तो आखिर खुद
कब करोगे”
पिता की बातों को सुनकर भी उमंग नजरें झुकाए चुपचाप खड़ा रहता और निगाहों तिरछी करके, पीछे अपने कमरे की ओर देखता रहता कि कब पिताजी की यह भाषणबाजी खत्म होगी और वह फिर से अपनी अधूरी नींद पूरी करनी के लिए वापस बिस्तर पर जा सकेगा । थोड़ी ही देर में पिता जी की भाषणबाजी खत्म हुई। उमंग ने हर बार की तरह इस बार भी अपनी वही घिसी-पिटी बात एक नए अंदाज मे दोहरायी उसने कहा
“ठीक है पिताजी पर आज मैं बहुत थका-थका सा महसूस कर रहा हूँ इसलिए आज तो नहीं पर कल से मै रोज सुबह उठकर पढुंगा और मॉर्निंग वाक भी करूंगा “
मगर पिताजी भी उमंग को अब तक बहुत अच्छी तरह से समझ चुके थे । वे जानते थे कि उनकी नसीहतों का उमंग पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला वह हमेशा की तरह उनकी बातों को आज नहीं कल पर टालकर मेरी बातों से छुट्टी पाना चाहता है ।
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पिता तो पिता होता हैं वे बेटे को सुधारने का एक भी मौका कभी गंवाना नहीं चाहते थे । उमंग के पिता सेना से हाल ही मे रिटायर हुए थे । वे अपने बेटे को भी अपनी तरह एक फौजी बनाना चाहते थे । मगर उमंग की किसी भी काम में कुछ खास रुचि नहीं थी । हर काम को वह एक-एक दिन आगे बढाने मे ही लगा रहता हर काम के लिए उसका एक ही जबाब था ।
“पिताजी कर दूंगा, पर आज नहीं कल”
धीरे-धीरे काफी अरसा गुजर गया । मगर बेटे के अंदर एक पैसे का सुधार नहीं आया । उसका आज भी देर रात तक जागना और सुबह के 9 -10 बजे तक उठना फिर भागे-भागे स्कूल जाना और फिर घर लौट कर इधर-उधर समय काटना उसकी दिनचर्या बन चुकी थी ।
गर्मियों का समय था । उमंग की भी छुट्टियां चल रही थी । इसी बीच बुआ के वहां से किसी की शादी का न्यौता आया । ऐसे में उमंग के पिता ने शादी से कुछ रोज पहले बुआ के वहां जाने की सोची । पिताजी के साथ उमंग भी जाने की जिद्द करने लगा । पिताजी इसके लिए फौरन तैयार हो गए और उसे लेकर स्टेशन की ओर चल पड़े । दो दिनो की यात्रा के बाद अब समय था इस ट्रेन को छोड़ दूसरी ट्रेन पकड़ने का । ऐसे में उमंग और पिताजी स्टेशन पर उतरकर दूसरी ट्रेन के बारे में जानकारी प्राप्त करने लगे । तब पता चला कि उन्हें जिस ट्रेन से आगे जाना है वह ट्रेन बिल्कुल सामने खड़ी है और बस थोड़ी ही देर में चलने वाली है ।
पिताजी समय न गवाते हुए उमंग को टिकट के पैसे देते हुए सामने टिकट काउंटर से दो टिकट लेने को कहा और स्वयं सामने खड़ी ट्रेन में जाकर बैठ गए । टिकट की लाइन में भीड़ काफी ज्यादा थी इसलिए समय भी काफी लग रहा था ।
अभी उमंग का नंबर आने ही वाला था कि तब तक ट्रेन ने सिटी देना शुरु कर दिया । ट्रेन की सीटी सुनते ही उमंग के अंदर हजारों बोल्ट की बिजली दौड़ पड़ी । उसने टिकट काउंटर पर बैठे टिकट क्लर्क से जल्दी-जल्दी हाथ चलाने को कहा उसके बार-बार फोर्स करने पर उसकी और टिकट क्लर्क के बीच में थोड़ी झड़प भी हो गई ।
बड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार उमंग को टिकट मिल ही गया । मगर तब तक ट्रेन के पहिए घूमने शुरू हो गए थे । उधर पिताजी भी उमंग को हाथ दिए जा रहे थे ।
उमंग काफी घबरा गया था । उसका घबराना भी जायज था क्योंकि एक तो आज तक उमंग अकेले कहीं सफर नहीं किया था । दूसरे यह जगह भी उसके लिए बिल्कुल ही अनजान थी । उसके जेब में अब न कोई पैसे बचे थे और न ही बुआ के गांव का सटीक पता ही वह जानता था ।
टिकट पाते ही बिना कोई देरी किए उमंग सीधे ट्रेन की तरफ दौड़ा वह ट्रेन की तरफ ऐसे दौड़ लगा रहा था । मानो वह कोई आम आदमी न होकर कोई प्रोफेशनल धावक हो काफी पसीना बहाने के बाद आखिरकार वह ट्रेन पकड़ने में कामयाब हो गया ।
जिस पिता को उसने जन्म से देख रखा था आज उसी पिता को इस लम्बे संघर्ष के बाद अपने सामने पाकर उसे एक अजीब सा सुकून मिल रहा था । जिसे बयां कर पाना उसके लिए संभव नहीं था ।
इस जबरदस्त संघर्ष के बाद मिली सफलता से उसे सुकून तो बहुत मिला मगर इस चिलचिलाती धूप में किए गए इस संघर्ष ने उसे प्यास से बेचैन कर दिया । उसे अब बहुत जोरों की प्यास लगी थी । मगर चलती ट्रेन में उनके पास पानी की एक बूंद तक नहीं थी । जिससे वह अपनी प्यास बुझा सके ।
प्यास से उमंग का बहुत बुरा हाल था । ऐसे में पिता ने उसे धीरज धराते हुए कहा कि
“अगला स्टेशन बस थोड़ी ही देर में आने वाला है वहां तुम्हें पानी मिल जाएगा थोड़ा सब्र रखो, इतने बेचैन क्यूं हो”
——–
तब उमंग ने कहा
“आपको मेरी हालत का अंदाजा नहीं है इसीलिए आप ऐसा कह रहे हैं काश आप मुझे समझ पाते कि इस वक्त मेरी प्यास से कैसी बुरी हालत है आप अगले स्टेशन की बात कर रहे हैं मुझे ऐसा लगता है कि अगर और थोड़ी देर मैं प्यासा रहा तो शायद प्यास से ही मेरी मौत ही हो जाएगी “
उमंग हर 2 मिनट पर सीट से उठ-उठ कर इधर उधर पागलों की तरह ट्रेन मे पानी ढूंढता फिरता । उस ट्रेन में ज्यादा लोग नहीं थे और जो इक्का-दुक्का लोग ट्रेन के उस डिब्बे में मौजूद भी थे तो संजोगवश उनके पास भी पानी नहीं था । ऐसे में उमंग एक सीट से दूसरी सीट बदल-बदल कर किसी तरह वक्त काट रहा था । उसके मन में सिर्फ एक ही सवाल गूंज रहा था कि
अगला स्टेशन कब आएगा
इंतजार खत्म हुआ और द्रुत गति से चल रही ट्रेन ने आखिरकार अपनी स्पीड कम करनी शुरू कर दी । ट्रेन की स्पीड कम होते ही उमंग के अंदर उमंग दौड़ पड़ा उसे लगा मानो वो सागर के बिल्कुल निकट आ चुका है । इंतजार की घड़ियां खत्म होने वाली थी । थोड़ी ही देर में ट्रेन अगले स्टेशन पर जा पहुंची ।
ट्रेन के रुकते ही उमंग तेजी से बाहर निकला और पागलों की तरह स्टेशन पर बने टैब के नीचे अपना मुंह लगाए पानी पीने की कोशिश करने लगा परंतु वक्त की ये कैसी विडंबना शायद किसी ने सच ही कहा है कि
“जब वक़्त बुरा हो तो मरी मछली भी पानी में कूद जाती है “
स्टेशन के किसी भी टैब में पानी नहीं था । उसे स्टेशन पर इस तरह परेशान देखकर वहां खड़े एक ग्रामीण ने बताया की
“इन सब से कोई फायदा नहीं है । यहां किसी भी नल में पानी नहीं है । आप बेफिजूल में दौड़ लगा रहे हैं “
ग्रामीण की बातों को सुनकर उमंग को उस पर बहुत गुस्सा आया क्योंकि उमंग को इस समय अपनी प्यास के आगे किसी की बात बर्दाश्त नहीं हो रही थी । वह किसी को सुनने के मूड में नहीं था । उसे तो सिर्फ और सिर्फ पानी चाहिए था ।
थोड़ी ही देर में ट्रेन ने सीटी देनी शुरू कर दी ।
मजबूरन उमंग को वापस ट्रेन में बैठना पड़ा । पिताजी को उमंग की हालत पर बहुत तरस आ रहा था । मगर अगले स्टेशन के इंतजार के सिवाय किया भी क्या जा सकता था । संजोग से ग्रामीण भी उसी डब्बे में बैठ गया । उसने उमंग की हालत देखी तब उसने उसे बताया की ।
“ज्यादा परेशान मत हो अगला स्टेशन बस आने ही वाला है । इस बार जैसे ही गाड़ी स्टेशन पर रुके तुम बेफिजूल में स्टेशन के नल में पानी ढूंढने में अपना वक्त मत बर्बाद करना क्योंकि हमारा इधर रोज का आना जाना है और अगले स्टेशन के नल में भी पानी अक्सर नहीं रहता है । इसलिए बेहतर होगा कि ट्रेन के रुकते ही तुम स्टेशन से बाहर चले जाना स्टेशन ज्यादा बड़ा नहीं है । स्टेशन को पार करते ही, सामने एक बुढिया ठेले पर चाय बेचती नजर आएगी वहां से तुम पानी ले लेना”
ग्रामीण की बातों को सुनकर उमंग को थोड़ी शांति जरूर मिली मगर एक बार फिर किए गए इस दौड भाग ने उसके प्यास की रफ्तार दुगनी कर दी थी । अब तो उमंग ट्रेन के दरवाजे को पकड़, उसपर अपना सर लटकाए एक बीमार के जैसे पड़ा था ।
पुनः ट्रेन ने अपनी गति धीमी की और थोड़ी ही देर में स्टेशन आ गया । ट्रेन जैसे जैसे अपनी गति को कम कर रही थी ।
प्यास से बेचैन उमंग मानो किसी रेस के लिए पहले से ही अपनी पोजीशन ले रहा हो । ट्रेन अभी पूरी तरह से रुकी भी नहीं थी कि उमंग ने ट्रेन के बाहर छलांग लगा दी और फिर तेजी से वह स्टेशन के बाहर निकल गया । बाहर पहुंचते ही उमंग ने सामने ठेले से मिनरल वाटर की बोतल उठाई चूंकि पानी के लिए छुट्टे पैसे उसने पहले से ही हाथ में ले रखे थे । ऐसे में उसने फौरन बुढिया को वो छुट्टे पैसे पकड़ाए और पानी की बोतल हाथ में लिए वापस ट्रेन की तरह वह दौड़ पड़ा।
ट्रेन में पहुंचने के बाद उमंग ने पानी का बोतल खोलकर जैसे ही उसकी एक घूट मारी उसे ऐसा लगा जैसे उसने पानी नहीं कोई अमृत ही पी लिया हो । वैसे उमंग की जो हालत थी उसमें पानी की वह एक घूंट किसी अमृत से कम नहीं थी ।
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इस रोचक सफर के बाद उमंग और उसके पिता बुआ के गांव पहुंच ही गए । उमंग को वहां बहुत मजा आ रहा था । एक दिन उमंग के पिता एक गांव वाले के साथ उमंग को लिए गांव घूम रहे थे घूमते-घूमते उन्हें सामने एक कुआं दिखाई पड़ा । तभी उस ग्रामीणों ने बताया कि वैसे तो गांव के सारे कुएं अब पट कर मैदान बन चुके हैं मगर गांव का यह सबसे पुराना कुआं आज भी मौजूद है जिसका मीठे पानी की चर्चा दूर गावों तक होती है ।
दोनों बाप बेटे ऐसे चमत्कारी कुएं को करीब से देखने लगे । कुआं काफी गहरा था । तभी उनकी नजर कुएं के पानी में घूम रहे एक सांप पर पड़ी । गांव वाले ने बताया कि यह सांप बिल्कुल भी विषैला नहीं होता है । इसके काटने से किसी को कोई नुकसान नहीं होता ।
अभी उनके बीच बात चल ही रही थी कि अचानक पिता के द्वारा दिए गए हल्के से धक्के से उमंग का पैर फिसला और वह अचानक कुएं में जा गिरा हालांकि कुएं में पानी ठीक-ठाक था । जिसके कारण उसे चोट नहीं आई । मगर कुएं में गिरने के साथी उमंग का ध्यान उस सांप की तरफ गया जो उस पानी मे पहले से ही मौजूद था वह अब उसके बिल्कुल समीप था । ऐसे में उमंग के तो जैसे प्राण ही कहीं अटक गए वह कुछ बोल ही नहीं पा रहा था । वह सिर्फ छटपटा रहा था और उपर खड़े पिता की तरफ मदद के लिए अपने दोनो हाथ बढ़ा रहा था ।
वह बार-बार उपर चढ़ने का प्रयास कर रहा था परंतु कुएं की दीवारों में काई लगे होने के कारण वह हर बार फिसल कर वापस पानी मे गिर जा रहा था पा रहा था । उधर सांप भी उसे डराने मे लगा था वह जब भी मौका पाता उसे डसने की कोशिश करता । डर के मारे उमंग के तो हाथ पांव फूलने लगे वह काफी घबर गया उसने पूरी ताकत से कुए की दीवारों पर चढ़ने का प्रयास शुरू कर दिया । मगर वह हर बार फिसल कर नीचे गिर जाता । इसमें उसे थोड़ी खरोच भी आ गई हालांकि ऊपर से पिताजी उस का ढानस बढ़ाने में लगे थे । वह बार-बार उसे कहते
“घबराओ मत वह सांप विषैला नहीं होता वह तुम्हारा कुछ भी नुकसान नहीं कर सकता तुम थोड़ा सब्र रखो “
मगर यह सारी बातें उसके कानों तक जैसे पहुंच ही नहीं पा रही हो, वह तो बस
कुएं से बाहर कैसे निकले
इसी जुगत में लगा था । थोड़ी ही देर में बुजुर्ग ग्रामीण वाले और उसके पिता ने एक रस्सी कुएं में नीचे की तरफ फेंकी
रस्सी को देखते ही समय न गवाते हुए उमंग ने एक प्रोफेशनल खिलाड़ी की तरह रस्सी को पकड़कर ऊपर चढ़ना शुरू कर दिया और महज कुछ ही सेकंड्स में वह कुएं से बाहर निकल आया
बाहर आने के बाद उसे एक अजीब सी खुशी का एहसास हो रहा था । यह खुशी शायद सिर्फ अपने प्राण बचाने की ही नहीं थी बल्कि कुछ ही सेकंड्स में रस्सी को पकड़कर जिस तरह से उसने ऊपर चढ़ना सीखा था वह उसके लिए वाकई एक बहुत बेहतरीन अनुभव था ।
अगले दिन जब उमंग के पिता उसे साथ लेकर घर वापस आ रहे थे तब उमंग ने तब ट्रेन में बैठे अपने पिता से पूछा
“पिताजी मैं आपसे एक बात जानना चाहता हूँ ”
पिताजी ने कहा
“हां पूछो क्या पूछना चाहते हो “
तब उमंग ने कहा
“पिताजी इस पूरे सफर में जो घटनाएं घटी हैं मुझे ऐसा लगता है कि वह सिर्फ संजोग बस नहीं हुई बल्कि उन सब के पीछे आपका भी कुछ रोल अवश्य था ”
तब मुस्कुराते हुए पिताजी ने कहा
“हां तुम जो कह रहे हो वह सच है “
तब उमंग ने कहा
“पिता जी आपने ऐसा क्यों किया “
“मैं काफी समय से तुम्हें सही दिशा दिखाने का प्रयास करता आया हूँ और आगे भी करता ही रहूंगा यह सब जो तुम्हारे साथ हुआ वह भी इसी प्रयास का एक हिस्सा था । उमंग ने कहा
“कैसे पिताजी यह कैसा प्रयास है “
तब पिता जी ने कहा
“मैं जब भी तुम्हें कुछ करने को कहता हूँ तो तुम्हारा यही जवाब होता है पिताजी आज नहीं कल । मगर जब ट्रेन छूट रही थी तब तुम ट्रेन की तरफ ऐसे भागे जैसे कोई धावक अपने लक्ष्य की तरफ भागता है । वहां तुमने एक पल का भी आलस नहीं दिखाया । तुमने इसे कल पर टालने की जरा भी कोशिश नहीं की । तुम बस ट्रेन की तरह भागते रहे । वही जब तुम्हे प्यास लगी तो इस प्यास को कल पर तो छोड़ो बुआ के गांव तक भी पहुंचने तक का इंतजार तुमने नहीं किया बल्कि पानी मिलने की संभावित जगह का पता चलते ही उस जगह तक पहुंचने के लिए पहले से ही पूरा एक्शन प्लान मन ही मन तुमने बना ढाला । ट्रेन के रूकने का भी इन्तजार तुमने नही किया तुम चलती ट्रेन से कूद पड़े और बिना समय गवाए लक्ष्य की ओर दौड़ पड़े । जब तुम कुएं में गिरे तो तुम्हें पता था कि उस सांप के काटने से तुम्हें कुछ भी नहीं होगा मगर फिर भी जब अपनी जान पर बन आई तब तुमने रस्सी को पकड़कर ऊपर चढ़ने मे तुमने जरा भी देर नही की उसे कल पर नही छोड़ा तुमने कुछ ही पलों में इतनी चढ़ाई कर ली जितना की एक प्रोफेशनल खिलाड़ी भी न कर सके”
पिता ने फिर कहा
जबकि अपने करियर और स्वास्थ्य से जुड़ी चीजों को तुमने कभी इतना सीरियसली नहीं लिया, उसे हमेशा कल पर टालते रहे
उमंग को पिताजी की सारी बातें समझ आ गई थी ।
इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है | Moral Of This Inspirational Hindi Story
व्यर्थ के आलस को और झूठे बहानों को आज ही से नहीं बल्कि अभी से त्याग कर अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार हो जाएं । आज नहीं कल और फिर आज नहीं कल इस कल-कल के चक्कर में अपना करियर बर्बाद न करें उठे और पहल करें आप की एक पहल आपका जीवन सवार सकती है !
हम अपने स्वास्थ्य और कैरियर से जुड़ी बातों को अक्सर कल पर टालने के आदी हो चुके हैं । ऐसा नहीं है कि हम उनके प्रति सीरियस नहीं हैं । मगर कहीं न कहीं हम उनके प्रति ईमानदार नहीं है या यूं कहें कि कहीं न कहीं हम खुद को ही धोखा दे रहे हैं ।
हमें अपने करियर की चिंता भी है और हम अपने स्वास्थ्य को भी बनाए रखना चाहते हैं । मगर फिर भी इन सब से जुड़ी बातों पर काम करने का समय आता है तो अक्सर हमें आराम या आलस घेर लेता है और हम कहीं न कहीं अपने आप को एक झूठा दिलासा देकर कि आज तो नहीं मगर कल से बगैर कोई टालमटोल किए निरंतर इस काम को करेंगे ।
मगर दोस्तों कल किसी का न आया है और न आएगा एक बात हमेशा गौर करने वाली है कि जो हम आज करते हैं वही कल भी करेंगे और जो आज नही करते हैं वह कल भी नही करेंगे । अगर हम आज आराम कर रहे हैं तो कल भी आराम ही करेंगे कल भी हमारे सामने अपने काम से बचने के लिए कोई न कोई झूठा बहाना जरूर होगा और उस बहाने से हम न सिर्फ दूसरों को बल्कि खुद को भी धोखा देने में कामयाब रहेंगे ।
यह कामयाबी नहीं बल्कि हमारी बर्बादी की तरफ बढ़ता हुआ हमारा ही एक पुख्ता कदम होगा । जिस तरह से इस कहानी में हमने देखा है कि किस तरह से उमंग पहले ट्रेन फिर पानी और फिर जान बचाने के लिए पूरी ईमानदारी के साथ प्रयास करता रहा । उसने इन सब बातों के लिए कल का दिन मुकर्रर नहीं किया न कोई समय मुकर्रर किया । उसने तुरंत ही उस पर विचार करना शुरू कर दिया । हमें भी अपने लक्ष्य के लिए ऐसा ही लगन जगाना होगा ।
जिस तरह से इस कहानी में उमंग ने पानी के लिए पहले ही एक्शन प्लान तैयार कर लिया था बिल्कुल उसी तरह से एक-एक दिन गंवाने की जगह पूरी लगन से अपने लक्ष्य को पाने का एक्शन प्लान बनाएं और फिर मौका मिलते ही उसकी तरफ बिना कोई झूठा बहाना बनाए तन-मन से लक्ष्य के पीछे दौड़ पड़े । अगर आप ऐसा कर सकेंगे तो आपको सफलता जरूर मिलेगी विश यू ऑल द बेस्ट
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