ग़ज़ल
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दिलों पर जब से आतिश हो रही है
निग़ाहों की गुज़ारिश हो रही है
ज़माना चाहता है मौत लेकिन
मुझे जीने की ख़्वाहिश हो रही है
ख़ुदा के नाम पर सब मज़हबों में
इबादत की नुमाइश ही रही है
नगर की सारी गलियाँ सूनी क्यों हैं
कहीं क्या कोई साज़िश हो रही है
ग़ज़ल के नाम पर होते लतीफ़े
ग़ज़लकारों से लग्ज़िश हो रही है
Writer
बलजीत सिंह बेनाम
आप पुरानी कचहरी कॉलोनी, हाँसी के रहने वाले हैं । आप संगीत के अध्यापक हैं इसके साथ-साथ आपने विविध मुशायरों एवं सभा संगोष्ठियों में अपना उत्कृष्ट योगदान दिया है । आपकी ऐसी ही ढेरों रचनाएं विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं । बलजीत जी को उनके कला के लिए विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित भी किया जाता रहा है । ई मेल-baljeet s312@gmail.com
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