अनुराधा की शादी एक ऐसे लड़के से होने जा रही थी। जिसको न कभी अनुराधा ने देखा था ना ही उस लड़के ने अनुराधा को देखा था, देखते ही देखते शादी का दिन भी आ गया, चूँकि, वो जमाना मोबाइल का भी नहीं था। इसलिए फोन से चैटिंग वाले आज जैसे मौके भी उस वक्त मौजूद नहीं थे। शादी के बाद अनुराधा अपने ससुराल विदा हो गई, वो अपने कमरे में बैठी अपनी नन्दो की बातें सुन रही है तभी कमरे के बाहर हंसी ठहाके की आवाज गूंज जाती है। शायद कोई अनुराधा से मिलने के लिए बेकरार हुए जा रहा है। वो कोई और नहीं अनुराधा का हसबैंड वीरेंद्र है।
अनुराधा की शादी एक ऐसे लड़के से होने जा रही थी। जिसको न कभी अनुराधा ने देखा था ना ही उस लड़के ने अनुराधा को देखा था, देखते ही देखते शादी का दिन भी आ गया, चूंकि
आज वह अपनी नई नवेली दुल्हन का दीदार करने के लिए बेकरार हुए जा रहा है और हो भी क्यों नहीं, ऐसी उत्सुकता तो हर किसी में हुआ करती है। भला दुनिया में कौन ऐसा व्यक्ति है जो अपने जीवनसंगिनी को पहली बार देखने उससे मिलने के लिए व्याकुल न हो,
परिवार के सदस्य और रिश्तेदार वीरेंद्र के इस हालत पर चुटकी लेना नहीं भूल रहे, पर वीरेंद्र को इन सब बातों की परवाह किए बिना वह सभी लाज शर्म को किनारे करके आगे बढ़ता है। और सबसे लड़ता झगड़ता वह कमरे में दाखिल होता है। जहां उसकी अनुराधा नजरें झुकाए उसका बेसब्री से और शायद जब से दोनों की शादी पक्की हुई थी,
उस दिन उसे उसका इंतजार कर रही है। कमरे में दाखिल होते ही दोनों की नजर एक दूसरे से टकराती हैं अनुराधा चेहरे पर बिना कोई इंप्रेशन दिए बगैर अपनी आंखें झुका लेती है और तुरंत लंबा चौड़ा घूंघट निकाल लेती है।पर उस दो घड़ी का अनुराधा का दीदार किसी को भी दीवाना बनाने के लिए काफी था। विरेन्द्र उसको देखकर वही दरवाजे पर ही ऐसे टिक जाता है, मानो कोई स्टेचू बन गया हो, उसकी बहने उसको बाहर धकेल रही है पर वह बूत बने घुंघट में छुप गए चांद को निहार रहा है।
तभी वीरेंद्र की मां कौशल्या वहां आ जाती है वह वहां वीरेंद्र को रोक रही सभी लड़कियों को वहां से बाहर निकाल देती है और वीरेंद्र को अंदर ही छोड़ किवाड़ को बाहर से बंद कर देती है और वीरेंद्र तो अभी वही ठहरा हुआ है घुंघट में अनुराधा भी वीरेंद्र को देखने की थोड़ी बहुत कोशिश करती है वीरेंद्र अनुराधा का घुंघट उठाता है वह उसको पाकर बहुत खुश है। करीब एक हफ्ते गुजर जाते हैं, इस नए जोड़े को वक्त का पता ही नहीं चलता अब वीरेंद्र को अपनी नौकरी पर जाने का वक्त आ गया है। प्यार का एक भाग जुदाई भी है। आज अनुराधा वीरेंद्र से दूर होकर काफी दुखी है, वक्त बीतता है अनुराधा एक पुत्री को जन्म देती है। कौशल्या उसका नाम ज्योति रखती है, वीरेंद्र ज्योति को बहुत प्यार करता था। देखते ही देखते शादी को काफी वक्त गुजर जाता है। ज्योति अब पांचवीं कक्षा में पढ़ती है, शहर में वीरेंद्र की आदतें अकेले रहते रहते कुछ बिगड़ जाती है । किराए के जिस रूम में रहता है उससे थोड़ी ही दूरी पर उसके बड़े भाई की ससुराल है।
वहां वह अक्सर जाता है, अपने बड़े भाई सुरेंद्र की इकलौती साली आशा से वीरेंद्र की बहुत पटती है, वह आशा की खूबसूरती पर मोहित हो जाता है। खूबसूरत लड़कियां वीरेंद्र की कमजोरी में शामिल थी। जैसे-जैसे वीरेंद्र आशा के करीब आता जाता है। वैसे वैसे वह अनुराधा से दूर होता जाता है पर यह बात विरेंद्र के घरवाले और अनुराधा नहीं जानते थे। हालांकि अनुराधा अपने पिता की इकलौती संतान होने के कारण उस से मिलने वाली संपत्ति का भी विरेन्द्र को पूरा ध्यान था। अनुराधा अचानक बीमार पड़ती है।
अनुराधा के इलाज के लिए वीरेंद्र उसे शहर लेकर जाता है। अनुराधा को क्षय रोग का आंशिक असर है, वीरेंद्र अनुराधा को दिलासा देता है, कि वह जल्दी ठीक हो जाएगी। अनुराधा खुशी-खुशी उसके साथ रूम पर आ जाती है।
शाम को विरेन्द्र आशा से मिलने उसके घर चला जाता है। आज संयोग से आशा घर में अकेली है, दोनों करीब आ जाते हैं, वीरेंद्र घर लौट आता है, पर रात भर वह आशा के नशे में डूबा रहता है। सुबह वीरेंद्र अनुराधा को लेकर गांव वापस चला जाता है। घर जाकर वह कौशल्या से अनुराधा की बीमारी के बारे में जो बताता है। वह सुनकर कौशल्या और उसके परिवार के साथ- साथ अनुराधा के भी होश उड़ जाते है।
वीरेंद्र के अनुसार अनुराधा को क्षय रोग से अत्यधिक ग्रसित है। और उसका इलाज भी अब संभव नहीं हैं, अनुराधा अब कुछ ही दिनों की मेहमान हैं। अनुराधा पलटकर वीरेंद्र से कुछ पूछती कि तभी वीरेंद्र अनुराधा को घूरता हुआ कौशल्या से कहता है, कि अगर मैं भी इसके साथ रहा तो शायद मैं भी ज्यादा दिन ना जी सकूं,
अनुराधा वीरेंद्र का हाथ पकड़ती है। पर वीरेंद्र उसका हाथ झिड़क कर वहां से चला जाता है और वहां से निकल कर शहर आ जाता है।
कौशल्या को भी अब अपने लाल वीरेंद्र की फिक्र होने लगती है। अनुराधा अब उसे भी कांटे की तरह चुभने लगती है। अनुराधा के पिता रघुनाथ के काफी मान मनव्वल के बाद भी वीरेंद्र अनुराधा के साथ रहने को तैयार नहीं होता है।
कौशल्या एक दिन अनुराधा के पिता को बुलाती है अनुराधा के पिता अभी कौशल्या के दरवाजे पर पहुंचे ही थे कि तबतक कौशल्या घर के बाहर आ जाती है। उसके एक हाथ में संदूक है और दूसरे हाथ में अनुराधा का हाथ यह नजारा देख कर अनुराधा के पिता का गला सूख जाता है। कौशल्या उनसे बीमार अनुराधा को हमेशा के लिए अपने साथ ले जाने को कहती है। रघुनाथ हालात को समझते हैं वह अपनी बेटी का जीवन अपने आंखों के सामने उजड़ता हुआ नही देख सकते हैं। वह कौशल्या का पैर पकड़कर गिड़गिड़ाने लगते हैं अनुराधा भी कौशल्या से उसे घर से ना निकालने की विनती करती है। पर बाप बेटी की सारी कोशिशें बेकार जाती हैं। कौशल्या का फैसला नहीं बदलता है, हारकर रघुनाथ अपनी बेटी को लेकर वहां से चल देते हैं। रघुनाथ अनुराधा का हाथ पकड़े वहां से जब ले जा रहे होते है, उस वक्त अनुराधा बार बार पलटकर वीरेंद्र को उम्मीद भरी नजरों से देख रही होती हैं। उसे बार-बार ऐसा लगता जैसे वीरेंद्र अभी पीछे से आवाज़ लगाएगा पर वीरेंद्र तो अनुराधा की इस हालत पर मुस्कुराए जा रहा था।
मासूम ज्योति को तो शायद ये पता भी नहीं था। कि उसके और मां के साथ आज वहां क्या हो रहा है। वह बड़ी मासूमियत से अपने पापा को देख रही थी। हवस की आग में वीरेंद्र को अपनी मासूम बेटी पर भी तरस नहीं आया तेज धूप में पैरो मे नन्हे चप्पल पहने वहां से चली जा रही थी। थोड़ी ही दिनों बाद वीरेंद्र कौशल्या से आशा के साथ अपने विवाह की बात छेड़ता है। सुरेंद्र को अपनी साली अपने ही घर में अपने छोटे भाई की पत्नी के रूप में कतई स्वीकार नहीं थी। सुरेंद्र की वाइफ भी इस शादी का पुरजोर विरोध करती है । पर कौशल्या और उधर काफी निर्धन आशा के घरवालों को इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं थी। आशा विरेंद्र की दूसरी पत्नी बनकर घर में आ जाती है। आशा का एक पुत्र होता है। उधर जवान बेटी के उजड़े संसार को रघुनाथ ज्यादा दिन देख नहीं पाते हैं। वह कुछ ही दिनों बाद इस निष्ठुर संसार को अलविदा कह देते हैं। अनुराधा अकेली पड़ जाती है, बड़ी ही कठिनाईयो से वह ज्योति का लालन-पालन करती है। ज्योति अपनी मां को बहुत प्यार करती है। पर अपने प्यारे पापा को वो कभी भूल नहीं सकती वह रोज दरवाजे के सामने उनके आने की आशा लगाए हैं। पर उसे क्या पता उसके पिता ने तो अपनी एक नई दुनिया बसा ली है। उसकी एक बेटी भी हैं शायद उसे अब यह भी याद नहीं था। ज्योति अपनी मां के सपनों को साकार करती है। वह डॉक्टर बनती है, उसे सरकारी नौकरी मिल जाती है।
अफसोस की अनुराधा यह सब देखने के लिए अब इस दुनिया में नहीं है। ज्योति की नौकरी लगने के दो महीने पहले ही वीरेंद्र के दुखदाई यादों और समाज से मिलते तानो को सुन-सुनकर वह जिंदगी से शायद थक चुकी थी, और फिर एकदिन वह हमेशा के लिए सो जाती है। ज्योति की पोस्टिंग अपने पिता के ही गांव के एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर बतौर प्रभारी चिकित्सक होती है। वह गांव में आती है, पर गांव का कोई व्यक्ति यह नहीं जानता कि वह वही नन्ही ज्योति है, जिसके पिता ने सारे गांव के सामने उसे जलती धूप में घर से निकलने को मजबूर कर दिया था। जहां से निकलने के बाद उस मासूम के सारे नंहे सपने जलकर खाक हो गए थे।
करीब चार महीने का वक्त गुजर जाता है। गांव के सभी लोगों को डॉक्टरनी साहिबा बहुत अच्छी लगती है। ज्योति गांव के असमर्थ बड़े-बुजुर्ग का इलाज उनके घरों पर भी जाकर करती थी कभी-कभी कुछ लोगों की इलाज में आर्थिक सहायता भी करती थी। एक दिन गांव के तालाब के पास ही वीरेंद्र के लड़के राजू को सांप डस लेता है। जहर इतना तेज था, की थोड़ी ही देर में राजू का पूरा शरीर काला पड़ जाता है। जैसे ही वीरेंद्र और गांव वालों को इसकी सूचना मिलती है। वह सब उसे लेकर तेजी से अस्पताल की तरफ भागते हैं। मगर तब तक अस्पताल बंद हो चुका होता है। अस्पताल के सारे कर्मचारी अपने घर जा चुके हैं, ज्योति अस्पताल के सामने चाय की दुकान लगाने वाली काफी दिनों से बीमार चल रही अम्मा के पास रोज की तरह जाते वक्त आज भी उसके पास उसका हालचाल लेने पहुंची हुई है। दोनों में खूब बातें हो रही हैं, ज्योति उन्हें अम्मा कहती है। वह अम्मा के लिए फल ले कर आई है। उसे खुद अपने हाथों से खिला रही है, तभी वीरेंद्र और कौशल्या गांव वालों के साथ वहां, अस्पताल पहुंचते हैं। अस्पताल पर ताला लटका देख वीरेंद्र का गला सूख जाता है। तभी गांव के एक व्यक्ति की नजर ज्योति की ऐंबैसडर कार पर पड़ती है। वह उनसे कहते हैं, वीरेंद्र घबराओ मत देखो डॉक्टरनी मैडम की गाड़ी यही है। इसका मतलब वह भी यहीं कहीं होंगी, तुम बहुत खुशकिस्मत हो कि मैडम अभी गई नहीं है। वरना अस्पताल तो न जाने कब का बंद हो चुका है।
यह सुनकर अत्यंत बुजुर्ग हो चुकी कौशल्या की जान में जान आ जाती है। गांव वाले ज्योति को आवाज लगाते हैं। ज्योति दौड़े-दौड़े बाहर निकलती है, उसे सामने देख वीरेंद्र के मन में खुशी की लहर दौड़ पड़ती है, ज्योति के पास वीरेंद्र, अपने घर के इकलौते चिराग राजू को लेकर पहुंचता है। राजू का शरीर पूरी तरह नीला पड़ चुका था। ज्योति राजू को तो नहीं पर विरेन्द्र और कौशल्या को पहचान जाती है। वह उल्टे पांव अपनी कार की तरफ चल पड़ती है, पहली बार ज्योति के ऐसे व्यवहार को देखकर सब अवाक रह जाते हैं। विरेन्द्र दौड़कर ज्योति का हाथ पकड़ लेता है, वह राजू को गोद में लिए हुए है, वह ज्योति से कहता है, मैडम यह राजू है, मेरा बेटा मेरे बुढ़ापे का एकमात्र सहारा मेरी आखिरी उम्मीद इसे आप बचा लीजिए। इसकी जिंदगी की डोर आपके हाथों में है। मगर ज्योति को कुछ फर्क नहीं पड़ता पोते का शरीर नीला पड़ता देख कौशल्या ज्योति के कदमों में गिर पड़ती है। वह अपने पोते का उस से इलाज करने को कहती है। विरेन्द्र राजू को ज्योति के कदमों में रख गिड़गिड़ाने लगता है। पर ज्योति अपने ड्राइवर से गाड़ी स्टार्ट करने को कहती है। अंत में गांव के बड़े बुजुर्ग, ज्योति को एक डॉक्टर के तौर पर, उसका कर्तव्य याद दिलाते हैं। उनकी इस बात को सुनकर आखिरकार ज्योति खुद को रोक नहीं पाती है ।
वह गांव के बूढ़े हो चुके लोगों से पच्चीस-छब्बीस वर्ष पहले हुए अनुराधा की कहानी याद दिलाती है और उन सबसे उस समय उनके कर्तव्य के बारे में पूछती है। गांव के लोगों को सांप सूंघ जाता है। अनुराधा की कहानी को चाय बनाने वाली बूढ़ी अम्मा भी जानती हैं वो ज्योति के गालो पर हाथ रख कर पूछती हैं बेटा एक बात बता तुम इतनी पुरानी बात को कैसे जानती हो। तु अनुराधा को कैसे जानती हो, ज्योति खुद को रोक नहीं पाती, वह फूट फूट कर रोने लगती है। वह भारी स्वरों में कहती है,
“वो अभागिन अनुराधा कोई और नहीं वह मेरी अपनी मां थी और मैं उसकी बेटी ज्योति हूं, जिसको इस बाप ने धक्के खाने के लिए दुनिया में अकेला छोड़ दिया। मैंने पूरी जिंदगी यही ख्वाब देखा कि मेरे पापा मुझे लेने आएंगे, पर इन्हें तो शायद याद भी नहीं कि इनकी एक बेटी भी है। आगे ज्योति कहती है, मेरी आखिरी उम्मीद उस दिन खत्म हो गई, जिस दिन मेरी मां इस पापी से मिले दुखों को सहती सहती एक दिन मेरी ही इन बाहों में दम तोड़ दी। मगर यह इंसान नहीं आया, इस शख्स को कभी हमारी याद ही नहीं आई, हम किस हालत में हैं हम जी रहे हैं या मर रहे हैं इससे इसको कोई मतलब नहीं था। आज जब अपनी जिंदगी का सहारा डूबते दिखा तो मुझसे हमदर्दी की उम्मीद कर रहा है। मेरी मां की आह इसके बेटे को डस गई। अब यह भी जिंदगी में कभी खुश नहीं रहेगा, जिस तरह इसने मेरी मां को पूरी उम्र तड़पाया उसी तरह यह भी तड़पता रहेगा, इन सबके बीच ही राजू की धड़कने बंद हो गई थी वो हमेशा के लिए गहरी नींद में सो चुका था। कौशल्या और वीरेंद्र अपने पापों को सोचने लगते हैं, वो राजू के सीने पर दहाड़ मारकर रोने लगते हैं। आज उनकी जिन्दगी की सारी खुशी, उनके आखिरी उम्मीद, उनका एकमात्र सहारा दुनिया को अलविदा कह चुका था ।
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