Short Motivational Story of Hard-Earned Cash in Hindi
पंकज बचपन से ही बहुत गुस्सैल स्वभाव का था । बात-बात पर खाने की थाली फेंक देना, बैठी हुई कुर्सी को फर्श पर दे मारना, उसकी आदतों में शुमार था । हालांकि उसके पिता, दयाल उसे बहुत समझाते परंतु वह सुधरने का नाम नहीं लेता तभी एक दिन दयाल ने पंकज से कहा
तुम्हारा तोड़ने में ज्यादा परंतु जोड़ने में मन कम लगता है क्योंकि तोड़ने में जहां थोड़ा वक्त और थोड़ी मेहनत लगती है । वही जोड़ने में बहुत सारी मेहनत और कभी-कभी पुरी उम्र निकल जाती है । जिस दिन तुम अपनी मेहनत के बलबूते कुछ जोड़ पाओगे उस दिन तुम्हें चीज़ों की सही कीमत समझ आ जाएगी और तब शायद तुम किसी भी चीज को नुकसान पहुंचाने से पहले हजार बार सोचोगे
परंतु हर बार की तरह इस बार भी पंकज को पिता की बातें कोरे भाषण के समान लगती हैं । वह उनकी बातों पर गौर करने की बजाय उसे एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देता है । पंकज के पिता हाकर का काम करते हैं । वो रोज सुबह तीन बजे ही उठकर रेलवे स्टेशन जाते हैं और वहां से अखबारों के बंडल बनाकर गली-गली अखबार वितरित करते हैं ।
धीरे-धीरे समय के साथ दयाल बूढ़ा होने लगा है । ढलती उम्र के साथ ही उसे डायबिटीज, हाइपरटेंशन जैसी ढेरों बीमारियां अपने गिरफ्त में लेने लगती हैं । एक दिन अचानक उसका शुगर लेवल बढ़ जाने से वह काम पर नहीं जा पाता जिसके कारण शाम होते-होते उसे ग्राहकों के फोन आने लगते हैं ।
हालांकि पहले तो दयालु का हाल जानने के बाद ग्राहक उसे आराम करने की सलाह देते हैं परंतु वक्त के साथ उनका संयम जबाब देने लगता है तब दयाल की पत्नी पंकज से कहती है
बेटा पिता की तबीयत आज नहीं तो कल संभल ही जाएगी परंतु ज्यादा वक्त गुजर जाने से कहीं उनके वर्षों के बनाए हुए ग्राहक हाथ से न निकल जाएं । क्यों नहीं कुछ दिनो के लिए तुम अपने पिता का काम संभाल लो । वरना इस मुश्किल वक्त में जो चार पैसे घर में आ रहे हैं वो भी आने बंद हो जाएंगे
वक्त की नजाकत को समझते हुए पंकज अपनी माँ की बात मान लेता है । वह अगले दिन, सुबह तीन बजे ही उठकर रेलवे स्टेशन पहुंच जाता है और वहां अखबारों का बंडल तैयार कर, उन्हें वितरित करने शहर में निकल पड़ता है परंतु इतने ही काम में वो इतना थक चुका है कि उसका मन अब और आगे काम करने का नहीं बल्कि घर जाने का हो रहा है परंतु माँ को दिए वादे और पिता की खराब तबियत के नाते वह गली-गली में अखबार बांटने के लिए मजबूर है ।
घर लौटने पर वह पूरा दिन बिस्तर पर पड़ा रहता है । उसे बहुत ही गहरी नींद आई है । शाम को उठने के बाद भी उसके शरीर में बहुत दर्द है । वह अपनी पीड़ा अपनी माँ को बताता है । अगले दिन फिर तीन बजे उसकी माँ उसे उठाती है परंतु पंकज का अब काम पर जाने की कोई इच्छा नहीं है परंतु मन मसोसकर वह एक बार फिर स्टेशन की ओर निकल पड़ता है ।
इस प्रकार पहले हफ्ते और फिर महीने गुजर जाते हैं परंतु इतनी कड़ी मेहनत के बाद ग्राहकों से जो चार पैसे उसे प्राप्त होते हैं वो पैसे बहुत थोड़े हैं और वो उसकी कड़ी मेहनत के सामने कुछ भी नही जिसके नाते पंकज पैसो को पाकर भी खुश नही होता और मायूस होकर घर लौट जाता है ।
धीरे-धीरे दयाल की तबीयत ठीक हो जाती है और वह एकबार फिर काम पर जाने लगता है ।
परंतु इन चार दिनों की मेहनत ने पंकज की आंखे खोल दी हैं । उसका गुस्सैल स्वभाव तो मानो कहीं गायब ही हो गया है । अब वह भूल कर भी किसी वस्तु को हानी नहीं पहुंचाता बल्कि अब वह हर समान की हिफाजत करने की कोशिश करता है । शायद उन थोड़े दिनों की मेहनत में ही उसे चीजों का मूल्य समझ आ गया है ।
किसी भी वस्तु का मूल्य उसे कमाने वाला ही जानता है इसलिए किसी भी चीज को नुकसान पहुंचाने से पहले उसके लिए की गई मेहनत को समझें ।
दोस्तों क्रोध कभी किसी के लिए फायदेमंद नहीं रहा इसमें अक्सर हमारा नुकसान ही होता है यदि क्रोध आए तो उसे तुरंत जताने की बजाय थोड़ा रूके, उस पर विचार करें, कुछ वक्त दें आप देखना आपका ऐसा realize होगा कि उस वक्त क्रोध न करके cool रहने का आपका फैसला बिलकुल सही था और तब आप जिस भी नतीजे पर पहुंचेंगे । वह definitely आपके लिए लाभकारी साबित होगा । यदि आप भी पंकज की भांति गुस्सैल स्वभाव के हैं तो आज ही अपना स्वभाव बदल ढालें । अपने क्रोध पर नियंत्रण करने के लिए मेरी बताई गई टिप्स को फॉलो करे सफलता मिलेगी !