दोस्ती | A True Friendship Story In Hindi

    

4 अक्टूबर, दिन-मंगलवार, नागपुर, मुम्बई

सुबह के सात बज चुके हैं सुबह की धूप हवाओ को चीरती हुई, पंकज के बेड तक जा पहुंच गई है पर पंकज का आलस्य सूरज की सुनहरी किरणो से मानो दो-दो हाथ कर रहा हो, वो अभी उठना नही चाहता है, उसे तो अभी और सोना है तभी चाय लेकर पंकज की बहन रीमा कमरे मे दाखिल होती है, बार-बार अभी तुम जाओ ये कहता हुआ पंकज आखिरकार उठ ही जाता है और चाय लेकर वह बाहर हालॅ मे डाइनिंग टेबल पर बैठ जाता है परिवार के सदस्यो के साथ उसकी गपशप शुरू हो जाती है, तभी बहोत तेजी से घबराया हुआ पंकज का बड़ा भाई वहां पहुंचता है,  उसके हाथो मे एक दैनिक समाचार पत्र है, वो पंकज के पास पहुचकर अखबार के फ्रंट पेज पर छपी एक तस्वीर दिखाकर उससे पूछता है कि

“क्या ये तस्वीर तुम्हारे दोस्त अखिलेश की तो नही है”

तस्वीर मे एक शख्स दिखाई दे रहा है जिसका आधा शरीर बेड से नीचे की ओर लटका हुआ है, उसने आधी बाह वाली बनियान पहन रखी है, कुछ खून के धब्बे फर्श पर साफ दिखाई दे रहे हैं । एक पिस्टल भी नीचे गिरी हुई है,  उस शख्स की पीठ सामने होने के कारण उसका चेहरा नही दिख रहा है ।
पंकज- “नही ये शख्स अखिलेश नही,  बल्कि कोई और है”
विशाल उसे थोड़ा ध्यान से तस्वीर को देखने को कहता है । चूंकि अखिलेश पंकज का सबसे प्रिय मित्र था  इसलिए अखिलेश को पंकज का पूरा परिवार भलीभांति पहचानता था । जैसे-जैसे पंकज तस्वीर को गौर से देखने लगता है,  वैसे-वैसे उसके रोए खड़े होने लगते है, चेहरे काला  पड़ने लगता है ।

अखबार मे छपी खबर के मुताबिक  3 अक्टूबर दिन  सोमवार की  सुबह काफी देर तक सोया रहा ज्यादा देर होने पर माँ ने उसके कमरे का दरवाजा खटखटाया मगर वो नही जगा धीरे-धीरे पूरे घरवालो ने दरवाजा पीट-पीटकर उसे जगाने की कोशिश की   सबने जोर-जोर से आवाज लगाई पर वह नही जगा, जब सारे प्रयासो के बाद भी अखिलेश की कोई चाल-चूल नही मिली तब अन्ततः दरवाजा तोड़ने का विकल्प शेष रह गया,  दरवाजा तोड़ने के बाद जो नजारा उसके घरवालो ने सामने था,  उसे देख सबकी आखे फटी की फटी रह गई जवान बेटा जिसकी कुछी दिनो मे शादी होने को थी सामने मरा पड़ा था, किसी ने फोन से ये सूचना पुलिस को दी, सूचना पाकर फौरन महाराष्ट्र पुलिस पहुंच गई, पुलिस ने वहाँ मौजूद सभी लोगो को कमरे के अन्दर आने से एवः कमरे के किसी भी वस्तु को छूने से मना कर दिया ।

  थोड़ी ही देर मे वहा फोरेंसिक टीम भी पहुँच गई । पुलिस ने बॉडी को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया,  जिस कमरे मे अखिलेश की मौत हुई थी, वो मकान का सबसे बाहरी कमरा था, उस कमरे मे प्रवेश के दो रास्ते थे एक एक दरवाजा जोकि बाहरकी तरफ खुलता था,उसकी कभी जरूरत न होने के कारण वह हमेशा लाॅक रहता था और दूसरा अन्दर हालॅ की तरफ खुलता था,  कमरे के बगल से एक सकरी गली थी जो पीछे जीने की तरफ जाती थी, जहा से  जीने मे प्रवेश करने का रास्ता था   सामने एक छोटा सा बरामदा था जिसके आगे लाॅन था।

पहली नजर मे देखा जाए तो ये एक आत्महत्या का मामला लगता है, क्योंकि अखिलेश का कमरे के दोनो दरवाजे अन्दर से बन्द थे और जिस तरह से फर्श की तरफ नीचे की ओर उसका आधा शरीर लटका हुआ था, मानो उसने खुद ही खुदको गोली मारी होगी और तब उसका बेजान शरीर नीचे झूल गया होगा । इस केस मे हैरानी की बात यह है कि सुसाइड केसेज मे अक्सर लोग अपने पीछे एक सुसाइड नोट छोड़ जाते  है मगर इस केस मे ऐसा नही था ।
   तो क्या ये आत्महत्या का मामला था। अगर ये आत्महत्या नही थी, तो दोनो दरवाजे जब बंद है, खिड़कियो पर भी कोई निशान नही है, तो फिर अखिलेश को कोई कैसे मार सकता है, कौन कर सकता है, अखिलेश की हत्या। पंकज ने अपना सबसे प्यारा मित्र खो दिया था। उसके चेहरे की चमक गायब हो गई थी। पंकज को अखिलेश की आत्महत्या की बात हैरान कर रही थी, उसने विशाल को बताया कि जब उसकी लाईफ मे कोई प्राब्लम थी ही नही,वह अपनी लाइफ मे खुश था। तो अखिलेश आत्महत्या करेगा ही क्यो। वाकई ये बात हैरान करने वाली थी।

    अखिलेश और पंकज ग्रेजुएशन मे दोस्त बने थे। दोनो के सब्जेक्ट एक थे, दोनो कालेज मे साथ रहते थे। एक-दूसरे से सारी बाते शेयर करते थे, कालेज मे अखिलेश की एक गर्लफ्रेंड भी थी अंकिता। कालेज की पढ़ाई खत्म होते ही अखिलेश ने एमबीए करना चाहा वो जिस एमबीए के कालेज मे दाखिला लेना चाहता था, वहा की फीस काफी ज्यादा थी। रिटायर पिता  किसी तरह घर का खर्च चलाते थे। उन्हे अपनी इकलौती बेटी शिखा की शादी भी करनी है। रिटायरमेन्ट के बाद मिले पैसो से कुछ दिन पूर्व ही उन्होंने एक घर भी खरीदा था। ऐसे मे अखिलेश के सपनो के लिए कुछ भी फाइनेंशली मदद करना उनके लिए  सम्भव नही था।

  अखिलेश के दो बड़े भाई थे। बीच वाला भाई विक्रम शराबी एवः नशेड़ी था। वह गल्ले का व्यवसायी था, पर उसके पैसे उसी को नही अटते थे। उसके बड़े भाई की स्थिति काफी अच्छी थी। वो गांव पर रहते थे, और पिछले दो बार से ग्राम प्रधान भी थे, साथ मे सड़क के ठेकेदारी एवं जमीन कारोबार का भी धन्धा करते थे। उनकी एक काफी ज्यादा खुबसूरत पत्नी माधवी थी, दोनो मे काफी प्रेम था, उनका एक दो साल का बच्चा भी था।

   पिता से मदद न मिलने पर अखिलेश,पंकज के साथ अपने सबसे बड़े भाई  जयप्रकाश के पास मदद के लिए गया। जयप्रकाश ने दाखिला लेने वाले कालेज के बारे मे डिटेल अखिलेश से जाना,इन सबके बीच अन्दर कमरे से किसी के सिसकने की आवाज पंकज को सुनाई दे रही थी। लौटते वक्त पंकज ने अखिलेश को उसके भाई से भी मदद न मिलने का आशंका  जताया,पर अखिलेश को अपने भाई पर पूरा भरोसा था।

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कालेज मे ऐडमिशन का दिन करीब आ गया। जयप्रकाश आज गांव से पैसा लेकर आने वाले है। उनकी मोटरसाइकिल रूकती है, और घर मे आकर माँ का पावं छूते है। तभी उन्हे गाड़ी की डिग्गी मे रखे पैसो की याद आती है, वो फौरन भागकर गाड़ी के पास पहुंचते है। पर डिग्गी तो टूटी हुई है। जयप्रकाश का चेहरा काला पड़ जाता है। अखिलेश का दिल बैठ जाता है। उसका एमबीए का सपना चकनाचूर होने जा रहा था।

    अन्त मे अखिलेश की हालत देख उसके माता-पिता खुद आगे आते है। हालात न होते हुए भी वो उसके लिए कुछ खेत गिरवी रख कर भारी-भरकम कर्ज लेते है। अखिलेश पढ़ने मे काफी तेज नही था। पर ग्रेजुएशन के बाद एमबीए द्वारा उसे भविष्य बनाने की राह आसान लगी। उसे जो कालेज एमबीए के लिए मिला था उसकी क्रेज ऐसी नही थी, जिसके नाम पर इतनी बड़ी ऐजुकेशन लोन आसानी से मिल सके। विक्रम ऐसा करने से पिता को रोका इस बात को लेकर बाप-बेटे मे ठन जाती है। अखिलेश कालेज चला जाता है, मोबाइल पर दोनो दोस्तो की दोस्ती अब भी बरकरार थी। अखिलेश के अनुपस्थिति मे पंकज उसके बूढ़े माता-पिता का अपने माता-पिता जैसा ख्याल रखता है।

   इधर फरवरी माह मे विक्रम की शादी तय हो गई। तिलक के दिन अखिलेश ने पंकज को अपने दोस्त से दुश्मन बने चन्दवीर के बारे मे बताया जो कि शिखा की सहेली का भाई था। चेहरे से काफी भोला-भाला पर अन्दर से काफी शातिर था। उसकी बुरी नजर भोली-भाली शिखा पर थी उसको पाने के लिए उसने अखिलेश के पूरे परिवार मे अपनी जगह बना ली थी।

  धीरे-धीरे शिखा भी उसके झांसे मे आ गई और उसे अपना दिल दे बैठी । अखिलेश भी शुरू-शुरू मे चन्द्रवीर को समझ नही पाया और उसे अपना सगा भाई जैसा समझने की भूल कर बैठा । एकदिन अखिलेश और उसका पूरा परिवार बड़े भाई जयप्रकाश के प्रधानी के चुनाव मे गांव गया हुआ था, चन्द्रवीर ने मौके का फायदा उठाया और शिखा से मिलने उसके घर चला आया । शिखा आज चन्द्रवीर की बाहो मे बहुत खुश है । तभी अचानक दरवाजे पर किसी के ठहरने का आभास होता है, कौन है वो, पर उन दोनो को तो इस बात की खबर भी नही, ये सब देखकर सामने खड़े अखिलेश की आंखो मे खून उतर आता है । शिखा को चन्द्रवीर की बाहो मे पाकर अखिलेश आग बबूला हो जाता है,

  अखिलेश चन्द्रवीर पर पागलो की तरह टूट पड़ता है जैसे-तैसे चन्द्रवीर भागकर अपनी जान बचाता है उसको बहुत चोटे आयी थी । शुक्र था ऊपरवाले का की घर केवल अखिलेश  ही आया था उसके माता-पिता नही । संकोचवश अखिलेश इन बातो को अपने परिवार के किसी शख्स  को नही बताया था, हाँ पर चन्द्रवीर का अपने घर आना या शिखा का चन्द्रवीर से मिलना पूरी तरह रोक दिया था । अखिलेश की पढ़ाई के लिए बाहर जाते ही शिखा और चन्द्रवीर की मानो लाटरी लग गयी  हो, अब उनपर रोक-टोक लगाने वाला वहा कोई था ही नही ।

  तिलक के दिन मैरेजहाॅल मे चन्द्रवीर के आने की सूचना चन्द्रवीर और अखिलेश के किसी साथी ने अखिलेश को दी थी,इसलिए अखिलेश ने किसी भी हाल मे मैरेजहाॅल मे चन्द्रवीर के न आने देने की बात पंकज से कही दोनो की नजरे गेट पर थी, चन्द्रवीर अचानक बड़ी तेजी से मैरेजहाॅल मे दाखिल होता है तबतक पंकज की नजर चन्द्रवीर पर पड़ जाती है वो अखिलेश को उसकी तरफ ईशारा करता है और फिर दोनो दोस्त उसको पकड़कर हाल से बाहर  किनारे लाते है और चन्द्रवीर की जबरदस्त पिटाई करते है, अपनी बेइज्जती और घाव जो उसे अखिलेश से मिली थी । उसको वह सहन नही कर पा रहा था और बदले की आग मे जल रहा था ।

   तिलक के बाद विक्रम का होने वाला साला भी बिल्कुल विक्रम की तरह ही कुछ नशेड़ीओ जैसा है,उसके दोस्त भी बिल्कुल वैसे ही है वो हाव-भाव से शातिर बदमाश जैसा लगता है पंकज विक्रम को उससे दूर रहने की बात करता है पर अखिलेश इस बात को हस के टाल जाता है अखिलेश के एमबीए का दूसरा साल शुरू होने जा रहा है फिर उसके लिए भारी-भरकम पैसो की आवश्यकता है इस बार भी खेत गिरवी रख कर पैसा लेना होगा ।

  विक्रम और उसकी नई-नवेली वाइफ ऐसा होने नही देना चाहते वो जमीन को गिरवी रखने से रोकने के लिए कुछ भी करने को तैयार है विक्रम गांव जाते वक्त अपने पिता को रोकता है दोनो मे बहस छीड़ जाती है अखिलेश के पिता उसकी पढाई नही रोकना चाहते इस बहस के दौरान वही मौजूद रवीन्द्र अखिलेश के पिता को कुछ अपशब्द कह देता है, अखिलेश को यह बात इतनी नागवार गुजरती है कि वह रविन्द्र पर हाथ उठा देता है दोनो मे हाथापाई हो जाती है ।

  अखिलेश के पिता पैसो का बन्दोबस्त करके गांव से  लौटते है, अखिलेश के कालेज जाने से पूर्व घर मे एक पूजा उसकी माॅ रखती है गाँव से जयप्रकाश और उसका परिवार भी आता है आज सारा परिवार इकठ्ठा है रात को सब सोने चले जाते है अगली सुबह कुछ अलग है, आज की सुबह अखिलेश और उसके परिवार के जीवन मे कभी न छटने वाली अंधकार लेकर आयी थी अखिलेश मर चुका था।

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  आखिर अखिलेश ने आत्महत्या क्यु की, आख़िर उसकी क्या मजबूरी थी, ऐसी कोई बात थी तो घटना से एक दिन पहले दिनभर अपने साथ रहे पंकज से वो बाते शेयर क्यू नही की ,ये आत्महत्या नही थी सच तो कुछ और ही था । एक ऐसा सच जो घटना की मौजूदा तस्वीर को देखकर छुपा जा रहा था आखिर क्या था सच, अगर ये आत्महत्या नही बल्कि हत्या थी तो “कौन था अखिलेश का हत्यारा”

 पुलिस तफ्तीश मे जुट गई । हालांकि घटना की जो तस्वीर खींच रही थी उसके आधार पर वो भी इसे कही न कही आत्महत्या ही मान रही थी और शायद अखिलेश के घरवाले भी यही मानना रहे थे । पर एक शख्स था जिसको वह दिख रहा था जो किसी और को नही दिख रहा था, और वह था पंकज, पंकज को अखिलेश पर पूरा भरोसा था । सोने जाने से पहले अखिलेश ने अपने भविष्य के प्रति अपने  सपनो और कर्तव्यो के बारे मे पंकज से फोन पर बात  की थी पंकज को पूरा यकीन था कि ये आत्महत्या नही है बल्कि किसी ने उसकी हत्या की है, पंकज को कई लोगो पर शक था ।

 उम्र मे छोटा होने के बावजूद अपने दोस्त को न्याय दिलाने के लिए निरंतर अपने भाई विशाल के साथ वह संघर्ष करता रहा वो रोज थाने के चक्कर काटता और केस की प्रोग्रेस पूछता  , इन्सपेक्टर शरीन को न जाने क्यू पंकज के अटूट विश्वास पर विश्वास हो चला था पंकज ने अखिलेश के सभी सम्भावित हत्यारो के बारे मे पुलिस को बताया परन्तु शिखा के बेइज्जती होने की डर से वह चन्द्रवीर और अखिलेश की दुश्मनी को छुपा ले गया ।

  पुलिस ने अपने अथक प्रयासो से इस केस का पर्दाफाश कर दिया जानकर हैरान रह जाएंगे जिस शख्स ने अखिलेश जैसे नेकदिल  इन्सान की हत्या की थी, आधी रात बीत चुकी थी,  अखिलेश थोड़ी स्टडी के बाद गहरी नींद मे सो गया था । तभी बगल की गैलरी जो पीछे की तरफ जाती है उससे जीने मे प्रवेश करने का रास्ता है, बहुत ही धीरे से वह दरवाजा खुलता है, उसके पास एक चाभी है । अखिलेश के रूम का वो दरवाजा जो बाहर की तरफ खुलता है, उसे चाभी से खोलकर वो शख्स अखिलेश के कमरे मे आ जाता है, और गहरी निद्रा मे सो रहे अखिलेश के पास बिना कोई आवाज किए पहुंच जाता है, और फिर साइलेंसर लगी रिवाल्वर से उसे हमेशा के लिए कभी न खत्म होने वाली निद्रा मे सुला देता है ।

 घटना को अंजाम देने के बाद वो अखिलेश और चीजो को ऐसे मैनेज करता है कि ये हत्या नही आत्महत्या का मामला लगे ।इसके बाद वो शख्स पुनः कमरे को बाहर से लाॅक करके, जिस तरीके से आया होता है बिल्कुल उसी तरीके से वापस लौट जाता है।

  दोस्तो अपराधी कितना भी शातिर क्यू न हो । सबूत तो फिर भी छोड़ ही जाता है घटना के वक्त अखिलेश को नीचे बेड से लटकाते वक्त अगले के कुछ बाल अखिलेश के शरीर पर रह गए एवः साथ ही उसके कपड़े के कुछ धागे जो बेड की दरारो मे फस कर खिचगए थे कातिल का सूराग दे गए , कातिल कोई बाहरी नही बल्कि घर की ही एक शख्स थी जिसका नाम है माधुवी ही ।

  उसने पहले जयप्रकाश को पैसे देने से रोका था और उसके कहने पर ही जयप्रकाश ने डिग्गी टूटने और पैसे चोरी हो जाने का नाटक किया था । मगर फिर भी अखिलेश के नाम पर खेतो को गिरवी होता देख माधुवी बौखला गई । वो जानती थी कि अखिलेश अपनी कमाई से गिरवी सम्पत्ति मे से कुछ भी नही छुड़ा पाएगा । हालांकि अपने दम पर जयप्रकाश ने स्वयः बहुत सम्पत्ति अर्जित कर ली थी, पर धन की हवस कहा बुझने वाली आज माँ के होते हुए भी दो साल का माधुवी का बेटा बिन माँ के है

कोर्ट ने आईपीसी की धारा 302 के अन्तर्गत माधुवी को 20 वर्ष की उम्रकैद की सजा सुनाई ।

पंकज की मेहनत रंग लाई आज वो अपने दोस्त को इन्साफ दिलाने मे कामयाब हुआ। अखिलेश की आत्मा आज जहाँ कही भी होगी,  पंकज की दोस्ती पर उसे आज फक्र हो रहा होगा ।

पंकज के चेहरे पर आज खामोशी है जिन्दगी का सबसे अनमोल रत्न उसने अपना दोस्त खो दिया है
आज वो बिल्कुल अकेला है……….

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author

Karan Mishra

करन मिश्रा को प्रारंभ से ही गीत संगीत में काफी रुचि रही है । आपको शायरी, कविताएं एवं‌‌ गीत लिखने का भी बहुत शौक है । आपको अपने निजी जीवन में मिले अनुभवों के आधार पर प्रेरणादायक विचार एवं कहानियां लिखना काफी पसंद है । करन अपनी कविताओं एवं विचारों के माध्यम से पाठको, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने का प्रयत्न करते हैं ।

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