जुर्माना | जीवन का मूल्य समझाती लघुकथा | Motivational Story in Hindi

     “सरकार को भी और कोई काम नहीं, जब देखो नये-नये चोंचले हैं इनके । अरे सिर मेरा, गाड़ी मेरी, जीन्दगी मेरी —-। क्या मुझे नहीं पता कि मेरी जिंदगी कितनी कीमती है? क्या सड़क पर मैं कैसे चलूँ यह भी अब मुझे सीखना होगा ? कितनी मुश्किल से पैसे कमाकर घर चलता है, इन्हें क्या पता —?” —  बड़बड़ाते हुए उदय ने शुभा को आवाज लगाई,  शुभा! जल्दी से हेलमेट दे दो , वरना इन ट्रैफिक वालों को तो बहाना चाहिए चालान काटने का — । महंगाई के इस दौर में कमाई का धंधा बना लिया है इन्होंने — ।
      शुभा दौड़ती हुई सी आई और हेलमेट पकड़ाते हुए अनुनय से भरे स्वर में कहा – “धीरे ही—–।“ परंतु आधी बात उसके मुंह में ही रह गई । ऑफिस के लिए जाने में देर हो रही थी उदय ने हेलमेट लिया और जल्दबाजी में मोटरसाइकिल की हैंडिल में ही टांग कर घर से निकल गया । शुभा भी काम में लग गई। घर में सास-ससुर के साथ ही रहती थी। अभी उन्हें नास्ता देना था। बच्चों के स्कूल का समय हो रहा था—– ।
      घर में कमाने वाला एक उदय ही था । खेती बाड़ी भी नहीं थी । सब ले देकर उदय के कंधों पर ही पूरे घर की जिम्मेदारी थी । वह एक-एक पाई फूंक-फूंक कर खर्च करता था । उदय को घर से निकले अभी कुछ ही देर हुई थी कि फोन की घंटी बज उठी। शुभा ने फोन उठाया उधर से एक कड़क आवाज़ आई – मिसेज उदय ??? शुभा – जी—। आप को पुलिस स्टेशन के पास वाले सदर अस्पताल आऩा होगा, मि. उदय का एक्सीडेंट हो गया है। शुभा – जी, कब ? कैसे ? कहां ?——-दूसरी ओर से बात करके फोन रखा जा चुका था ।
    लगभग भागती हुई-सी शुभा हॉस्पिटल पहुँची। उदय हॉस्पिटल के बिस्तर पर बेहोश पड़ा था। माथे पर बंधी पट्टी उसके चोट की गहराई बता रही थी , डॉक्टर ने बताया यदि समय पर इलाज न मिलता तो जीवन बचाना कठिन था। होश में आने पर उदय ने बताया कि एक अवारा कुत्ते को बचाने की हड़बड़ी में उसका संतुलन बिगड़ गया और नतीजतन —— ।
         आखिरकार हॉस्पिटल से छुट्टी पाकर उदय घर पहुँचा। पोर्टिको में उसकी मोटरसाइकिल खड़ी थी, उसके हैंडिल में आज भी लटका हुआ उसका हेलमेट उसपर हँस रहा था। माँ-पिताजी की भीगी पलकों का सामना कर पाना मुश्किल हो रहा था। सहमे से बच्चे उससे लिपट गए तो उदय के लिए भी स्वयं की भावनाओं पर नियंत्रण असह्य-सा हो गया।
    उदय की आँखों में दुर्घटना के समय का दृश्य घूम गया। बेहोश होने तक आँखों के समक्ष बस इन सब का चेहरा ही घूम रहा था पता फिर इन्हें देख भी पाएगा या नहीं। उसने खुद से और अपने परिवार से एक पक्का वाला वादा किया कि “चाहे जो हो जाए बिना हेलमेट पहने घर से बाहर नहीं निकलेगा। सड़क-सुरक्षा के नियमों का पालन जुर्माने के डर से नहीं अपनी सुरक्षा के लिए करेगा ।“

   

 यह कहानी “डॉ बन्दना पाण्डेय जी” द्वारा रचित है । आप मधुपुर, झारखंड स्थित एम एल जी उच्च विद्यालय, में सहायक शिक्षिका हैं । आपको, कविता, कहानी और संस्मरण के माध्यम से मन की अनुभूतियों को शब्दों में पिरोना बेहद पसंद है । अपनी रचनाएं site पर साझा करने के लिए हम उनका हृदय से आभार व्यक्त करते हैं!


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Karan Mishra

करन मिश्रा को प्रारंभ से ही गीत संगीत में काफी रुचि रही है । आपको शायरी, कविताएं एवं‌‌ गीत लिखने का भी बहुत शौक है । आपको अपने निजी जीवन में मिले अनुभवों के आधार पर प्रेरणादायक विचार एवं कहानियां लिखना काफी पसंद है । करन अपनी कविताओं एवं विचारों के माध्यम से पाठको, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने का प्रयत्न करते हैं ।

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