अंशुमन और प्रदीप दोनों काफी अच्छे दोस्त हैं। दोनों ने मैट्रिक का एग्जाम अभी अभी हाल ही में ही दिया है। प्रदीप अंशुमन से गर्मियों की छुट्टी को अपने साथ बिताने को कहता है। वह गर्मियों की छुट्टियों में अपनी मौसी के घर जा रहा है।
अंशुमन प्रदीप से कहता है।
“आईडिया तो दोस्त अच्छा है ,मगर इसके लिए घरवालों की मंजूरी लेनी पड़ेगी”
प्रदीप “तो ले लो वहां चलकर हम खूब मस्ती करेंगे, अंशुमन अपने माता-पिता से प्रदीप के साथ जाने की बात कहता है। माता-पिता की इजाजत मिल जाने के बाद दोनों दोस्त गांव की ओर निकल पड़ते हैं।
छुट्टियों का आनंद उठाना उन्होंने सफर में ही शुरू कर दिया, थोड़ी ही देर में वह गांव पहुंच जाते हैं। शहर से काफी अलग दिखने वाले गांव अंशुमन को काफी खुशनुमा एहसास करा रहे थे। अंशुमन सामने बगीचे में कुछ हमउम्र लड़कों को पेड़ पर चढ़ते और फलों को तोड़ते देखता है। अंशुमन गांव में पहली बार आया था। उसने यह काम पहले नहीं किया था। मगर नए कामों को सीखने में उसका बहुत मन लगता था। वह किसी भी काम के को बड़े की उत्साहपूर्वक करता था।
देखते ही देखते अंशुमन बगीचे में पहुंच जाता है। और एक पेड़ पर चढ़ने लगता है। उसको पेड़ पर चढ़ता देख प्रदीप दौड़ हुआ आता है। वह अंशुमन को डांटता है। प्रदीप अंशुमन को ऐसा करने से मना करता है। मगर अंशुमन अपने जिद के आगे किसी की नहीं सुनने वाला था। वह निडरता से पूरे आत्मविश्वास के साथ पेड़ पर ऐसे चढ़ता है, मानो उसने पहले से इसकी ट्रेनिंग ले रखी हो, मगर हकीकत यही थी, कि यह काम उसके लिए एकदम नया था।
दोनों दोस्त फलों का स्वाद लेने के बाद थोड़ा आराम करने चले जाते हैं। शाम को अंशुमन को प्रदीप, घर के पीछे एक तालाब के पास ले जाता है। घर के पीछे बड़े पेड़ों के बीच मे वह तालाब बड़ा मनोहारी है। अंशुमन को यह दृश्य काफी सुहावना लगता है।
तभी बगल में खड़ा प्रदीप कहीं गायब हो जाता है। अंशुमन उसे चारों तरफ देखता है। मगर वह उसे कहीं नहीं दिखता, “शायद प्रदीप घर गया होगा”, ऐसा सोच कर जैसे ही अंशुमन घर की तरफ जाने को पीछे मुड़ता है। वैसे ही उसे तलाब में से किसी के बुलाने की आवाज सुनाई देती है। अंशुमन देखता है कि उसका दोस्त प्रदीप कपड़े उतार तैराकी का आनंद उठा रहा है।
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प्रदीप अंशुमन को बुलाता है। पर अंशुमन मना कर देता है। तभी प्रदीप उसके पास आ जाता है। वो अंशुमन का हाथ पकड़कर तालाब में ले जाने के लिए खींचता है।
मगर प्रदीप के ऐसा करते ही अंशुमन काफी घबरा जाता है। उसकी हालत एक छोटे बच्चे जैसी हो जाती है। उसकी पैर जैसे जमीन में जम गए हो, प्रदीप और उसके दोस्त फिर भी उसको खींचे ले जाते हैं। प्रदीप वैसे तो काफी साहसी था। हर काम में वह आत्मविश्वास का परिचय देता था। मगर नदी तालाब या ऐसे किसी भी जगह को देखकर वह नर्वस हो जाता था।
मगर प्रदीप के ऐसा करते ही अंशुमन काफी घबरा जाता है। उसकी हालत एक छोटे बच्चे जैसी हो जाती है। उसकी पैर जैसे जमीन में जम गए हो, प्रदीप और उसके दोस्त फिर भी उसको खींचे ले जाते हैं। प्रदीप वैसे तो काफी साहसी था। हर काम में वह आत्मविश्वास का परिचय देता था। मगर नदी तालाब या ऐसे किसी भी जगह को देखकर वह नर्वस हो जाता था।
उसे पानी से डर लगता था। दूर से तो कोई प्रॉब्लम नहीं थी। मगर जैसे ही वो उसके समीप जाता था। उसके अंदर अजीब सा डर पैदा हो जाता था।
अंशुमन के लाख ना-ना करने पर भी आखिरकार प्रदीप और उसके दोस्त तलाश उसे में खींच ले जाते हैं। वहां से अंशुमन बाहर निकलने की कोशिश बहुत करता है। मगर उसके दोस्त उसे पानी से न डरने और उसका उत्साह बढ़ाने की कोशिश करते हैं। थोड़ी देर में ही प्रदीप उनका हाथ झटक बाहर निकल आता है।
दूसरे दिन शाम को फिर सारे दोस्त तालाब के पास इकट्ठा होते हैं। सब अंशुमन को भी साथ आने को कहते हैं। मगर उनकी बात सुनते ही उसके पैर थर थर कांपने लगते हैं। उसके शरीर में जैसे जान ही न हो थोड़ी देर तालाब मे तैरने के बाद सारे दोस्त अंशुमन के अंदर के डर को मिटाने के लिए आपस में कुछ बात करते हैं।
फिर सभी कल की तरह अंशुमन को तलाब में बुलाते हैं। अंशुमन का चेहरा पसीने से भीग जाता है। दोस्तों को अपनी और आता देख वहां से घर लौटने की सोचता है।
तब सारे दोस्त उसका उत्साहवर्धन करते हैं। “तुम्हे कुछ नहीं होगा” उसे ऐसा विश्वास दिलाते हैं। अंशुमन बड़े हिम्मत से तलाब में पैर रखता है। इस बार अंशुमन का डर पिछली बार से कुछ काम था।
इसके बाद उसके दोस्त रोज उसके मन से पानी का खौफ निकालने के इसी प्रयास को दोहराते है, वो रोज तालाब मे जाने से ना- ना करता पर हरबार उसका डर पहले से कम होता जाता और आत्मविश्वास बढ़ता जाता ।
कहानी से शिक्षा
हम सभी को किसी न किसी बात से डर लगता है। मगर हम उस काम को करने का जितना ज्यादा प्रयास करते जाएंगे हमारा डर दिन-प्रतिदिन उतना ही दूर होता जाएगा !
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