पिता का प्यार, महत्व, कर्तव्य, भूमिका, जिम्मेदारी एवं योगदान पर कहानी
“पापा मैं भी आज आपके साथ चलूंगी”
“मैंने तुमसे कहा न साक्षी, तुम मेरे साथ अगली बार चलना इस बार का मौसम काफी खराब है”
साक्षी “तो क्या हुआ पापा आखिर आप और भैया भी तो जा रहे हैं”
पिता “तुम्हारे भाई को ऐसी कठिनाई भरे सफर का काफी अनुभव है इसीलिए मैं उसे साथ लेकर जा रहा हूँ परंतु तुम्हारा अनुभव शुन्य है और मौसम काफी खराब है मैं इतना बड़ा रिस्क नहीं ले सकता । तुम समझने की कोशिश करो”
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साक्षी “पापा, माना कि मेरा अनुभव शुन्य हैं मगर मैंने भी इस काम की अच्छी खासी ट्रेनिंग ले रखी है । मैं सच कहती हूँ जब मैं आपके साथ उन ऊंचे-ऊंचे पहाड़ो की चढ़ाई करूंगी तब आप बस देखते ही रह जाओगे”
पिता “मैंने एक बार कह दिया कि तुम नहीं जा रही हो तो नहीं जा रही हो”
साक्षी “बट पापा…”
पिता “अब ज्यादा जिद्द मत करो हम ऑलरेडी लेट हो चुके हैं”
(साक्षी की बात बीच में काटते हुए पिता कहते है ।)
असल में साक्षी के पिता एक अच्छे पर्वतरोही हैं उन्होंने अपने इस काम में कई सारे रिकॉर्ड भी बनाए हैं । आज वह फिर एक बार पर्वतों की चढ़ाई करने जा रहे हैं । साथ में उनका बेटा सौरभ भी जा रहा है । उनकी छोटी बेटी साक्षी जिसने अभी-अभी इस काम मे ट्रेनिंग हासिल की है । वह भी उनके साथ जाना चाहती है परंतु मौसम खराब होने के कारण पिता उसे अपने साथ ले जाने से घबरा रहे हैं । उनकी घबराहट वाजिब है क्योंकि एक तो मौसम बहुत खराब है और दूसरे साक्षी ने इससे पहले कभी पहाड़ों की यात्रा नहीं की है ।
पर्वतों पर काफी बर्फ गिरी हुई है । ऐसे में उस पर चढ़ाई करना काफी खतरनाक है हालांकि उसके पिता और सौरभ को इस काम का काफी अनुभव है इसलिए उन्हें डरने की कोई बात नहीं है मगर जहां तक बात साक्षी की है तो वह इसके लिए बिलकुल नई है । ऐसे में उसे साथ ले जाना किसी खतरे की वजह बन सकता है परंतु साक्षी भी अपने पिता की तरह मजबूत इरादों वाली है उसने जो एक बार ठान लिया उससे पीछे नही हटती ।
आखिरकार वह पिता से जिद्द करके उनके साथ पर्वतों के रोमांचक सफर पर निकल पड़ती है । पिता उसे अपने साथ ले तो आते है परन्तु वे रास्ते भर उसे वापस लौटने के लिए उसे मनाने की कोशिश करते रहते हैं । थोड़ी ही देर में उनका सफर शुरू हो जाता है ।
सौरभ रस्सी में बँधे कांटे को ऊपर फेंक, उन्हें पत्थरों मे फसाते हुए चढ़ाई शुरू करता है । पर्वतों पर चढ़ाई करते वक्त पिता का पूरा ध्यान अपनी बेटी साक्षी पर ही है । वह पलट-पलट कर उसे बार-बार देखते हैं । साक्षी भी अपने पिता की चिंताओ को भलीभाँति समझ रही है परंतु वह बहुत जोशीली है । साक्षी पिता की चिंताओं को समझते हुए उनसे हमारी लेटेस्ट (नई) कहानियों को, Email मे प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें. It’s Free !
“डोंट वरी पापा आप अपने काम पर ध्यान दीजिए”
ऐसा कहती है
कई घंटों की चढ़ाई के बाद वे अब काफी थक चुके हैं तभी अचानक साक्षी के पैरों के नीचे का पत्थर खसक कर खाई मैं गिर जाता है । जिसके कारण साक्षी लड़खड़ा जाती है और जोर-जोर से चीखने लगती है । उसकी चीखने की आवाज को सुनकर उसके पिता काफी घबरा जाते हैं घबराहट में वह अपनी समझदारी को ताख पर रखते हुए बेटी के पास पहुँचने की बचकानी कोशिश करने लगते हैं मगर तब तक साक्षी खुद को संभाल लेती है परन्तु इस घटना से पिता काफी डर जाते हैं और उसे बीच में आने को कहते हैं ।
अब इस चढ़ाई में सौरभ सबसे ऊपर, साक्षी बीच में और पिता सबसे नीचे हैं कई घंटों की लगातार चढ़ाई के फलस्वरूप उन्हें मंजिल दिखाई देने लगती है । पर्वत की चोटी से अब वे बस कुछ कदम ही दूर हैं यह देखकर तीनों काफी खुश होते हैं । रोमांचक से भरा ये दिन, साक्षी शायद कभी न भूल पाए । वह अपने भाई सौरभ के साथ खुशी से उछल पड़ती है उसकी खुशी को देखकर उसके पिता भाव विभोर हो जाते हैं ।
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परंतु इस उछल कूद से कांटे में बंधी दो रस्सियो पर बने अतिरिक्त दबाव के कारण एक रस्सी अचानक टूट जाती है । रस्सी के टूटते ही तीनो के तीनो पहाड़ की चोटी से लटके नजर आते हैं परंतु चिंता की कोई बात नहीं है क्योंकि कांटे में बंधी एक रस्सी उन्हें नीचे गिरने नही देगी परंतु तभी कुछ ऐसा होता है जिसे देखकर तीनों की रूह कांप उठती है ।
असल में कांटे में बंधी एक अकेली रस्सी की क्षमता उन तीनों का भार सहन कर पाने की नहीं है । ऐसे में धीरे-धीरे वह रस्सी भी कटने लगती है जिसे देखकर सबके सब घबरा जाते हैं क्योंकि उस रस्सी के टूटते ही तीनो के तीनो गहरी खाई में जा गिरेंगे और उनका या रोमांचक सफर किसी गहरी ख़ामोशी में बदल जाएगा ।
सौरभ और साक्षी पैर मार कर पहाड़ का सहारा लेने की कोशिश करने लगते हैं मगर उन्हें असफलता हाथ लगती हैं उल्टे उनके इन प्रयासों से रस्सी और तेजी से टूटने लगती है । तभी अचानक उन्हें घर-घर की आवाज सुनाई देती है । वह नीचे पलट कर देखते हैं तो उनके सामने जो दृश्य है उसे देखकर वे स्तब्ध रह जाते है ।
असल में साक्षी के पिता रस्सी से खुद को अलग करने के लिए उसे काटने में लगे हैं जिससे रस्सी पर सिर्फ साक्षी और सौरभ का भार रह जाए और जिसे शायद रस्सी सहन कर ले । अब इसे क्या कहेंगे
“एक कमिट सुसाइड या एक पिता का दायित्व”
साक्षी पिता को मना कर रही है मगर पिता रस्सी को लगातार काटने में लगे है । थोड़ी ही देर में रस्सी पूरी की पूरी कट जाती है । वे साक्षी और सौरभ को एक प्यारी सी स्माइल देते हुए गुड बाय बोलते हैं ।
कहानी से शिक्षा | Moral Of This Best Inspirational Story In Hindi
इस कहानी से दो शिक्षा मिलती है
पिता वो है जो खुद की जिन्दगी कठिन बनाकर आपकी Life आसान कर देता है !
हर्ष मे अधिक हर्षित एवं दुःख मे अधिक दुखी नही होना चाहिए !
हर्ष मे अधिक हर्षित एवं दुःख मे अधिक दुखी नही होना चाहिए !