मेला – कहानी | Short Motivational Story in Hindi

महाशिवरात्रि का महापर्व जहां हर साल की तरह इस साल भी, गांव से थोड़ी दूर स्थित पुराने शिव मंदिर के पास एक विशाल मेला लगा है । राधे और मोहन भी मेले का लुत्फ उठाने मेले में पहुंचते हैं । वहां पहुंचकर वे मेले मे लगे झूलो और लजीज व्यंजनो का आनंद उठा रहे हैं तभी उनकी नजर एक बंदूक वाले पर पड़ती है
वह बंदूक वाला 10 रूपए में टिकट दे रहा है जिसके बदले वह सामने चकरी पर घूम रही मछली के आंख पर निशाने लगाने के तीन मौके देता जिसमें सफल हुए निशानेबाज के लिए उसने 1000 रूपए का इनाम भी रख रखा है । मेले में आए लोगों को यह खेल बहुत भा रहा है । वहां बड़ी तादाद में लोगों की भीड़ जमा हो जाती है जिसमे से बहुत सारे लोग अपना भाग्य आजमाने लगते हैं परंतु इस निशानेबाजी में बहुत कम को ही सफलता का स्वाद चखने को मिल रहा है यहां अधिकांश लोगो को निराशा हाथ लगती है ।
राधे और मोहन को भी यह खेल बहुत पसंद आता है । हालांकि उनके पास ज्यादा पैसे नहीं है परंतु फिर भी वह दोनों बंदूक वाले को 10-10 रूपए देकर दो टिकट खरीद लेते हैं परंतु अपने तीनो प्रयासो में वे दोनों मछली की आंख तो दूर उसकी पूछ को भी नही भेद पाते ।
वैसे अपने 10 रूपए गवा कर भी दोनों दोस्त बहुत खुश हैं वो शायद इसलिए क्योंकि दोनो को ही पहली बार बंदूक चलाने व निशाना लगाने का मौका मिला था । एक छोटा सा ही सही परंतु निशानेबाज बनने का यह एहसास दोनों को काफी हर्षित करने वाला था ।  राधे, मोहन से वहां से चलने को कहता है । दोनों भीड़ में से बाहर तो निकल आते हैं परंतु दोनों का ही मन एक बार फिर निशाना साधने का है ।
मोहन अपनी इस इच्छा को राधे से व्यक्त करता है तब राधे उससे कहता है

यार मेरी भी कुछ ऐसी ही इच्छा है परंतु तु तो जानता ही है कि हम इस खेल में बिल्कुल ही अनाड़ी हैं इसीलिए बेकार में कोशिश करने का कोई फायदा नहीं

परंतु मोहन, राधे की बात न मानकर, स्कूल के फीस के नाम पर मिले पैसो मे से,10 रूपए निकालकर  बंदूक वाले को देता है परंतु इस बार भी उसके तीनों ही गोलियां बेकार जाती हैं । अब वह बार-बार टिकट खरीदता और निशाना लगाता। वहीं राधे उस फिजूलखर्ची के लिए टोकता किन्तु वह नही मानता ।
वहीं मोहन की गोली कभी चकरी को तो कभी मछली की पूंछ पर जा लगती है परंतु मोहन ने हार नहीं माना, तभी अचानक मोहन के बन्दूक से निकली एक गोली मछली के आंख को बिल्कुल छू कर निकल जाती है जिसे देखकर सब चौक जाते हैं और तभी मोहन के बन्दूक से निकली अगली गोली मछली के आंख को भेद जाती है ।
जिसे देख मेले में आए सभी लोग तालियां बजाने लगते हैं । गांव से आए कुछ अन्य साथी मोहन को अपने कंधों पर उठा लेते हैं यह सब देख राधे मन मसोज कर रह जाता है । मेले से लौटते वक्त मोहन से पूछता है
“दोस्त आखिर तुमने यह कैसे किया”

दोस्त जब मैंने पहली बार निशाना लगाने के लिए टिकट खरीदा तब मुझे मिले तीन मौकों में हर बार मुझे ऐसा लगा जैसे मुझे एक और मौका मिले तो मैं अपनी पिछली गलतियों को सुधार कर और बेहतर निशाना लगा सकता हूं इसी वजह से मैंने बार-बार टिकट खरीदा और मुझे हर निशाने में एक नया अनुभव मिला जिससे सीखकर मैंने मछली के करीब और करीब निशाना लगाने के प्रयास में सफलता पाई और इस प्रकार मेरा आखरी निशाना उसकी आंख पर जा लगा ।

(मोहन, राधे से कहता है)

कहानी से शिक्षा | Moral Of This  Short Motivational Story In Hindi

  दोस्तों लक्ष्य चाहे कितना भी कठिन क्यों ना हो परंतु यदि हम ध्यानपूर्वक अपने प्रयासों को निरंतर दोहराते रहेंगे और उससे मिली सीख से अपने कार्य में सुधार लाएंगे तो निश्चित रूप से वह कठिन लक्ष्य भी बेहद सरल हो जाएगा और इसप्रकार हमें लक्ष्य प्राप्ति में सफलता प्राप्त होगी परंतु जो लोग लक्ष्य की कठिनता को देखकर पैर पीछे कर लेते हैं । उन्हें नए अनुभव और उनसे मिली सीख कभी प्राप्त ही नहीं हो सकती इसीलिए किसी भी लक्ष्य को चुनाव करने के बाद आप अपने पैर कभी पीछे मत खींचीए  क्योंकि वह कठिन हो सकता है परंतु असंभव नहीं !



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Karan Mishra

करन मिश्रा को प्रारंभ से ही गीत संगीत में काफी रुचि रही है । आपको शायरी, कविताएं एवं‌‌ गीत लिखने का भी बहुत शौक है । आपको अपने निजी जीवन में मिले अनुभवों के आधार पर प्रेरणादायक विचार एवं कहानियां लिखना काफी पसंद है । करन अपनी कविताओं एवं विचारों के माध्यम से पाठको, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने का प्रयत्न करते हैं ।

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