हरि सेवक की दो पत्नियां थी । जिनमें से एक अनपढ़ गवार और अवगुणों की खान थी । वही उसकी दूसरी पत्नी काफी समझदार और सर्वगुण संपन्न थी हालांकि हरि सेवक अपनी दोनों पत्नियों में कोई भेद नहीं करता था । वह दोनों को ही एक समान समझता था । दोनों के सुख सुविधाओं में उसने कभी कोई अंतर नहीं किया । हरि सेवक की दूसरी पत्नी नैना को बचपन से ही पेंटिंग बनाने का शौक था । उसने इस कला को बहुत अच्छी तरह सीखा था । हालांकि उसने अपनी इस कला के बारे में अपने ससुराल वालों को कभी नहीं बताया परंतु कला कब तक छुपने वाली थी । एक न एक दिन तो इसके बारे में सबको पता चलना ही था ।
धीरे-धीरे इसका ज्ञान हरी सेवक को भी हो गया उसने अपनी पत्नी की रुचि को न दबाते हुए उसे पेंटिंग बनाने के लिए प्रोत्साहित किया । नैना पति का साथ पाकर घर में पड़े खराब वस्तुओ पर पेंटिंग बनाने लगी । नैना द्वारा बनाई गई पेंटिंग वाकई बहुत खूबसूरत थी । उसे देखकर न सिर्फ उसका पति बल्कि गांव के अन्य लोग भी काफी तारीफ करने लगे । तारीफ पाकर हरि सेवक ने उसे और पेंटिंग बनाने के लिए कहा और इसके लिए जरूरी सारा सामान वह शहर से खरीद कर ले आया ।
नैना की बनाई पेंटिंग इतनी बेहतर थी कि गांव तो गांव आस पड़ोस के गांवों तक उसकी कला के बारे में लोग जानने लगे । कुछ लोग तो उसकी पेंटिंग का थोड़ा-बहुत मूल्य भी देने लगे । जिसे देखकर हरि सेवक को एक नई तरकीब सूझी । उसने नैना की बनाई पेंटिंग्स को पास के कस्बो एवं शहर की छोटी बड़ी पेंटिंग्स की दुकानों पर जाकर बेचने की कोशिश करने लगा । दुकानदारों ने नैना की बनाई पेंटिंग्स को हाथों हाथ खरीद लिया और इस तरह नैना की बनाई पेंटिंग अब बाजारो में बिकने लगी ।
अब नैना न सिर्फ एक गृहणी थी बल्कि एक अच्छी कलाकार भी बन चुकी थी । घर परिवार एवं रिश्तेदारों में नैना के बहुत चर्चे थे । सभी उसकी बहुत इज्जत किया करते थे हालांकि इन सबके बीच कोई एक शख्स ऐसा भी था जो नैना की सफलता से बिल्कुल खुश नहीं था बल्कि उसके मन में नैना के प्रति और इर्ष्या की जन्म ले रही थी और वह शख्स कोई और नहीं बल्कि हरि सेवक की दूसरी पत्नी कलावती थी ।
दिन प्रतिदिन नैना की लोगों में बढ़ती लोकप्रियता को देखकर कलावती जल भुनकर राख हुए जा रही थी । अब वह भी कुछ ऐसा करना चाहती थी जिससे लोग उसे भी जाने उसकी भी तारीफ करें ।
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वैसे हरी सेवक का व्यवहार आज भी दोनों के लिए एक समान था परंतु कलावती न जाने क्या समझ बैठी उसने खुद को नैना की तरह ही पेंटिंग की कला में माहिर बनने की ठान ली और फिर नैना और हरी सेवक से छुप-छुप कर पेंटिंग बनाने की कोशिश करने लगी ।
एक दिन जब हरि सेवक नैना के साथ किसी काम से बाहर गया हुआ था तभी कलावती ने ब्रश उठाया और फटाफट पेंटिंग बनाना शुरु कर दिया हांलाकि उसे पेंटिंग का क ख ग भी नहीं पता था । ऐसे में उसके लिए या काफी टेढ़ी खीर थी मगर फिर भी हार न मानते हुए वह एक के बाद एक पेंटिंग बनाने की कोशिश करने मे लगी रही । उसकी कोशिशों में सीखने की इच्छा कम और सफलता की इच्छा ज्यादा थी । वह नैना के जैसी अच्छी पेंटिंग बनाने के लिए उतावली हुए जा रही थी । सुबह से शाम हो गई मगर कलावती ने पेंटिंग बनाने का काम तब तक जारी रखा जब तक पेंटिंग बनाने के सारे सामान खत्म नहीं हो गए ।
शाम को जब हरि सेवक नैना के साथ घर वापस लौटा तो उसने अपने सामने कूड़े का ढेर पाया । वह कूड़े का ढेर कुछ और नहीं कलावती के द्वारा बनाई गई पेंटिंग्स और उसके दिनभर की मेहनत थी । काफी पैसे खर्च करके खरीदे गए पेंटिंग के उन सामानों का ऐसा हश्र देखकर हरि सेवक लाल पीला होने लगा । उसने बहुत ही गुस्से से कलावती को बुलाया और उससे जानने की कोशिश करने लगा कि आखिर यह सब किसने किया मगर कलावती के पास इस का कोई जवाब नही था ।
तब कलावती की पेंटिंग की कला में महारत हासिल करने का जुनून धड़ाम से जमीन पर आ गया उसके होंठ बिल्कुल खामोश है वह कुछ भी कह पाने की स्थिति में नहीं थी । कलावती की खामोशी ने हरि सेवक को सारी बातें समझा दी । नाराज हरि सेवक कलावती को जोर-जोर से डांटने लगा । घर में उठती ऊंची आवाज को सुनकर आसपास के लोग भी जुट गए उन्होंने जब कलावती के कारनामे को जाना तो वह भी इस पर जोर-जोर से ठहाके लगा कर हंसने लगे अब कलावती के पास शर्मिंदा होने के सिवा कोई और रास्ता नहीं था
कहानी से शिक्षा | Moral Of This Best Inspirational Story In Hindi
हमें अपने अंदर छिपी प्रतिभा को पहचान कर उसके अनुरूप लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए और उसके लिए प्रयास करना चाहिए दूसरों की देखा देखी किसी भी काम में इंटरेस्ट जगा कर उस काम मे मास्टर बनने की कोशिश करना अक्सर व्यर्थ ही जाता है !
दृढ़ निश्चय आत्मविश्वास और पूरी लगन के साथ अगर हम किसी भी लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश करें तो यह संभव ही नहीं कि वह हमें एक न एक दिन अपना लक्ष्य प्राप्त न हो जाए परंतु एक सच यह भी है कि हर आदमी हर काम के लिए नहीं बना होता ऐसे में हमें अपने अंदर छुपी प्रतिभा के टैलेंट को समझना होगा यह जानना होगा कि आखिर हम किस काम के लिए परफेक्ट हैं हमें अपने लिए वही काम को चुनना चाहिए ।
क्योंकि दूसरों की देखा देखी जो लोग कुछ नया करने की कोशिश करने लगते हैं अक्सर उन पर यही कहावत सटीक बैठती है “जिसका काम उसी को साजे और करे तो डंडा बाजे ” अर्थात जो काम जिसका है उसी को करने दिया जाए तो अच्छा क्योंकि अगर उसे दूसरे लोग करने लगेंगे तो निश्चित रुप से परिणाम बुरे होंगे इस कहानी में कलावती को पेंटिंग की कला का कुछ भी ज्ञान नहीं था परंतु वह बिना कुछ जाने समझे बिना उसको सीखने की कोशिश किए उसमें मास्टर बनने चली आई और आखिरकार उसके साथ भी वही हुआ जो ऐसे लोगों के साथ अक्सर होता आया है ।
किसी विचारक ने कहा है कि हर कोई हर क्षेत्र का स्पेशलिस्ट नहीं हो सकता इसलिए बेहतर होगा कि हम खुद को उस दिशा में उस क्षेत्र में बेहतर बनाने की कोशिश करें जिसके लायक हम है जिसके लिए हम बने हैं जरूरत है तो बस अपने अंदर छुपी हुई प्रतिभा को पहचानने की कोई जरूरी नहीं कि जो काम दूसरे लोग कर रहे हैं उसी को कर के हम Success को प्राप्त कर सके दोस्तों Success भी इस बात पर Depend करती है कि हम उस काम को कितने अच्छे तरीके से कर सकते हैं ।