पानी की कहानी | बोए पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय Story Of Water Hindi

पानी की प्रेरणादायक कहानी| बोए पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय- मुहावरे का अर्थ व कहानी short motivation story of water in hindi with moral, story on water crisis

बोए पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय- मुहावरे का अर्थ व कहानी Hindi Story

  क्या भाई भीखू अब क्या नलका उखाड़ कर ही दम लोगे ?
  क्या करें मालिक घर में पानी की एक बूंद तक नहीं है और इस नल को भी अभी सूखना था । अब आप ही बताइए ऐसे में मैं क्या करूं ?

साहूकार “तो आस पड़ोस से पानी ले लो ।”
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 भीखू “नहीं नहीं, मालिक इस गांव में सब कुछ मिल सकता है मगर पानी तो कोई नहीं देगा ।”
  “क्यों भाई ऐसा क्यों”
(साहूकार, भीखू से पूछता है)
भीखू “क्या बताएं मालिक गाँव मे क्या कुएँ, क्या तालाब सब सूखे पड़े हैं । ऐसे में हर किसी के वहां पानी की किल्लत है ऐसे में भला मुझे पानी कौन देगा”

 अच्छा तो ये बात है (साहूकार, बड़ी ही कातिलाना मुस्कान चेहरे पर लिए भीखू से कहता है, वह खुद को ऐसा दर्शाता है जैसे वह इस मामले से बिल्कुल अनभिज्ञ हो)

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 भीखू “सुना है मालिक आप के कुएं में ढेर सारा पानी है अगर ये सच है तो थोड़ा पानी मुझे भी दे दें आपकी बड़ी कृपा होगी”
  
साहूकार “हां हां, क्यों नहीं ये भी कोई पूछने वाली बात है । अरे मै तो कहता हूँ कि पानी पर तो सबका हक होना चाहिए पर क्या करें भीखू इस पानी की समस्या से तो आजकल हर कोई जूझ रहा है । अरे वो तो शुक्र मनाओ उपर वाले का कि ठीक समय पर मैने पानी से लबालब बेचू के कुएं पर कब्जा कर लिया है वरना आज मेरा भी हाल तुम सबके जैसा ही होता”
(साहूकार, फिर कहता है)
“देखो तुम ऐसा करो अपना पूरा खेत हमारे नाम कर दो और फिर पूरी जिंदगी कुएं के पानी से नहाते रहना, बोलो शर्त मंजूर है”
 (साहूकार की ऐसी  अजीबोगरीब शर्त को सुनकर भीखू चौक जाता है, वह साहूकार से कहता है)
 “नहीं नहीं, मालिक ऐसा ना कहें, अपने खेत यदि मैंने आपको दे दिया तब मै कहां जाऊंगा.. अपने बीबी बच्चे का पेट कैसे भरूंगा .. ऐसा अनर्थ ना करें, मुझ पर दया करें मालिक । मुझ गरीब को पानी देने से आपके कुएँ का पानी तनिक भी कम नही होगा”

 “तो तुमको क्या लगता है कि मेरे पानी की कोई कीमत नहीं है और मैं तुमसे तुम्हारी सर की छत थोड़ी न मांग रहा हूँ । मैं तो बस तुम्हारा खेत मेरे नाम करने की बात कर रहा हूँ और हां, तुम अपना खेत मेरे नाम करने के बाद भी उन खेतो पर फसल उगा सकते  हो । बस इतनी सी तो बात है, जो तुमको समझ नहीं आती ? … .. अगर तुम्हे ये सब मंजूर है तो तुम आकर कुएं से पानी ले जा सकते हो वरना तुम्हे जैसा ठीक लगे तुम वैसा ही करो”

  (साहूकार भीखू से कहता है)

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   हरिहरपुर गांव जो अपने नाम की तरह ही कभी हरा भरा हुआ करता था आज न जाने इसे किसकी नजर लग गई है जिसके कारण यह अब बिल्कुल सूख सा गया है । 
  गांव के लगभग सभी कुएँ,  तालाब सूख चुके हैं । ऐसे में पानी की किल्लत गांव में बढ़ती चली जा रही है ।
  हालांकि गांव के साहूकार द्वारा कब्जा किए गए कुएं मे ढेर सारा पानी मौजूद है । परन्तु गांव वालो को यदि वह पानी चाहिए तो उन्हे साहूकार के बिना सर पैर वाली शर्तो को मानना होगा ।
  परन्तु पानी के लिए मजबूर अधिकांश गांव वाले साहूकार की शर्त स्वीकार कर लेते हैं और पानी के बदले अपना सारा खेत साहूकार के नाम कर देते हैं परिणामस्वरूप आज वे उसी खेत मे मजदूर बने खड़े हैं जिसके कभी वो मालिक हुआ करते थे ।
  साहूकार ने धीरे-धीरे पानी के बदले सारे गांव वालों की जमीन हथिया ली । बस ले दे कर गांव में सिर्फ़ रामाधीन का खेत साहूकार के चंगुल से बाकी रह गया । साहूकार को ये बात काफी अखरती । वह ईश्वर से दिन-रात बस रामाधीन का खेत भी अपने नाम हो जाने की दुआ करता और आखिरकार भगवान ने उसकी सुन ली ।
  एक दिन रामाधीन के बच्चे का मुंह और पेट चलने लगता है । सरकारी अस्पताल काफी दूर है । रामाधीन अपनी पत्नी के साथ सुबह आठ बजे ही अस्पताल पहुंच जाता है । तकरीबन दस बजे डॉक्टर साहब वहां पहुँचते हैं । वे रामाधीन को कुछ दवाइयों देते हुए बच्चे को ज्यादा से ज्यादा पानी पिलाने की नसीहत देते हैं ।

  मगर घर में तो पानी का एक कतरा तक नहीं है । ऐसे में बच्चे को पानी कहां से पिलाएं । शाम होते-होते रामाधीन का बच्चा आंख उलट देता है । यह देखकर रामाधीन और उसकी पत्नी की रूह कांप जाती है ।

 वे भागे-भागे साहूकार के पास पहुंचते हैं और उससे पानी की भीख मांगते हैं परंतु साहूकार, रामाधीन के सामने भी, पानी के बदले अपनी वही पुरानी शर्त रखता है । रामाधीन और उसकी पत्नी ऐसी शर्त न रखने के लिए उसकी बहुत मिन्नत करते हैं परंतु वह टस से मस नहीं होता । आखिरकार रामाधीन अपना सारा खेत साहूकार के नाम कर अपने बेटे की जान बचाता है ।

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  रामाधीन का खेत साहूकार के नाम होते ही गांव का सारा का सारा खेत अब उसका हो चूका है इतना ही नहीं गांव के सारे लोग उसकी बात मानने के लिए अब विवश हो चुके हैं । यह सब देखकर साहूकार बहुत खुश होता है । हमारी लेटेस्ट (नई) कहानियों को, Email मे प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें. It’s Free !

  इस खुशी के अवसर पर साहूकार एक यज्ञ का आयोजन करता है । इस यज्ञ के दौरान ही साहूकार की पत्नी एक सुंदर पुत्र को जन्म देती है जिसके फलस्वरूप साहूकार की बची-खुची एकमात्र इच्छा भी पूरी हो जाती है । संतान सुख को प्राप्त कर साहूकार बहुत खुश होता है । 
  चारों तरफ खुशियों भरा माहौल है । बेबस गांव वाले साहूकार की खुशियों में नाचने-गाने के लिए मजबूर हैं । तभी अचानक साहूकार की खुशियों को ग्रहण लग जाता है । उसके बच्चे के शरीर पर छोटे छोटे दाने निकल आते हैं ।

  साहूकार पत्नी को लिए फौरन शहर के बड़े अस्पताल पहुंचता है परंतु वहां के डाक्टर भी उसके बच्चे की बीमारी को समझ पाने मे असमर्थ हैं लिहाजा वो उसे महानगर जाने की सलाह देते हैं ।

  वहां जाकर साहूकार को जो पता चलता है उससे उसके पैरों की जमीन खिसक जाती है । डॉक्टरों के मुताबिक साहूकार के नवजात बच्चे को आर्टिकेरिया रोग हुआ है अर्थात उसे पानी से एलर्जी है जिसके कारण उसे पानी की एक बूंद भी नहीं दी जा सकती । अगर ऐसा हुआ तो बच्चे को ये तमाम दिक्कतें पैदा होगीं ।
  अब तो साहूकार के बेटे को पानी पिलाना या नहलाना-धूलना तो बहुत दूर की बात है अब तो वह रो भी नहीं सकता क्योंकि यदि ऐसा होता है तो बच्चे की आंखों से निकले पानी से एलर्जी के परिणामस्वरूप बच्चे की तकलीफ बढ़ जाएंगी ।
  आखिरकार साहूकार को उसके किए का फल मिल ही गया इसलिए कहते हैं भगवान के घर देर है अंधेर नही । जिस पानी के लिए उसने पूरे गांव को अपनी उंगलियों पर नचाया । आज वही पानी उसके बच्चे का काल बन गया ।

कहानी से शिक्षा | Moral Of This Best Inspirational Story In Hindi

भगवान के घर देर है अंधेर नही इसलिए अहंकार मे आकर किसी की विवशता का अनुचित लाभ नही उठाना चाहिए ।
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author

Karan Mishra

करन मिश्रा को प्रारंभ से ही गीत संगीत में काफी रुचि रही है । आपको शायरी एवं कविताएं कहने का भी बहुत शौक है । आपको, अपने निजी जीवन एवं कार्य क्षेत्र में मिले अनुभवों के आधार पर प्रेरणादायक विचार एवं कहानियां लिखना काफी पसंद है । करन अपनी कविताओं एवं विचारों के माध्यम से पाठको, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने की कोशिश करते रहे हैं ।

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