हिन्दी हूँ मैं | हिंदी दिवस पर कविता | Hindi Diwas Poems in Hindi

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हे भारत !
 मत  भूल, देख जरा दर्पण में
तेरे ही माथे की बिन्दी हूँ
हाँ मैं हिन्दी हूँ, हाँ मैं हिन्दी हूँ।
मेरा इतिहास बड़ा पुराना है मेरे पूर्वजों ने माना है
नहीं कोई अपना बेगाना है.
जिस देववाणी पर तू इतराता है
यह विश्व जिसको श्रेष्ठ बताता है
जिसमें जीवन के भेद छिपे
मृत्यु के रहस्य को भी जिसने जाना है
मैं उसकी ही बेटी , तेरे माथे की बिन्दी हूँ
हाँ,हाँ मैं हिन्दी हूँ।
वर्णों की सुंदर सुघड़ संघटना
कहते हैं वैज्ञानिक संरचना
वह देवनागरी काया मैंने 
अपनी जननी का पाया है,
पाकर उसका स्नेह सान्निध्य
अंतरतम में उसे बसाया है।
कदम बढ़ाया प्रगति के पथ पर
संस्कारों को भी नहीं भुलाया है।
माँ ने कहा था वसुधैव कुटुम्बकम् 
इस सम्पूर्ण धरा धाम को दिल से
मैंने भी अपनाया है, तभी तो कहती आयी हूँ..
“मैं, निखिल विश्व का अंग..
पृथक भाग का भाव पूर्णता को करता है भंग।,”
इसलिए,  हे भारत!
मत भूल मुझे तेरे ही माथे की बिन्दी हूँ
हाँ मैं हिन्दी हूँ हाँ मैं हिन्दी हूँ।
अमर प्रेम की गाथा मुझमें
मुझमें जीवन का उल्लास
मेरी ही ध्वनियों में गुञ्जित ,वीरों का उत्तुंग इतिहास ,
उर में उदारता को भरकर मैं निकली प्रगति केपथ पर
बिना स्वयं को खोये ही सकल विश्व को पाया है,
जहाँ जो भी मिला सुंदर निर्मल
 उससे अपना गेह सजाया है
उर्दू हो या अरबी,अवधी, ब्रजभाषा ,भोजपुरी
या फिर हो अंग्रेजी
चुन चुन कर सबसे हीरे मोती अपनी माला में गुँथवाया है
 रंग बिरंगी तेरी संस्कृति में
खिले विविध रंगों के फूल
माना , अलग अलग है रंग रूप पर ,
सबका एक ही मूल। 
मैंने भी अपनी प्राण धारा में विविधता में एकता के
महामंत्र को बसाया है। 
प्राणों में संस्कार हैं तेरे आँखों में सपनों भरा संसार
उर आँगन में बहती मेरे,  तेरी पावन संस्कृति की रस धार
पर,, सहा नहींजाता अब मुझसे
अपने ही घर में सौतेलेपन का यह दुर्वह भार।
हे भारत !
मत भूल मुझे  ,मैं तेरे ही माथे की बिन्दी हूँ
हाँ मैं हिन्दी हूँ !!  हाँ मैं हिन्दी हूँ।
ऐ मेरे सरताज हिन्द !
मत बना मुझे किसी दिवस का मोहताज
मैं तेरी पहचान मैं ही हूँ तेरी एक आवाज ।
मत कर मेरा इतना अपमान
गर मैं टूटी टूटकर बिखर जाएगा तेरा संसार ।
मैं नहीं केवल एक भाषा
मुझमें छिपी तेरी संतति की विपुल जिज्ञासा।
बाँध कर अपने सुर में तेरे
रूप रंग की सहज परिभाषा
वीर सपूतों से तेरे कहलायी मैं राजभाषा।
तेरी गौरव गाथा गाने वाली 
रग रग में तुम्हें समाने वाली
हिन्दी हूँ मैं !  हिन्दी हूँ मैं !
जान मुझे !  पहचान मुझे !
हे भारत !
दे सम्मान मुझे 
हिन्दी हूँ मैं हिन्दी हूँ मैं ।

Writer
         बंदना पाण्डेय वेणु               

   

 यह कविता “डॉ बन्दना पाण्डेय जी” द्वारा रचित है । आप मधुपुर, झारखंड स्थित एम एल जी उच्च विद्यालय, में सहायक शिक्षिका हैं । आपको, कविता, कहानी और संस्मरण के माध्यम से मन की अनुभूतियों को शब्दों में पिरोना बेहद पसंद है । अपनी रचना site पर साझा करने के लिए हम उनका हृदय से आभार व्यक्त करते हैं!


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author

Karan Mishra

करन मिश्रा को प्रारंभ से ही गीत संगीत में काफी रुचि रही है । आपको शायरी, कविताएं एवं‌‌ गीत लिखने का भी बहुत शौक है । आपको अपने निजी जीवन में मिले अनुभवों के आधार पर प्रेरणादायक विचार एवं कहानियां लिखना काफी पसंद है । करन अपनी कविताओं एवं विचारों के माध्यम से पाठको, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने का प्रयत्न करते हैं ।

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