ये कहानी बिहार के एक छोटे से गांव कुईया की है। रामनारायण के घर से कुछ धुंआ उठ रहा है। धीरे-धीरे धुंआ काफी ज्यादा होने लगा है। आसपास के घरो को भी धुंआ साफ दिखने लगा है, पर रामनारायण के घर मे बड़ी शान्ति है, धीरे-धीरे उठते धुए को देख कर पूरे गांव मे शोर हो गया पूरा गांव रामनारायण के घर के सामने इकठ्ठा है। बहुत आवाज लगाने पर रामनारायण की औरत फुलवती बाहर निकलती है , गांव वालो के पूछने पर कि तुम्हारे घर से ये कैसा धुंआ उठ रहा है। फुलवती चूप हो जाती है, और थोड़ा घबरा भी जाती है। तबतक खेतो मे काम कर रहे रामनारायण और उनके पुत्र बलवन्त भी वहा पहुंच जाते है। वो भी फुलवती से पूछते है, मगर फुलवती इस आग से अन्जान बनती है, सारा गांव रामनारायण के घर की आग बुझाने मे जुट जाता है। मगर तब तक बहुत देर हो चुकी रहती है, खपरैल का मकान होने के कारण आग तेजी से फैल जाता है।
रामनारायण के दो बेटे है, बलवन्त और जयन्त,छोटा बेटा अपनी पढ़ाई के लिए दिल्ली गया हुआ है, जबकि बड़ा बेटा बलवन्त अपने पिता का खेती मे हाथ बटाता है। बलवन्त की शादी हो चुकी है, जबकि जयन्त अविवाहित है। बलवन्त की दो साल की प्यारी सी बेटी भी है, जया।
बलवन्त अपनी पत्नी मेघना और जया को सामने न पाकर माँ फुलवती से पूछता है, तो वो बताती है कि वो किचन मे खाना पका रही थी, और जया भी उसी के पास थी। घबराया बलवन्त तेजी से घर मे भागता है, पर आग ज्यादा होने के कारण गांव वाले उसे पकड़ लेते है, उसे अन्दर नही जाने देते, गांव वाले एवं अग्निशमन दल के बहुत प्रयासो से आग बुझाने मे कामयाबी मिल जाती है।
आग कम होते ही, बलवन्त जया-जया करते हुए घर मे भागता है, पर घर मे किसी का भी पता नही है। आग बुझने तक सारा घर राख के ढेर मे तब्दील हो चुका था।
मेघना के मरने की खबर पड़ोस के गांव मे रहने वाले मेघना के मायके वालो को भी हो जाती है। मेघना के पिता सुखबीर और बेटा नवीन कुछ रिश्तेदारो के साथ रामनारायण के घर पहुंचते है। बलवन्त बाहर चौकी पर बैठे जया और मेघना के लिए आंसू बहा रहा है।
शादी के अभी तीन साल ही हुए थे, पर बलवन्त और मेघना मे प्यार बहुत था। दोनो को देख कर ऐसा लगता था, मानो वो एक-दूसरे के लिए ही बने हो। फिर जन्मो के रिश्ते यू एक पल मे खत्म हो जाए तो भला इस सदमे से कौन बाहर निकल सकता था। हालांकि शुरू-शुरू मे मेघना घर मे सब को बहुत पसंद थी। पर समय के साथ फुलवती और मेघना के बीच की मिठास, खटास मे बदलने लगी थी। दोनो के बीच आयदिन झगड़े होने लगे थे, धीरे-धीरे दोनो एक-दूसरे को अपने समाने देखना नही चाहते थे।
हालांकि रामनारायण दोनो को समझाते थे और एक साथ रहने की बात करते। नवीन को अपनी बहन मेघना और फुलवती दोनो के कटु सम्बन्धो के बारे मे भलीभांति ज्ञान था, और देखते ही देखते वो फुलवती से इस बात को लेकर झगड़ने लगा। मौके पर उपस्थित पुलिस ने नवीन से सारी बातो की जानकारी लेकर फुलवती से पूछताछ करने लगी।
सुखबीर ने फुलवती और उसके परिवार पर मेघना की हत्या का मुकदमा थाने मे दर्ज करा दिया , जिसके आधार पर पुलिस ने फुलवती, रामनारायण और बलवन्त को हिरासत मे ले लिया,और पूछताछ मे जुट गई। परन्तु फुलवती और परिवार ने ऐसे किसी भी आरोप को नही माना,वो बार-बार खुद को निर्दोष होने एवं आग लगने को महज एक हादसा बताते रहे। काफी समय बीत गया न ही फुलवती और न ही उसके परिवार ने ही ये जुर्म स्वीकार किया और न ही उन्हे कोर्ट से बेल मिल सकी क्योंकि उन पे जो आरोप थे बहुत गंभीर थे।
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क्या था ये, क्या महज एक हादसा जिसकी शिकार मेघना और नन्ही सी जान जया हो गई थी, या वाकई मे एक सोची समझी साजिश। आखिर क्या था सच क्या वाकई फुलवती और उसका परिवार जो कह रहा था वो सच था, या कुछ छुपाया जा रहा था।
कुछ दिनो बाद ही नये दरोगा का थाने मे स्थानांतरण हुआ। कोर्ट मे पेशी से पहले उन्होंने घटना पर मिले सबूतो को पुनः खंघाला और उनके बारे मे फुलवती और सुखबीर के घरवालो से पूछताछ की। अब जो बात सामने आई उसको इंस्पेक्टर रमन ने अपने तक ही सीमित रखा, और मिले नए साक्ष्यो के आधार पर केस की नये सिरे से जांच की। करीब दो हफ्तो की तफ्तीश के बाद पुलिस ने इस केस के बारे मे जो खुलासा किया उसे सुनकर पैरो तले जमीन का खिसक जाएगी ।
जयन्त और मेघना एक-दूसरे के तकरीबन हमउम्र थे। जब कि बलवन्त मेघना से काफी बड़ा था। जयन्त और मेघना के बीच देवर-भाभी से कही उपर परस्पर दोस्तो जैसा रिश्ता था। दोनो का साथ टीवी देखना,खेलना यहा तक की गाने गाना, बलवन्त अपने और मेघना के बीच उम्र के अन्तर और इससे दोनो के बीच विचारो के अन्तर को ठीक तरह से समझता इसलिए उसने भी कभी इसमे अपनी रोक टोक नही लगाई।
ये दोस्ती कब प्यार मे बदल गई ये तो शायद जयन्त और मेघना भी नही जानते थे। धीरे-धीरे प्यार परवान चढा अब दोनो को एक पल के लिए भी एक दूसरे से दूर रहना गवारा नही था। फिर क्या था दोनो ने मिलकर एक प्लान बनाया ऐसा प्लान जिसकी किसी ने कभी कल्पना भी नही की होगी शायद, प्लान के मुताबिक ही जयन्त पढ़ाई के बहाने दिल्ली चला गया। जिससे उसपर कभी किसी को शक न हो उसके बाद तय प्लान के अनुसार योजना को अन्जाम देने की खातिर घर मे आग लगा दी गई।
आग के उग्र रूप धारण करने से पहले ही मेघना जयन्त की मदद से किचन की छत पर लगी खपरैल को हटा कर छत पर निकल गई। और फिर जयन्त के साथ दिल्ली पहुँचकर, जयंत की पत्नी के वेश मे उसके साथ रहने लगी । अपने आशिनाई के आग मे उसने नन्ही सी जान जया की भी बलि चढा दी। जया वो इकलौती शख्स थी जिसको आग ने खाक किया था। इंस्पेक्टर रमन को जयन्त पर तब शक हुआ, जब जयन्त के गले की चैन उसके जले मकान के ढेर मे मिली और चैन जयन्त की ही थी, इसकी पुष्टि खुद फुलवती ने की थी जबकि घटना के बाद जयन्त के दिए बयान के मुताबिक वो घटना के दिन दिल्ली मे था।
इस पाक रिश्ते को शर्मसार कर देने वाली इस घटना ने समाज को झकझोर के रख दिया एक ऐसी साजिश जिसके बारे मे कोई सोच भी नही सकता। आज मेघना और जयन्त सलाखो के पीछे जीने के लिए मजबूर है।