लालच का फल | Result Of Greed Inspirational Story In Hindi

एक दिन उज्जवल नगर राज्य में रानी के महल के सामने एक साधु ने दस्तक दी, साधु ने महारानी से मिलने की इच्छा जताई। महारानी से एक भिक्षुक का मिलना सैनिकों को कुछ जमा नहीं, इसलिए उसने महारानी को व्यस्त बता कर उससे मिलने से इंकार कर दिया । मगर उनका झूठ साधु ने न जाने कैसे समझ लिया, उसे झूठ से काफी नफरत थी। इसलिए वो सैनिकों पर भड़क गया।

वो उन्हें श्राप देने की बात कह कर जाने लगा। बेचारे सैनिक श्राप देने की बात साधु से सुनकर काफी भयभीत हो गए। उन्होंने साधु से क्षमा मांगी, उसे बड़े ही आदर सत्कार से बिठाया और फिर उससे वही इंतजार करने को कहा, साधु उनकी बात मान गया। वह वहीं बैठ कर रानी से मिलने की प्रतीक्षा करने लगा।

  सैनिक रानी से मिलने की साधु की इच्छा को बताने रानी के महल में प्रवेश किये। रानी काफी अच्छे स्वभाव की थी। लोग उसमें देवी का रूप देखते थे। सैनिकों के पूरी बात बताने पर रानी स्वयं महल से बाहर आई। उसने उस साधु महात्मा के पैर छुए और बड़े ही आदर के साथ उन्हे महल में लेकर आयी। उसने स्वयं अपने हाथों से बना कर साधु को कई प्रकार के व्यंजनो भोग कराया। महात्मा रानी के सेवा भाव से काफी प्रसन्न हो गए। जाते-जाते महात्मा ने अपने कमंडल से एक अनोखा हीरा निकाला और रानी के हाथ पर रख दिया।

  उस अनोखे हीरे की चमक को देखकर रानी मंत्र-मुक्त हो गई। उस ने साधु को दोबारा आने को कहा। हालांकि साधु को दुबारा बुलाने में रानी का कोई स्वार्थ या लालच नहीं था। रानी से प्रभावित साधु अक्सर रानी के महल में आता और जाते-जाते उसको पहले की भांति हमेशा बहुत ही खूबसूरत हीरा देकर जाता। साधु से मिलने वाले तोहफे को पाकर धीरे-धीरे रानी के मन में लालच जागने लगा। अब वो और हीरो की लालसा को साधु के जाने के बाद सारा सुख-चैन त्याग कर बस उन्ही अनोखे हीरो को पाने के लिए साधु का हर घड़ी इंतजार करने लगी। मगर साधु था कि वो महीने में कभी कभार ही दर्शन देता। जिसके कारण रानी का लालच अब क्रोध में बदलने लगा।

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  रानी ने एक दिन सोचा कि रोज-रोज मैं साधु का इंतजार करूं और वो महीने में एक बार आये। मै उसकी मर-मरकर इतनी सेवा करू। जिसके बदले वो मुझे बस एक अनोखा हीरा दे कर चला जाए। इससे तो अच्छा है कि मैं साधु को ही मार कर उससे सारे हीरे छीन लू। यही सोचकर वो साधु का बड़ी बेसब्री से इंतजार करने लगी। इस बार जब साधु महल मे दाखिल हुआ। तो रानी ने हर बार से कही ज्यादा अच्छे ढंग से साधु का स्वागत किया और फिर उसने साधु के लिए सात्विक भोजन का प्रबंध किया और साधु से भोजन ग्रहण करने को कहा,

 साधु ने अभी थोड़ा ही खाया था। कि तभी उसकी जीभ कांपने लगी। उसके गले में तनाव पैदा होने लगा। उसकी ये दशा देखकर महारानी मन ही मन प्रसन्न होने लगी। उसे तो लगने लगा कि बस अब वो सारे अनोखे हीरे को थोड़ी ही देर में प्राप्त कर लेगी। नीला पड़ रहे अपने शरीर को एवं अपनी स्थिति को देख साधु ये भाप गया। कि हो न हो उसकी इस दशा का कारण महारानी का परोसा ये भोजन है। वो महारानी के षड्यंत्र को समझ गया, उसने रानी से कहा

हे रानी तुमने आज तक मेरी बहुत सेवा कि जिससे प्रसन्न होकर मैंने स्त्रियों का सबसे इच्छित वस्तु हीरा तुमको देता रहा। मगर शायद उस हीरे ने तुम्हारे चरित्र को बदल कर रख दिया। और देखते ही देखते तुम देवी से दैत्य बन गयी मैं तुम्हें श्राप देता हूँ कि तुम जब भी कोई आभूषण धारण करोगी तुम्हारा तन तुम्हारा मन की भांति दैत्य सा दिखने लगेगा ।

 अब रानी जब भी कोई आभूषण धारण करती वो राक्षसनी जैसी दिखने लगती फलस्वरूप रानी अब अपनी दासियो से भी गयी गुजरे रूप मे रहने के लिए मजबूर हो गई।

         इस कहानी से क्या शिक्षा मिलती है :
           लालच अच्छे-अच्छे को बदल कर रख देता है। लालच मे उसे भी 
पता नही चलता कि उसके चरित्र में कितना बदलाव आ चुका है, वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति में हर रिश्ते की आहुति दे देता है। बेहतर होगा अगर समय से हम अपने अंदर के बदलाव को समझते और स्वयं मे लालच की भावना जागृत होने से पूर्व ही खुद को रोक ले।



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author

Karan Mishra

करन मिश्रा को प्रारंभ से ही गीत संगीत में काफी रुचि रही है । आपको शायरी, कविताएं एवं‌‌ गीत लिखने का भी बहुत शौक है । आपको अपने निजी जीवन में मिले अनुभवों के आधार पर प्रेरणादायक विचार एवं कहानियां लिखना काफी पसंद है । करन अपनी कविताओं एवं विचारों के माध्यम से पाठको, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने का प्रयत्न करते हैं ।

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