एक ब्राह्मण परिवार में जन्मा पृथ्वी बहुत अकर्मण्य बालक था । वह सिर्फ खेलकूद मौज मस्ती एवं खाने पीने में ही लगा रहता । काम करने का उसका कोई इरादा नहीं था । उसे किसी काम में रुचि नहीं थी । ऐसे कामचोर बालक से उसके माता-पिता काफी रुष्ट रहा करते थे । एक दिन नाराज पिता ने पृथ्वी से कहा
अभी पृथ्वी पिता से कुछ कहता कि तबतक नाराज पिता ने पृथ्वी को घर से निकल जाने को कहा, बेचारे पृथ्वी ने पिता को हर तरह से मनाने की कोशिश की मगर उसकी बातों का पिता पर कोई असर नहीं हुआ अतः हार मान कर पृथ्वी को वहां से जाना पड़ा ।
रास्ते में एक जंगल पड़ा जिसमें एक बहुत पुराना मंदिर था । काफी देर से चलते-चलते थक चुके पृथ्वी ने मंदिर मे ही विश्राम करना उचित समझा वह भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति के पास जाकर बैठ गया । तभी उसकी नज़र मूर्ति के पास पड़े केलो और मिठाइयों पर पड़ी ।भूखे प्यासे पृथ्वी ने उन फलों को उठाकर खाना शुरु कर दिया ।
तभी अचानक उसे वहां किसी के मौजूदगी का एहसास हुआ घबराये पृथ्वी ने केले के छिलकों को अपने पजामे की जेब में छुपाने की कोशिश करते हुए पलट कर पीछे देखा तब उसे वहां मंदिर के पुजारी खड़े दिखाई दिए वह उसकी इन हरकतों पर मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे । डरे सहमे पृथ्वी को देखकर पुजारी जी बोले
“डरो मत यह सब तुम्हारे लिए ही तो है और वैसे भी जिस दान से किसी के भूखे की भूख मिट सके तो समझो वो दान सफल हुआ । जिस किसी ने भी यह फल फूल यहां चढाया है उसको निश्चित रूप से पुण्य मिलेगा तुम इन्हें खा सकते हो”
पुजारी जी की बातों को सुनकर पृथ्वी ने छुपाए हुए केलों को निकालकर उन्हें पुनः खाना शुरू कर दिया पुजारी जी ने वहां पड़ी और खाने की वस्तुएं भी उसे लाकर दे दी उन्हें खा कर पृथ्वी ने एक जोर की डकार ली और टर्रा कर वही फर्श पर सो गया । जब अंधेरा होने को था तब पुजारी ने उसे जगा कर बोला
“अरे भाई अंधेरा होने को है जाना नहीं है क्या”
पृथ्वी चुपचाप उठ कर बैठ गया और इधर उधर देखने लगा उसकी ऐसी स्थिति को देखकर मंदिर के पुजारी ने उससे उसके बारे में जानना चाहा तब पृथ्वी ने उन्हें सारी बात बताइए और उसे मंदिर में ही कुछ दिन रहने देने के लिए आग्रह करने लगा । पुजारी ने उसे वहां रहने की अनुमति दे दी ।
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इसप्रकार अब वह पुजारी के साथ मंदिर में ही रहता और मंदिर की साफ सफाई एवं रखरखाव में उनका हाथ बटाता चूँकि पुजारी जी बहुत बड़े सिद्ध पुरुष थे इसलिए उनसे मिलने और उनकी कृपा प्राप्त करने दूर-दूर से लोग आते और खूब सारा दान धरम भी करते ।
लेकिन समय के साथ पुजारी जी अब काफी वृद्ध हो चुके थे वे अब काफी अस्वस्थ रहने लगे थे यह देखकर पृथ्वी को भविष्य मे अपने जीवन यापन की चिंता सताने लगी । एक दिन पृथ्वी ने डरते-डरते बाबा से कहा
“महाराज आप काफी बुढे एवं अस्वस्थ हो चुके हैं आप जैसे सिद्ध पुरुष से मिलने के लिए ही लोग दूर-दूर से चलकर इस घने जंगल में आते हैं और आपकी कृपा प्राप्त करते हैं और साथ ही कुछ दान दक्षिणा भी दे जाते हैं । जिससे हमारा जीवन चलता है परंतु आपके जाने के बाद भला कौन यहाँ आएगा और तब मेरा क्या होगा मैं अपनी दो जून की रोटी का प्रबंध कैसे कर सकूंगा”
पृथ्वी की परेशानियों को समझते हुए पुजारी जी ने पृथ्वी का हाथ पकड़कर उसे अपने शयनकक्ष में ले गए । पुजारी जी के शयन कक्ष में भी एक छोटा सा मंदिर था जिसमें एक घंटी थी । पुजारी जी ने पृथ्वी को घंटी की तरफ इशारा करते हुए कहा कि
“मेरे जाने के बाद यदि तुम्हें पैसों की समस्या से जूझना पड़े तब तुम मध्य रात्रि के बाद और सुबह होने से पहले इस घंटी को एक बार बजा देना इससे तुम्हारी सारी समस्याओं का निवारण हो जाएगा”
पृथ्वी बाबा की बातों को सुनकर काफी प्रसन्न एवं निश्चिंत हो गया थोड़े ही दिनों बाद बाबा का स्वर्गवास हो गया । उनके जाने के बाद उसने जैसा सोचा था बिलकुल वैसा ही हुआ धीरे-धीरे मंदिर मैं लोगों का आना लगभग शून्य हो गया । पृथ्वी को अब अपने खाने-पीने की चिंता सताने लगी ।
एक रात जब वह बिस्तर पर लेटे करवटें बदल रहा था तभी उसे बाबा की बातें याद आई वह फौरन बंद पड़े बाबा के शयन कक्ष में गया और मंदिर की घंटी बजाने लगा । थोड़ी ही देर में मंदिर के फर्श पर दो स्वर्ण मुद्राएं गिरी । जिसे देख वह बहुत खुश हुआ । वह उन स्वर्ण मुद्राओं के बदौलत ढेर सारा राशन खरीद लाया अब तो उसके सारे कष्ट खत्म हो गए थे ।
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लोगों के मंदिर में न आने एवं बाबा की अनुपस्थिति में उसे मंदिर की साफ-सफाई का कोई विशेष ध्यान देने की आवश्यकता अब नहीं थी और दूसरी तरफ बाबा की बताई घंटी से उसके पैसो की समस्या का भी निवारण हो गया था । अब तो उसके दिन बहुत ही मजे से कट रहे थे ।
तभी उसने एक दिन एक बहुत बड़े व्यापारी को वहां से गुजरते देखा । वह एक खुबसूरत तांगे पर बैठा हुआ था जो स्वर्ण से सुसज्जित था उसके आगे पीछे घुड़सवार चल रहे थे । व्यापारी के ठाठ को देख कर पृथ्वी के मन में भी अमीर बनने की इच्छा जाग गई ।
वह वहीं बैठे-बैठे मध्यरात्रि का इंतजार करने लगा मध्य रात्रि होते ही वह भागे-भागे घंटी के पास गया और उसे जोर जोर से बजाने लगा । धीरे-धीरे फर्श पर स्वर्ण मुद्राओं का ढेर जमा होने लगा । पृथ्वी बहुत खुश था हालांकि वह घंटी को बजाते-बजाते काफी थक चुका था परंतु फिर भी अमीर बनने की इच्छा में वह निरंतर प्रयास करता रहा ।
इन्हीं प्रयासों में देखते ही देखते रात का अंधेरा जाने कब छट गया और सूरज की लालिमा धरती पर बिखरने लगी । सुबह होते ही अचानक मंदिर की घंटी एवं नीचे फर्श पर पड़ी ढेर सारी स्वर्ण मुद्राएं कहीं गायब हो गई । यह देखते ही पृथ्वी धड़ाम से नीचे बैठ गया । उसके दोनों हाथ फर्श पर थे और आंखें उसी घंटी को इधर-उधर खोज रही थी ।
तभी उसे बाबा द्वारा, घंटी का इस्तेमाल सिर्फ मध्य रात्रि के बाद एवं सुबह होने से पहले करने की हिदायत याद आयी । जैसे ही उसे ये बातें याद आई उसने दोनों हाथों से अपना माथा पकड़ लिया । कहानी से शिक्षा | Moral Of This Best Inspirational Story In Hindi
लालच करना बुरी बात है ।
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करन मिश्रा को प्रारंभ से ही गीत संगीत में काफी रुचि रही है । आपको शायरी, कविताएं एवं गीत लिखने का भी बहुत शौक है । आपको अपने निजी जीवन में मिले अनुभवों के आधार पर प्रेरणादायक विचार एवं कहानियां लिखना काफी पसंद है ।
करन अपनी कविताओं एवं विचारों के माध्यम से पाठको, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने का प्रयत्न करते हैं ।