पंकज- “नही ये शख्स अखिलेश नही, बल्कि कोई और है”
थोड़ी ही देर मे वहा फोरेंसिक टीम भी पहुँच गई । पुलिस ने बॉडी को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया, जिस कमरे मे अखिलेश की मौत हुई थी, वो मकान का सबसे बाहरी कमरा था, उस कमरे मे प्रवेश के दो रास्ते थे एक एक दरवाजा जोकि बाहरकी तरफ खुलता था,उसकी कभी जरूरत न होने के कारण वह हमेशा लाॅक रहता था और दूसरा अन्दर हालॅ की तरफ खुलता था, कमरे के बगल से एक सकरी गली थी जो पीछे जीने की तरफ जाती थी, जहा से जीने मे प्रवेश करने का रास्ता था सामने एक छोटा सा बरामदा था जिसके आगे लाॅन था।
अखिलेश के दो बड़े भाई थे। बीच वाला भाई विक्रम शराबी एवः नशेड़ी था। वह गल्ले का व्यवसायी था, पर उसके पैसे उसी को नही अटते थे। उसके बड़े भाई की स्थिति काफी अच्छी थी। वो गांव पर रहते थे, और पिछले दो बार से ग्राम प्रधान भी थे, साथ मे सड़क के ठेकेदारी एवं जमीन कारोबार का भी धन्धा करते थे। उनकी एक काफी ज्यादा खुबसूरत पत्नी माधवी थी, दोनो मे काफी प्रेम था, उनका एक दो साल का बच्चा भी था।
धीरे-धीरे शिखा भी उसके झांसे मे आ गई और उसे अपना दिल दे बैठी । अखिलेश भी शुरू-शुरू मे चन्द्रवीर को समझ नही पाया और उसे अपना सगा भाई जैसा समझने की भूल कर बैठा । एकदिन अखिलेश और उसका पूरा परिवार बड़े भाई जयप्रकाश के प्रधानी के चुनाव मे गांव गया हुआ था, चन्द्रवीर ने मौके का फायदा उठाया और शिखा से मिलने उसके घर चला आया । शिखा आज चन्द्रवीर की बाहो मे बहुत खुश है । तभी अचानक दरवाजे पर किसी के ठहरने का आभास होता है, कौन है वो, पर उन दोनो को तो इस बात की खबर भी नही, ये सब देखकर सामने खड़े अखिलेश की आंखो मे खून उतर आता है । शिखा को चन्द्रवीर की बाहो मे पाकर अखिलेश आग बबूला हो जाता है,
अखिलेश चन्द्रवीर पर पागलो की तरह टूट पड़ता है जैसे-तैसे चन्द्रवीर भागकर अपनी जान बचाता है उसको बहुत चोटे आयी थी । शुक्र था ऊपरवाले का की घर केवल अखिलेश ही आया था उसके माता-पिता नही । संकोचवश अखिलेश इन बातो को अपने परिवार के किसी शख्स को नही बताया था, हाँ पर चन्द्रवीर का अपने घर आना या शिखा का चन्द्रवीर से मिलना पूरी तरह रोक दिया था । अखिलेश की पढ़ाई के लिए बाहर जाते ही शिखा और चन्द्रवीर की मानो लाटरी लग गयी हो, अब उनपर रोक-टोक लगाने वाला वहा कोई था ही नही ।
तिलक के बाद विक्रम का होने वाला साला भी बिल्कुल विक्रम की तरह ही कुछ नशेड़ीओ जैसा है,उसके दोस्त भी बिल्कुल वैसे ही है वो हाव-भाव से शातिर बदमाश जैसा लगता है पंकज विक्रम को उससे दूर रहने की बात करता है पर अखिलेश इस बात को हस के टाल जाता है अखिलेश के एमबीए का दूसरा साल शुरू होने जा रहा है फिर उसके लिए भारी-भरकम पैसो की आवश्यकता है इस बार भी खेत गिरवी रख कर पैसा लेना होगा ।
विक्रम और उसकी नई-नवेली वाइफ ऐसा होने नही देना चाहते वो जमीन को गिरवी रखने से रोकने के लिए कुछ भी करने को तैयार है विक्रम गांव जाते वक्त अपने पिता को रोकता है दोनो मे बहस छीड़ जाती है अखिलेश के पिता उसकी पढाई नही रोकना चाहते इस बहस के दौरान वही मौजूद रवीन्द्र अखिलेश के पिता को कुछ अपशब्द कह देता है, अखिलेश को यह बात इतनी नागवार गुजरती है कि वह रविन्द्र पर हाथ उठा देता है दोनो मे हाथापाई हो जाती है ।
अखिलेश के पिता पैसो का बन्दोबस्त करके गांव से लौटते है, अखिलेश के कालेज जाने से पूर्व घर मे एक पूजा उसकी माॅ रखती है गाँव से जयप्रकाश और उसका परिवार भी आता है आज सारा परिवार इकठ्ठा है रात को सब सोने चले जाते है अगली सुबह कुछ अलग है, आज की सुबह अखिलेश और उसके परिवार के जीवन मे कभी न छटने वाली अंधकार लेकर आयी थी अखिलेश मर चुका था।
उम्र मे छोटा होने के बावजूद अपने दोस्त को न्याय दिलाने के लिए निरंतर अपने भाई विशाल के साथ वह संघर्ष करता रहा वो रोज थाने के चक्कर काटता और केस की प्रोग्रेस पूछता , इन्सपेक्टर शरीन को न जाने क्यू पंकज के अटूट विश्वास पर विश्वास हो चला था पंकज ने अखिलेश के सभी सम्भावित हत्यारो के बारे मे पुलिस को बताया परन्तु शिखा के बेइज्जती होने की डर से वह चन्द्रवीर और अखिलेश की दुश्मनी को छुपा ले गया ।
पुलिस ने अपने अथक प्रयासो से इस केस का पर्दाफाश कर दिया जानकर हैरान रह जाएंगे जिस शख्स ने अखिलेश जैसे नेकदिल इन्सान की हत्या की थी, आधी रात बीत चुकी थी, अखिलेश थोड़ी स्टडी के बाद गहरी नींद मे सो गया था । तभी बगल की गैलरी जो पीछे की तरफ जाती है उससे जीने मे प्रवेश करने का रास्ता है, बहुत ही धीरे से वह दरवाजा खुलता है, उसके पास एक चाभी है । अखिलेश के रूम का वो दरवाजा जो बाहर की तरफ खुलता है, उसे चाभी से खोलकर वो शख्स अखिलेश के कमरे मे आ जाता है, और गहरी निद्रा मे सो रहे अखिलेश के पास बिना कोई आवाज किए पहुंच जाता है, और फिर साइलेंसर लगी रिवाल्वर से उसे हमेशा के लिए कभी न खत्म होने वाली निद्रा मे सुला देता है ।
उसने पहले जयप्रकाश को पैसे देने से रोका था और उसके कहने पर ही जयप्रकाश ने डिग्गी टूटने और पैसे चोरी हो जाने का नाटक किया था । मगर फिर भी अखिलेश के नाम पर खेतो को गिरवी होता देख माधुवी बौखला गई । वो जानती थी कि अखिलेश अपनी कमाई से गिरवी सम्पत्ति मे से कुछ भी नही छुड़ा पाएगा । हालांकि अपने दम पर जयप्रकाश ने स्वयः बहुत सम्पत्ति अर्जित कर ली थी, पर धन की हवस कहा बुझने वाली आज माँ के होते हुए भी दो साल का माधुवी का बेटा बिन माँ के है
पंकज की मेहनत रंग लाई आज वो अपने दोस्त को इन्साफ दिलाने मे कामयाब हुआ। अखिलेश की आत्मा आज जहाँ कही भी होगी, पंकज की दोस्ती पर उसे आज फक्र हो रहा होगा ।
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