संस्कार क्या हैं अर्थ एवं महत्व हिंदी स्टोरी | Motivational Story In Hindi
धीरज और नीरज काफी अच्छे दोस्त थे । दोनों का बचपन साथ-साथ ही बीता था हालांकि दोनों के स्वभाव में जमीन आसमान का अंतर था । जहां धीरज काफी सज्जन था वही नीरज शैतानी दिमाग वाला था । मगर फिर भी उनकी यह बेमेल जोड़ी काफी दिनों तक सलामत रही चूंकि धीरज पढ़ने में काफी तेज था जबकि नीरज का झुकाव पढ़ाई-लिखाई में कम कुराफात में ज्यादा था ऐसे में उसने कुछ ही दिनों मे पढ़ाई छोड़ दी ।
“कितना कुछ बदल सा गया है मगर फिर भी ये शहर न जाने क्यूं ये आज भी उतना ही अपना सा लग रहा है जितना कल लगा करता था शायद इसीलिए कहते हैं अपना शहर तो अपना ही होता है । “
उम्र के थपेड़ों ने दोनों के रंग-रूप को इतना बदल कर रख दिया था कि एक दूसरे के सामने होकर भी वे एक दूसरे को बिल्कुल भी नहीं पहचान रहे थे । धीरज को अपने सामने पाकर नीरज खाट से उठ खड़ा हुआ । उसने धीरज से पूछा
“जी बताएं आप कौन हैं और यहां किस काम से आए हैं”
वक्त नाम भुला सकता है चेहरे को बदल के रख सकता है परंतु आवाज कभी नहीं बदलती । नीरज की आवाज सुनते ही धीरज उसे पहचान गया और उसके मुख से
“नीरज मेरे दोस्त… ”
निकल पड़ा । धीरज की आवाज सुनते ही नीरज ने भी उसे पहचान लिया और उसके चेहरे पर भी एक मुस्कान छा गई । दोनों ने एक दूसरे की तरफ उंगली उठाई शायद वे एक दूसरे से धीरज नीरज होने की बात कंफर्म कर रहे थे ।
बरसों के बिछड़े जिगरी यारों ने एक दूसरे को गले लगा लिया । उनके बीच काफी देर तक बातचीत चलती रही । थोड़ी ही देर बाद नीरज के बेटे ने घर में कदम रखा । उसने अपने पिता से धीरज के बारे में बचपन से ही सुन रखा था ।
ऐसे में जैसे ही उसने जाना कि धीरज अंकल यही है । उसने तपाक से उनके पैर छुए । नीरज के बच्चे में ऐसे संस्कार देखकर धीरज थोड़ा अचंभित रह गया क्योंकि एक चोर-उचक्के के बच्चे में ऐसे संस्कारों का होना बड़ी अजीब सी बात थी ।
नीरज और धीरज के साथ नीरज का बेटा भी वहीं बैठा रहा । धीरज ने उससे काफी सवाल जवाब भी किए । जिसका उसने बड़ी ही शालीनता और आदर से जवाब दिया । पता चला कि वह एक एम एन सी कंपनी में सेल्स मैन है । काफी देर तक हुई बातचीत के बाद धीरज नीरज से घर आने के लिए कहकर वहां से चला गया । घर पहुंचकर धीरज ने नीरज और उसके बेटे की काफी तारीफ की ।
उधर पुराने यार से पुनः मिलने की इच्छा ने नीरज को अधीर बना दिया था । ऐसे में अगली ही सुबह वह भी धीरज के घर जा पहुंचा । कल की बची कुची बातें अब उनके बीच पूरी होने लगी । धीरज का घर काफी आलीशान था । घर के सामने ही महंगी-महंगी गाड़ीया उसके रईसी की गवाही दे रहे थे ।
इतने में ही धीरज का बेटा घर से बाहर जाने के लिए निकला धीरज ने उसे रोक कर नीरज का उससे परिचय करवाना परंतु बिना धीरज का बेटा रूके बगैर बस घर से बाहर चलता चला गया और फिर लग्जरी कार में बैठकर तूफान की स्पीड से कहीं गुम हो गया ।
यह सारी बातें नीरज को काफी अजीब लग रही थी । वहीं बेटे की इस करतूत ने धीरज को भी थोड़ा शर्मिंदा कर दिया था । तब नीरज ने बात को बदलने की कोशिश करते हुए कहा
“जाने दे यार बच्चे हैं जरूर कोई इंपॉर्टेंट काम रहा होगा इसीलिए शायद थोड़ी जल्दी में था “
धीरज ने उसकी हां में हां मिलाई मगर थोड़ी ही देर बाद धीरज से रहा नहीं गया और उसने कहा
“यार बुरा मत मानना तू चोरी और लूटपाट का काम करता है जिसके वजह से तुझे कई बार जेल भी जाना पड़ता है । अक्सर पुलिस तेरे पीछे लगी रहती है । इसकी वजह से तेरी सामाजिक स्थिति भी कुछ खास अच्छी नहीं है । फिर भी तुम्हारे बेटे में इतने अच्छे संस्कार कैसे हैं जबकि मैंने अपने बेटे को शुरू से ही अच्छे से अच्छे पब्लिक स्कूलों में पढ़ाया लिखाया उसकी हर जरूरतों को पूरा किया उसे महंगे-महंगे कपड़े मोबाइल गाड़ियां और वह सब कुछ दिलाया जो भी उसने चाहा उसके किसी भी सपने को मैंने टूटने नहीं दिया । मगर फिर भी मेरे बच्चे में संस्कार नाम की कोई चीज नहीं है । ऐसा क्यों हुआ “
नीरज ने धीरज का ढाढ़स बढ़ाते हुए कहां
“कोई बात नहीं यार यह उम्र ही ऐसी होती है जब इंसान को अपने आगे कोई दिखाई नहीं देता तुम शायद भूल रहे हो । हम लोगों ने भी यह जिंदगी जी है । अब जब हमारे बच्चे ऐसी जिंदगी जीना चाहते हैं तो हम उन्हें क्यों रोक रहे हैं । उन्हें करने दो जब वक्त आएगा तो वह खुद संभल जाएंगे “
तब धीरज ने कहा
इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है | Moral Of This Inspirational Hindi Story
यद्यपि धन का महत्व जीवन में बहुत है परंतु संस्कारों से ज्यादा महत्वपूर्ण और कुछ भी नहीं इसीलिए हमें अपने बच्चों को सबसे पहले संस्कारों की शिक्षा देनी चाहिए !
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