यह बात सबको चौंका देने वाली थी क्योंकि ये प्रतियोगिता एक रियल युद्ध जैसा था । असल मे राजा अपने दोनों युवराजों में सर्वश्रेष्ठ कौन, इस बात का पता इस प्रतियोगिता से लगाना चाहते थे। हालांकि राजा सहित सभी इस बात से भलीभांति परिचित थे कि राजा के ज्येष्ठ पुत्र युद्ध में पूर्णता परांगत एवं निपुण है। वह अभी तक कई लड़ाईयां लड़ चुके हैं और तकरीबन उन सभी में उन्हे विजय प्राप्त हुई हैं।
वही दूसरा पुत्र युद्ध कौशल में पारंगत तो है, मगर उसमें अपने बड़े भाई के जैसा कोई अनुभव नहीं है। इस बात से चिंतित सेनापति ने इस तरह के जोखिम भरे खेल को रोकने के लिए राजा से आग्रह किया। मगर राजा ने सेनापति से ऐसा कुछ भी करने से साफ मना कर दिया।
राजा “हा रानी, मैं जानता हूं । मगर मेरी विवशता को भी समझो मैं कोई मदारी का खेल देखने की इच्छा नहीं रखता मैं जानता हूं कि मेरे दोनों बेटों से ज्यादा वीर और योग्य राज्य में और कोई नहीं। मगर इन दोनों में श्रेष्ठ कौन है यह समझ पाना मेरे लिए काफी मुश्किल हो रहा है। इसलिए मुझे यह कठोर कदम उठाना पड़ा”।
राजा के जवाब और विवशता के सामने बेचारी रानी खामोश हो गई और मुहँ गिराए वापस अपने कक्ष की तरफ चली गई। चेहरे पर उनके जितनी शांति थी, भीतर उतनी ही हलचल मची हुई थी।
मर्यादा पुर के राजा ने स्वयं युद्ध की कमान संभाली। अपने ज्येष्ठ पुत्र के साथ महाराजा किले के बाहर युद्ध के लिए निकल पड़े, वही छोटा पुत्र माँ के साथ ही महल में रुक गया। कई दिनों तक युद्ध चलता रहा मगर इसी बीच रात्रि में विश्राम के समय राजा को विरोधियों ने धोखे से घायल कर दिया।
मन की इस व्याकुलता में राजकुमार भोजन पानी ग्रहण करना भी भूल गए। उसके एक पैर ज्योही बाहर निकलते तो दूसरे पैर उसे अंदर की ओर खींच लेते। अब उसका कहीं एक जगह मन ही नहीं लगता। आधी-आधी रातों को वह इधर उधर खड़ा गुमसुम कुछ सोचता रहता ।
उसके इस हाल को कोई कई दिनों से गौर कर रहा था और वह थी महारानी कई दिनों से युवराज द्वारा कभी अपने पिता को तो कभी किले के गेट की ओर टकटकी लगाते देखती थी। एक दिन महारानी राजकुमार के पास आई और बोली,
“क्या बात है, तुम ऐसे उदास और गुमसुम क्यों हो”
युवराज माँ की ऐसी बातों को सुनकर आश्चर्य चकित था। अब उसका ध्यान किले से हटकर माँ की ओर आ टिका।
माँ ने कहा मुझे पता है “तुम युद्ध में जाना चाहते हो। मगर हार का भय तुम्हें आशंकित कर रहा है। ऐसा द्वन्द इस परिस्थिति में हर किसी में हो सकता है । वैसे मैं तुम्हें फैसला लेने में, तुम्हारी मदद कर सकती हूं। मगर आखरी फैसला तो तुम्हें ही करना होगा”
“वैसे चिंता की कोई बात नही है युवराज, हमारे पास अभी कई योद्धा मौजूद हैं । युद्ध चाहे कितना भी लम्बा चले आखिरकार विजय हमारी ही होगी”
युवराज को सब समझ में आ गया था। अब और देर न करते हुए, वो किले के बाहर निकल पड़ा। बहुत ही साहस और कौशल के साथ उसने रणभूमि में दुश्मनों के छक्के छुड़ाए, और राज्य को विजय दिलाई। युद्ध से लौटने पर पिता ने युवराज को हाथों हाथ लिया। युवराज की चर्चाएं पूरे राज्य में होने लगी। इसके बाद न जाने उसने कितनी लड़ाई लड़ी। इन लड़ाइयों को लड़ते-लड़ते एक दिन वह वीरगति को प्राप्त हुआ ।
Moral Of The Story
• Best शायरी यहाँ पढें
• Best Love शायरी यहाँ पढें
• Best Sad शायरी यहाँ पढें