शादी के कुछ सालों बाद पुष्पा ने एक बहुत ही सुंदर कली को जन्म दिया । जिसका नाम दीपिका रखा गया । उसके पिता उसे दीपा कह कर पुकारते थे । इस नई पीढ़ी में जन्मी पहली नन्ही किरण का मान जान बहुत था । नन्ही कली स्वभाव से ही काफी सरल थी ।
सब ऐसे हसते देख सब आश्चर्य मे पड़ गए । तभी उसने छत की दीवार से चिपकी एक छिपकली की ओर इशारा करते हुए कहा
“वो देखो वो रही हमारी नन्ही परी की जान की दुश्मन जिसने हम सबको दौड़ा दिया”
“तो हमारी परी को छिपकली से डर लगता है”
पहले तो लड़के उसका सवाल ठीक से सुन नहीं सका या फिर समझा नहीं पाया परंतु उसके द्वारा सवाल दोबारा दोहराने पर उसे बातें समझ में आ गई”
“हां सच, एकदम सच, पर जिस छिपकली को तुम समझ रही हो उससे नहीं बल्कि मुझे तो तुम जैसी छिपकलियों से डर लगता है”
परंतु इन सब खुशियो के बीच कुछ चिंताजनक खबर भी थी, वो ये कि एक तो समय से पहले जन्मे बच्चे की स्थिति नार्मल नही थी दूसरे डॉक्टरो द्वारा किए गए ऑपरेशन के बाद परी को काफी ब्लीडिंग हो रही थी । कई घंटों के प्रयास के बाद डॉक्टर रक्त के बहाव को रोकने में कामयाब हुए ।
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सुबह से शाम हो चुकी थी । सब थोड़ा रिलैक्स हो रहे थे । नींद में जा चुकी परी की जब आँख खुली तो उसने अचानक छत पर चिपकी एक छिपकली को देखा जो उसे घुरे जा रही थी । वह कुछ सोचे समझे बगैर घबराकर बेड से नीचे कूद पड़ी । उसके हाथों से चढ़ रही ड्रिप की सुई उखड़ गई ।
Moral Of The Story
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