Lakshmi is the daughter of the house Story In Hindi| women empowerment
मध्यम वर्गीय परिवार मे ब्याही गई आरती ने शादी के कुछ साल बाद ही स्वाति और स्नेहा दो जुड़वा बेटियों को जन्म दिया । दो-दो बेटियों के जन्म के बाद अब इंतज़ार था तो घर के चिराग का परंतु काफी अरसा बीत जाने के बाद भी आरती परिवार को ये खुशी देने में असफल रही । परिणामस्वरूप उसे ससुराल वालों का कोप भाजन होना पड़ा ।
समय के साथ निराश हो रही माँ ने आरती के पति गिरीश से कहा
“तो क्या में यह समझ लूं कि हमारा वंश बस यही तक था”
माँ की कड़वी बातों को सुनकर आरती का दिल बैठ गया । वह काफी भयभीत हो गई । उसे अपनी शादीशुदा जिंदगी और अपनी दोनो बेटियों के भविष्य की चिंता सताने लगी परंतु आखिरकार वही हुआ जिसका आरती को डर था ।
माँ-बेटे ने वंश की प्राप्ती के लिए नई बहू लाने की सोची । आरती जानती थी कि वह उन्हें उनके मकसद मे कामयाब होने से नहीं रोक पाएगी । ऐसे में उसने अपनी छोटी बहन अंजनी को ही अपने पति गिरीश की दूसरी पत्नी बनाने मे अपनी भलाई समझी ।
आखिरकार माँ-बेटे की मनोकामना पूरी हुई गिरीश को अपनी दूसरी पत्नी अंजनी से एक पुत्र एवं दो पुत्रियाँ प्राप्त हुई । घर को वारिस देने के नाते जहाँ एक तरफ अंजनी का मान जान आरती से काफी बढ़ गया वहीं दूसरी तरफ अंजनी के रंग-ढंग भी पहले से बहुत ज्यादा बदल गए । अब वह आरती की बहन कम, सौतन ज्यादा बन बैठी ।
घर में अब बस अंजनी की चलती आरती तो बस कामवाली ही बनकर रह गई । जब स्वाति और स्नेहा आठवीं कक्षा में थी तब बाहर बरामदे में बैठे गिरीश से अंजनी ने कहा
“स्वाति और स्नेहा अब काफी बड़ी हो चुकी हैं मेरी मानो तो कोई अच्छा रिश्ता ढूंढ कर उनका हाथ पीला कर दो । बेटियां हैं ज्यादा पढ़-लिख गई तो मुड़े बैठ जाएंगी और तब उनके लायक रिश्ता ढूंढना भी बहुत मुश्किल होगा”
पास बैठे गिरीश और उसकी माँ दोनों ने अंजनी की बात में अपनी सहमति जताई । पर्दे के पीछे खड़ी आरती, स्वाति और स्नेहा के बारे मे उनकी ऐसी राय सुनकर सहम गई । शाम को स्कूल से घर लौटते ही आरती ने उनसे कहा
“मुझे पता है कि तुम दोनों का पढ़ाई-लिखाई में कुछ खास रुचि नहीं है इसी कारण तुम दोनों पढ़ाई में सामान्य हो । मैं चाहती हूँ कि जल्द से जल्द तुम दोनों पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाओ । अनपढ होना क्या होता है ये मै बखूबी जानती हूँ। मेरे अशिक्षित होने के नाते ही तुम्हारे पिता ने मेरे आंखों के सामने दूसरा विवाह कर लिया मगर फिर भी मैं चुप रही । यदि औरों की तरह मै भी पढी-लिखी होती तो तुम्हारे पिता और इस घर को कबका छोड़ चुकी होती।”
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आगे आरती कहती है
“मैं नहीं चाहती कि जैसा मेरे साथ हुआ वो तुम्हारे साथ भी हो । तुम दोनों मन लगाकर पढ़ाई करो यदि तुम दोनों पढ़ाई लिखाई में अच्छा प्रदर्शन करोगी तो तुम्हारा रास्ता कोई नहीं रोक पाएगा वरना शायद तुम दोनों दसवीं की पढ़ाई भी पूरी ना कर सको”
ऐसा कहते कहते आरती फफक पड़ी उसकी आंखो से अश्रु की धार बह निकली । माँ की बातों ने स्वाति और स्नेहा को अंदर तक झकझोर कर रख दिया फलस्वरूप दोनों ने पढ़ाई को अपना पैशन बना लिया ।
उधर बेटियों के ज्यादा पढे-लिखे होने को हमेशा गलत मानने वाले, स्वाति व स्नेहा के परिवार वालों ने आनन-फानन में उनका विवाह तय कर दिया । यह खबर सुनते ही आरती के पैरो तले जमीन खिसक गई, एक पल के लिए तो उसे ऐसा लगा मानो अपने बच्चों के लिए देखा गया उसका सपना टूट कर बिखर गया हो परंतु बेटियों के भविष्य को देखते हुए परिवार के इस मनमाने फैसले के खिलाफ आरती उठ खड़ी हुई ।
आजतक सबकुछ चुपचाप सहन कर लेने वाली आरती का ये नया रूप ससुराल वालों को चकित करने वाला था । उसने अपने कान के दोनो झुमके बेचकर दोनों बच्चियों का दाखिला दसवीं में करा दिया ।
अपनी कड़ी मेहनत के भरोसे दोनो बहनो ने अच्छे अंको के साथ फिर इंटरमीडिएट तक की शिक्षा प्राप्त कर ली । मां की आशाओ पर खरा उतरने को तत्पर स्वाति व स्नेहा, अब नर्सिंग की ट्रेनिंग करना चाहती थी ।
चूंकि आरती के ससुराल वाले नर्स के काम को काफी हेय दृष्टि से देखते थे लिहाजा इस बात का जानकारी होते ही वे आगबबूला हो गए फलतः घर में महाभारत छिड़ गयी ।
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परन्तु इस बार तो आरती के तेवर भी काम नहीं आए ऐसे में आरती की एक नहीं चली अचानक । एक दिन स्नेहा व स्वाति घर से गायब थे । उनके ना मिलने पर परिवार वालों ने आरती को बेहाल कर दिया परंतु आरती ने उन्हें कुछ भी नही बताया ।
आरती दुनिया की वह पहली माँ थी जिसने अपनी बेटियों को घर से भागने में खुद मदद की थी । असल में आरती ने अपने सारे गहने बेचकर दोनों बेटियों का दाखिला एक जाने-माने नर्सिंग कॉलेज में कराया था ।
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वादे के मुताबिक चार वर्षों तक न माँ ने कभी बेटियों से संपर्क साधा और ना बेटियों ने ही कभी माँ से मिलने की कोशिश की । जिसके कारण परिवार वालों को कभी स्वाति और स्नेहा के बारे में कोई खबर नही मिल सकी ।
नर्सिंग की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद संजोगवश गांव के ही सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में बतौर नर्स स्वाति और स्नेहा की तैनाती हुई । इस बात की खबर परिवार वालों को होने पर वे बहुत नाराज हुए परंतु सिवाय हाथ मलने के वे कुछ नही कर सके ।
वक्त ने एक बार फिर करवट बदला काफी दिनों से बीमार चल रहे पिता को आखिरकार सेठ के वहां से हमेशा-हमेशा के लिए छुट्टी मिल गई ।
परिणाम स्वरूप घर में कई समस्याएं एक साथ आ खड़ी हो गई जैसे अब घर का खर्च कैसे चलेगा । घर में बची दो बेटियों का ब्याह कैसे होगा और इन सबसे बड़ा सवाल ये कि जिसे अबतक घर का चिराग कहा जा रहा था उस चिराग के प्रकाशमान होने तक दीए में तेल कौन डालेगा ।
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दोस्तों इन सवालों का जवाब मैं आप पर छोड़ता हूँ और अब आप ही तय करें की घर के लिए कौन ज्यादा जरूरी है सिर्फ बेटा या योग्य पुत्र व पुत्रियां ।