Story On Superstitions In Hindi | Funny Story Of Fish And Fisherman
मछुआरा परिवार में जन्मा मल्लू अब युवा हो रहा था । युवा होने के साथ ही उसे अपनी जिम्मेदारियों का भी अहसास होने लगा था जिसके फलस्वरूप उसने कोई काम धंधा शुरू करने की सोची
अभी वह काम धंधे के बारे मे सोच ही रहा था कि तभी पड़ोस के मुरारी काका ने उससे कहा
“देखो बेटा वैसे तो नशे के पीछे तुम्हारे पिता ने कुछ भी नही छोड़ा, सबकुछ बेच ढाला परंतु अभी भी थोड़ी भूमि तुम्हारे पास बची है । मै सोच रहा था कि क्यूं न तुम उसी जमीन में मछलियां पालो और जब वे बड़ी हो जाए तो उन्हें ले जाकर खुद ही बाजार में बेच आओ । इस प्रकार तुम एक ही काम से दोगुना मुनाफा कमा सकोगे”
मुरारी काका की बातें मल्लू को भा गई वह बहुत खुश हुआ उसे ऐसा लगा जैसे किसी भटके राहगीर को किसी ने राह दिखा दी हो । अगले ही दिन वह फावड़ा लिए अपनी छोटी सी जमीन पर पहुंच गया और उस पर ताबड़तोड़ खुदाई शुरू कर दी ।
कुछ ही दिनों में उसने पूरी जमीन को काफी गहरा कर दिया फिर उसमें पानी भर कर उसमें मछलियां छोड़ दी । उसने उन मछलियां की काफी सेवा भी की जिसके परिणामस्वरूप कुछ ही महीनों में मछलियां तैयार हो गई ।
अब समय था उन्हें बाजार में ले जाकर बेचने और दोगुना मुनाफा कमाने का । मल्लू के गांव के पास ही प्रत्येक शुक्रवार को हाट की बाजार लगती थी इसलिए मल्लू ने अगली हाट की बाजार में मछलियों को ले जाकर बेचने की योजना बनाई ।
वह अगले शुक्रवार का काफी बेसब्री से इंतजार करने लगा और देखते ही देखते वो दिन भी आ ही गया ।
सुबह होते ही मल्लू ने सबसे पहले भगवान की पूजा अर्चना की माथे पर तिलक लगाया और फिर कंधे पर मछलियां पकड़ने वाला जाल रखते हुए बाहर की ओर निकल पड़ा परंतु उसने जैसे ही चौखट से पांव बाहर निकाला वैसे ही उसे छींक आ गई मल्लू समझ गया कि यह इस शुभ काम का सही वक्त बिलकुल भी नहीं इसलिए उसने मछलियों को पकड़कर बाजार में बेचने की अपनी आजकी योजना को अगले शुक्रवार तक टाल दिया और अगले शुक्रवार का इंतजार करने लगा ।
इंतजार का समय खत्म हुआ और अगला शुक्रवार भी आ ही गया मल्लू ने पिछली बार की तरह इस बार भी भगवान की पूजा अर्चना की माथे पर तिलक लगाया और फिर कंधे पर मछलियों का जाल रखते हुए बाहर की ओर निकल पड़ा परंतु मल्लू ने जैसे ही चौखट के बाहर पैर निकाला अचानक बिल्ली रास्ता काट गई । मल्लू समझ गया कि यह इस शुभ काम का सही वक्त बिलकुल भी नहीं इसीलिए उसने अपनी योजना अगले शुक्रवार तक के लिए टाल दी ।
———-
देखते ही देखते अगला शुक्रवार भी आ ही गया मल्लू ने हर बार की तरह इस बार भी भगवान की पूजा अर्चना करने के बाद पूरी तैयारी के साथ बाहर की ओर निकल पड़ा परंतु वह अभी घर से बाहर निकला ही था कि तभी अचानक पीछे से मुरारी काका ने उसे आवाज लगाई और पूछा
“इतनी सुबह-सुबह कहां जा रहे हो”
मुरारी काका कि इस बात पर तो मल्लू को बहुत गुस्सा आया आखिर “किसी शुभ कार्य के लिए जा रहे व्यक्ति को टोक देना कहां तक सही” किन्तु मल्लू ने काका को कुछ नही कहा । वह बिल्कुल शांत रहा ।
परंतु वह समझ गया कि यह इस शुभ कार्य का सही वक्त बिल्कुल भी नहीं इसलिए उसने अपनी योजना अगले हाट की बाजार तक के लिए टाल दी ।
थोड़े इंतजार के बाद आखिरकार चौथा शुक्रवार भी आ ही गया मल्लू ने फटाफट अपने दैनिक कार्य निपटाए और फिर पूरी तैयारी के साथ बड़ी ही तेजी से बाहर निकल पड़ा परन्तु जल्दबाजी में मल्लू खुद पर नियंत्रण खो बैठा, उसका हाथ अचानक सामने लटक रहे लालटेन से जा टकराया परिणामस्वरूप लालटेन मे लगा शीशा नीचे गिरकर चकनाचूर हो गया ।
“शुभ कार्य से ठीक पहले कांच का टूटना .. .?”
मल्लू समझ गया की यह इस शुभ कार्य का सही वक्त बिल्कुल भी नहीं लिहाजा । वह एक बार फिर उल्टे पांव वापस लौट गया ।
इस प्रकार इन छोटी-छोटी बाधाओं के चलते चार हफ्ते का समय निकल चुका था । एक दिन मुरारी काका ने उसे समझाया
“बेटा मछलियां अब काफी बड़ी हो चुकी हैं लिहाजा उनका उचित मूल्य तुम्हें मिल सकता है । वक्त का कुछ पता नही कि कब क्या हो जाए इसलिए इसमें और देर करना ठीक नही”
मल्लू ने हां में सिर हिलाया और वहां से चला गया ।
———-
वक्त की नजाकत को समझते हुए अगले शुक्रवार को मल्लू पौने दो बजे ही उठ गया । उसने फटाफट सारे दैनिक कार्य निपटाए और बाहर रखे तखत पर बैठ कर अंधेरा छटने का इंतजार करने लगा ।
वह अपनी सफलता को लेकर आज काफी उत्साहित है परंतु तभी काफी जोर जोर से बिजली कड़कने लगती हैं और थोड़ी ही देर में भीषण बारिश शुरू हो जाती है बारिश है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही । उसी बारिश में मुरारी काका उसके पास आते हैं और उससे कहते हैं ।
“बेटा बारिश काफी देर से हो रही है ऐसे में यदि इस बारिश से तालाब के पानी का स्तर उठकर तालाब के सतह तक जा पहुंचा तो तालाब की मछलियां बहकर आसपास के खेतों में जा सकती है और तुम्हे भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है “
काका की बातों को सुनकर मल्लू के चेहरे का रंग उतर गया । हालांकि तब तक अंधेरा छट चुका था । वह काफी तेजी से तालाब की ओर दौड़ा परंतु वहां पहुंचने पर जो दृश्य मल्लू के आंखो के सामने था उसे देख उसके चेहरे की हवाइयां उड़ने लगी ।
तालाब पानी से बहुत हद तक भर चुका था मल्लू ने और देर न करते हुए फटाफट अपना जाल तालाब में छोड़ दिया और मछलियां पकड़ने के काम में जी जान से जुट गया । मगर कुछ ही पलों में तालाब पानी से लबालब हो गया ।
नतीजा ये हुआ कि तालाब का पानी बहकर आसपास के खेतों में जाने लगा और उसके साथ ही तालाब की मछलियां भी बहकर पास के खेतो से होते हुए दूर-दूर जाने लगी ।
उधर पानी के साथ बहकर आयीं मछलियों को गांव वाले दौड़-दौड़ कर पकड़ना शुरू कर देते है । अब चूँकि पानी में बह रही उन मछलियों पर मल्लू के नाम की कोई मोहर नही थी ऐसे में मल्लू द्वारा गांव वालों को यह समझा पाना बेहद कठिन साबित हो रहा था कि ये बहती मछलियां किसी और की नही बल्कि उसकी हैं और शायद लूट मे डूबे गांव वाले उसकी बातों को समझना भी नही चाहते थे ।
कहानी से शिक्षा | Moral Of This Short Inspirational Story In Hindi
अंधविश्वास मे फंसकर हमें कुछ भी हासिल नहीं होता बल्कि इसमें पड़कर हम बहुत कुछ गवां देते हैं इसलिए जहां तक हो सके हमें खुद को इन अंधविश्वासो से दूर रखना चाहिए !