चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग – हिंदी स्टोरी | Inspirational Story In Hindi
शिवनाथ ने अपने इंजीनियर बेटे की शादी बड़ी ही धूमधाम से की । बेटे की शादी में अपने सभी जानने वालों और दूर-दूर बस चुके रिश्तेदारों को भी बुलाना वे नहीं भूले । महानगर की सबसे पुरानी बस्ती के बीचो-बीच शिवनाथ जी का बंगला था । शिवनाथ का सिर्फ एक ही पुत्र था । वैसे तो भुसवल स्थित इंटरमीडिएट कॉलेज के प्रिंसिपल पद से रिटायर शिवनाथ जी बेटे को अपनी तरह ही अध्यापक बनाने की इच्छा रखते थे परंतु बेटे की शुरू से ही दिलचस्पी इंजीनियरिंग मे थी ।
बड़े घर की बहू के अंदर कोई भी बड़े घर की बेटी जैसे नखरे नहीं थे । ऐसे में बहू सबको रास आ रही थी । धीरे धीरे वक्त के साथ घर में ईश्वर की कृपा से नन्ही किलकारियां गूंज उठी । बेटे के जन्म के 25 वर्षों बाद आज जाकर घर में किसी नन्हे मेहमान ने कदम रखा था ।
“अपका बेटा कभी कभार गवारो की भाषा बोलता है । जो इस अंग्रेजी मीडियम विद्यालय में बोलना बिल्कुल भी अलाव नहीं है”
सबके सामने बेटे की शिकायत सुनकर बहुरानी को काफी शर्मिंदगी महसूस हुई । शायद वह इसके लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थी । उसे बहुत गुस्सा आया । उसने बेटे का हाथ पकड़ा और चुपचाप घर वापस लौट आईं ।
घर आने के बाद बहुरानी ने वैसे तो इस संदर्भ में किसी से कोई बात नहीं की परंतु अगले दिन स्कूल से लौटने के बाद शाम को दादाजी ने पोते को हमेशा की तरह पास के चौराहे पर घुमाने के लिए उसे आवाज़ लगाई । आवाज लगाएं काफी देर हो गई मगर पोता उतरकर नीचे नहीं आया ।
दादी ने इसका कारण जानना चाहा परंतु बहुरानी ने उनके किसी भी प्रश्न का जवाब न देते हुए चुप्पी साधी रखी । बहुरानी के पीछे खड़ा अंश बार-बार दादा जी को छत से निहार रहा था कि कब उसे माँ के द्वारा जाने की आज्ञा मिलेगी क्योंकि सैर सपाटा अंश को काफी पसंद था ।
हर शाम उसे का दादा जी के साथ जाना, वहां खूब सारी मस्ती करना, खाना-पीना उसकी आदत बन चुकी थी परंतु दादी के लाख कहने के बावजूद बहुरानी ने पोते को नहीं जाने दिया । कई दिन गुजर गए मगर अंश घर से सिर्फ स्कूल जाने के लिए ही बाहर निकलता ।
रविवार का दिन था संजोग से इंजीनियर साहब घर पर ही थे । दादा जी के एक करीबी दोस्त जोकि उसी मोहल्ले के थे वे भी वहां आए हुए थे । काफी देर तक दादाजी की उनके दोस्त से बातें चलती रही ।
जब वे वहां से चलने लगे तब दादाजी भी उनके साथ चल पड़े । दादा जी के दोस्त ने अंश को भी अपने साथ चलने को कहा मगर अंश भी उत्साहित होकर उनके साथ निकलना चाहा । तभी उसकी नजर छत पर खड़ी, उसे घूर रही अपनी माँ पर पड़ी । बिचारे अंश के तो प्राण ही सूख गए । वह बस चुपचाप वही ठिठक गया ।
जब यह सब कुछ हो रहा था तभी इन सब बातों को इंजीनियर साहब बहुत गौर से देख रहे थे । उनके जाने के तुरंत बाद ही वे पत्नी के कमरे में आए और इन सब की वजह जाननी चाही ।
जब वे बचपन के दिनों में अपने ननिहाल गर्मी की छुट्टियां मनाने गए थे । उसी दौरान एक दिन जब वे अपने दोस्तों के साथ गांव के बगीचे में खेल रहे थे तभी उन्होंने अचानक अपने सामने एक बहुत ही जहरीले सांप को देखा वे काफी भयभीत हो गए । तभी जाने कहां से दूसरी ओर से सांप के ठीक सामने नेवला आ धमका दोनों एक दूसरे की राह से हटने को बिल्कुल भी तैयार नहीं थे ।
इसीलिए हमें अपने बच्चों को अच्छे से अच्छा संस्कार देने की कोशिश करनी चाहिए । अगर हमारे बच्चे में अच्छे संस्कार रहेंगे । तो समाज की कोई भी बुराई उनको छू भी नहीं सकेगी । इसके लिए उसे बंद कमरे में रख देने से कोई फायदा नहीं ।
“बड़े समाजों में रहने वाले एवं अच्छे विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों में बुराइयों का होना इस बात का प्रतीक है कि उनका स्वभाव किसी परिवेश पर नही बल्कि इस बात पर निर्भर करता है कि उसका प्राथमिक विद्यालय अर्थात उसके माता-पिता एवं परिवार उसे कैसी शिक्षा और कैसे संस्कार दे रहे है । यदि संस्कार अच्छे होगें तो निश्चित रुप से समाज में फैली छोटी मोटी बुराइयां तो क्या बड़ी बड़ी असामाजिक चीजें भी उसमें नहीं पनप सकेंगी ।
इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है | Moral Of This Inspirational Hindi Story
बच्चों में संस्कारों का निर्माण परिवेश पर नही बल्कि इस बात पर निर्भर करता है कि हम उन्हे कैसे संस्कार दे रहे हैं !
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