सफलता के सूत्र – प्रेरणादायक हिंदी कहानी | Top Inspirational Story In Hindi

क्या हैं "सफलता के सूत्र", लोग सफल कैसे होते हैं | "Look at the rivals for success" Inspirational Story In Hindi with moral

सफलता के लिए प्रतिद्वंद्वियों पर रखे पैनी नजर – प्रेरणादायक कहानी | Inspirational Story In Hindi

  थोड़े ही समय में डेविड और मार्केल ने यह समझ लिया की तरक्की का सही रास्ता कोई जाँब नहीं बल्कि बिजनेस है । दोनों ने  बिजनेस में अपनी किस्मत आजमाने का निर्णय लिया । इससे पहले दोनों दोस्तों ने काफी समय तक विभिन्न प्राइवेट फॉर्म में जॉब करके ये जान लिया था कि जिंदगी जीने के लिए एक अच्छी जॉब काफी है मगर सपनों अगर की उड़ान भरना है तो उसके लिए उन्हें यह जॉब छोड़नी होगी और व्यापार करना होगा ।

  ऐसे मैं दोनों ने मिलकर व्यापार करने की सोची सवाल यह था कि छोटे-मोटे व्यापार के लिए भी पूंजी का इंतजाम वह कहां से करें मगर जहां चाह है वहां राह दोनों दोस्तों ने अपने अपने पास जमा पैसा  इकट्ठा किया परंतु यह बहुत थोड़ा ही था । ऐसे में दोनों ने अपने पुश्तैनी मकान को गिरवी रखकर कुछ और पैसे जमा कर लिए ।

  उन पैसों से दोनों ने एक विंग स्केल कंपनी बनाई जिसका नाम डेविड मार्केल एंड कंपनीज रखा उनके पास फैक्ट्री डालने के लिए तो पैसा नहीं था । ऐसे में उन्होंने पास के ही फैक्ट्रियों से माल बनवा कर उसे बाजार में बेचना शुरू कर दिया । दोनों ने काफी कड़ी मेहनत की धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाई और कंपनी चल पड़ी ।

  कंपनी जैसे-जैसे आगे बढ़ने लगी । दोनों के पास काफी धन इकट्ठा होने लगा । थोड़े ही दिनों में कंपनी के लिए उन्होंने एक जमीन खरीदी । पहले तो कंपनी में एक-दो  इंप्लॉइज के सहारे उन्होंने काम शुरू किया मगर देखते ही देखते इंप्लॉइज की संख्या काफी बढ़ा ली । बाहर से माल बनवाने से उन्हें मशीनें थोड़ी ऊंचे दामों पर मिलती थी । ऐसे में पैसे हो जाने पर दोनों ने इसी जमीन पर एक छोटी सी फैक्ट्री डालने का निर्णय लिया । दोनों का निर्णय काफी सूझबूझ भरा था ।

  ऐसे में इस निर्णय की सफलता में उन्हें कोई संदेह नहीं था आखिरकार फैक्ट्री चल पड़ी अब उन्हें मार्केट से मिले ऑर्डर के लिए दूसरे फैक्ट्री वालों का मुंह ताकने की आवश्यकता नहीं थी । देखते ही देखते  डेविड मार्कल एंड कंपनीज का नाम काफी जाने-माने कंपनियों में शुमार हो गया । आज जहां भी देखो ग्राहकों की पहली पसंद डेविड मार्कल एंड कंपनीज हो  गई थी ।

  फर्श से अर्श पर पहुंचाने के बाद डेविड और मार्कल मैं थोड़ा-थोड़ा अहंकार भी आने लगा । अब उन्हें एक दूसरे के हर फैसले में ऐतराज़ होने लगा । उन्हें दूसरों से कहीं ज्यादा अपना फैसला अहमियत रखने लगा । दोनों को लगने लगा कि अगर कंपनी उनके हिसाब से चलती तो ज्यादा लाभ कमाया जा सकता था । ऐसे में दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति नफरत का भाव पैदा होने लगा ।

  जो ज्यादा दिन छुप न सकी और आखिरकार कुछ दिनों में ही यह नफरत सामने आ गयी । दोनों दोस्त बात-बात पर एक दूसरे से झगड़ने लगे एवं  किसी भी विषय पर  वह दूसरे की राय पर पूर्णतया असहमति जताने लगे । बात इतनी बढ़ गई कि कंपनी का काम देखते ही देखते रूक सा गया जो कि कंपनी के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं था ।

  ऐसे में दोनों ने अपने गुरु रॉबर्ट से मिलने का फैसला किया । दोनों ने रॉबर्ट को सारी बातें बताई रॉबर्ट उन दोनों की बातें सुनकर समझ गए उन्होंने कहा

  “जबतक तुम दोनो को एक-दूसरे पर भरोसा था । तबतक तुम्हारा साथ काम करना कम्पनी के हित मे था परंतु अब स्थिति बिल्कुल विपरीत है अच्छा होगा कि समय रहते तुम दोनो अलग-अलग काम करो  अन्यथा इस आपसी झगड़े मे कहीं ऐसा न हो कि न तुम दोनो की दोस्ती शेष रहे और न कम्पनी का अस्तित्व”

  रॉबर्ट की बातें दोनों को बिल्कुल सही लगी और देर न करते हुए दोनों ने कंपनी के दो हिस्से कर डाले ।  जिसमें एक हिस्सा डेविड ने और दूसरा मार्कल ने संभाला अब इन सब के कारण मार्केट में फैला डेविड मार्कल एंड कंपनीज का नाम का ब्रांड कहीं गुम हो गया ।

 अब डेविड की कंपनी डेविड और मार्केल की कंपनी मार्कल के नाम से जानी जाने लगी । दोनों ने अपनी अपनी कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए जी तोड़ मेहनत की । धीरे धीरे दोनों की कंपनी मार्केट में फिर से पुराना स्थान प्राप्त करने लगी । अब विंग स्केल कंपनीज की दौड़ में सबसे ऊपर डेविड और मार्कल की कंपनी थी ।

  जिसके कारण दोनों में पहले स्थान पर पहुंचने के लिए होड़ लग गई वैसे तो दोनों दोस्त सिर्फ विचारों में असमानता की वजह से एक दूसरे से सिर्फ अलग हुए थे परंतु इस मुकाबले में दोनों की दोस्ती को कटुता में बदल दिया ।

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  अब दोनों ही एक दूसरे से आगे निकलने में इतनी मशरूफ हो गए कि वह अपनी पुरानी दोस्ती को ही भूल बैठे अब सवाल था कि कैसे स्केल कंपनीज में अपनी कंपनी को सबसे ऊपर लाया जाए । दोनों इसी जुगत में रोज लगे रहते एक दिन डेविड के मन में ख्याल आया कि उसकी फैक्ट्री काफी छोटी और पुरानी तकनीकी पर आधारित है । जिसके कारण मशीनों के निर्माण में काफी ज्यादा लागत आती है । जिसके कारण उसे काफी कम मुनाफा मिलता है । अगर वह नई टेक्नोलॉजी पर आधारित एक काफी बड़ी सी फैक्टरी डाल सके तो निश्चित रुप से  मशीनों के बनाने मे  लागत कम हो जाएगी । जिसके कारण वह ज्यादा मार्जिन कमा सकेगा और इस प्रकार वह इस बिजनेस का बादशाह बन जाएगा परंतु डेविड के सामने सबसे बड़ी प्रॉब्लम पूंजी की थी । उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह बड़ी सी फैक्ट्री के लिए एक बड़ी भूमि तक खरीद सके ।

  ऐसे में भूमि पर फैक्ट्री का निर्माण करना तो बहुत दूर की बात थी परंतु डेविड को अपने इस फैसले की सफलता पर पूरा भरोसा था । ऐसे में वह अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए तन मन से जुट गया । इस प्रोजेक्ट में उसने आजतक जो भी पैसा कमाया था वह सारा पैसा लगा दिया चूंकि डेविड विंग स्केल की दुनिया का काफी बड़ा बिजनेसमैन था ।

  ऐसे में उसकी जान पहचान और उस पर भरोसा करने वाले लोगों की एक बहुत बड़ी तादाद थी जब उसने अपने इस बिजनेस प्रपोजल  के बारे में उन्हें बताया तो ऐसे में उसे फैक्ट्री के लिए पैसों की मदद करने के लिए सब ने हां कर दी । डेविड  ने सबसे थोड़ा थोड़ा पैसा उधार लेकर फैक्ट्री के लिए काफी बड़ी जमीन खरीदी । जमीन खरीदने के बाद, अब जरूरत थी एक अच्छे बैंक लोन की जिसके दम पर फैक्ट्री का निर्माण कराया जा सके क्योंकि डेविड की कंपनी की इमेज मार्केट में बहुत ही अच्छी थी । ऐसे में कोई भी बैंक वाला उसे आसानी से लोन देने के लिए बिल्कुल तैयार था ।

  कुछ ही दिनों में डेविड का  लोन पास हो गया और उसने फैक्ट्री का निर्माण का कार्य शुरू करा दिया । देखते ही देखते डेविड की फैक्ट्री लगभग बनकर तैयार हो गई  परंतु इस फैक्टरी के निर्माण में डेविड के अनुमान से कहीं ज्यादा पैसों की आवश्यकता थी चूंकि वह  बैंक से पहले ही काफी लोन उठा चुका था । इसलिए अब उसे और लोन मिलना इतना आसान नहीं था । ऐसे में उसने अपनी  पुरानी फैक्ट्री को गिरवी रखते हुए, अपने जानने वालों से मोटी रकम उधार मांगी और फैक्टरी का काम आगे बढ़ा दिया ।

  इन सबके बीच डेविड को यह पता भी नहीं था कि कोई है जो उसके पल-पल की खबर रख रहा है और वह था उसका कंम्पटीटर मार्कल, मार्कल जानता था कि अगर डेविड  अपने इरादों में अगर कामयाब हो गया । तो उस का बिजनेस  कहीं का नहीं रहेगा परंतु फिर भी मार्कल  ने डेविड से बराबरी करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया चूंकि  डेविड और मार्कल दोनों की कंपनी की इमेज काफी अच्छी और कीमत काफी वाजिब थी । ऐसे में उनकी मशीने बिना किसी लांग लपेट के यू ही बिका करती थी  परंतु अचानक जाने क्यों मार्कल  ने अपनी मशीनों को सस्ते ईएमआई पर बेचना शुरू कर दिया चूंकि दोनों की मशीनों की इमेज बिल्कुल सेम थी और दोनों की प्राइस भी बिल्कुल सेम थे और मार्केट के सभी लोग दोनों को भली भांति जानते थे, वे दोनों पर बराबर का विश्वास करते थे । ऐसे में मार्कल द्वारा अपनी मशीनो पर दिए गए छोटे और आसान किस्तें ग्राहकों को ज्यादा पसंद आने लगे और डेविड के ग्राहक भी उसकी जगह मार्कल की ही मशीने लगाने लगे । जिसके कारण डेविड की मशीनों की बिक्री अचानक मार्केट में कम हो गई । पहले तो डेविड को पता ही नहीं चल सका कि उसकी मशीनों की बिक्री अचानक कम क्यों हो गई  परंतु कुछ ही दिनों में वह मशीनों की बिक्री में कमी की वजह जान गया ।

  अब सवाल था कि वह मार्कल कि इस चाल का जवाब वह कैसे दें । चूंकि वे दोनों अपनी मशीनो को वैसे ही बहुत कम मार्जिन पर बेचा करते थे । ऐसे में मार्कल को मात देने के लिए मशीनों के दामों को कम करना डेविड के लिए संभव नहीं था । अब जो दूसरा रास्ता था वह ये था कि  डेविड भी अपनी मशीनों को मार्कल की तरह ही छोटी और आसान किस्तों में  ग्राहकों को मुहैया कराए परंतु किस्तो मे देने के लिए उसे काफी ज्यादा एक्स्ट्रा पूंजी की आवश्यकता थी । जो कि उसके पास नहीं थी क्योंकि फैक्ट्री निर्माण के लिए उसने मार्केट से पहले ही खूब सारा पैसा उठा रखा था । ऐसे में पुराना पैसा चुकाए  बगैर कोई भी उसे और पैसे देने को तैयार नहीं था रही बात बैंकों की तो उन्होंने तो उसके सामने पहले हाथ खड़े कर दिए थे । अब डेविड चाह कर भी मशीनों को किस्तों में लेने का ऑफर ग्राहको को नहीं दे सकता था ।

मगर कुछ ही दिनों में वह हुआ जिसका सपना डेविड ने काफी लंबे समय से देख रखा था । डेविड की फैक्ट्री पूरी तरह बनकर तैयार  हो  गयी कुछ ही दिनों में इस नई फैक्ट्री से माल बनकर भी बाजार में आने लगा । डेविड की उम्मीदों की मुताबिक नई फैक्ट्री में  बनने वाली मशीनों पर आने वाली  लागत पहले से काफी कम थी  जिसके कारण डेविड को मार्कल से सस्ते दामों में मशीने बेचने का मौका हासिल हुआ । मार्कल के नई चाल से लगभग बंद पड़ी डेविड की मशीनें एक बार फिर से बाजार में बिकने लगी । तब जाके डेविड की सांस में सांस आई मगर अचानक एक महीने बाद जो रिजल्ट आया उसे देखकर डेविड को कुछ खास खुशी नहीं हुई ।

  डेविड ने जैसा सोचा था वैसा तो बिल्कुल भी नहीं था आखिर उसको वैसी सफलता क्यों नहीं मिली जैसा कि उसने फैक्ट्री डालने से पहले सोचा था । असल में नई फैक्ट्री से मशीनों की लागत में वाकई भारी कमी जरूर आई थी परंतु इस फैक्ट्री को खड़ा करने में डेविड ने बैंकों और दूसरे लोगों से काफी मोटा कर्ज ले रखा था । ऐसे मे इस भारी भरकम कर्ज पर दिए जाने वाले ब्याज का बोझ मशीनों की लागत पर आना लाजमी था । जिसकी वजह से मशीनों के दामो मे उतनी कमी नहीं हो सकी जितनी कि डेविड ने आशा की थी ।

  ऐसे में मशीनों का बाजार मूल्य भी बहुत ज्यादा घटा पाना डेविड के लिए अब असंभव सा था जिसके कारण ग्राहकों से डेविड को निराशा हाथ लगने लगी क्योंकि दो कंपनियां की मशीनों, जिनका मूल्य लगभग समान था । उसमें उन्हें किस्तों पर मिल रहीं मशीन ज्यादा लुभा रही थी । जबकि डेविड के पास उन्हे नकद पर बेचने के सिवाय दूसरा कोई रास्ता नहीं था ।

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  धीरे धीरे मार्कल के मशीनों के सामने डेविड की मशीनें पस्त हो गई । उसकी बिक्री लगभग पूरी तरह से बंद हो गई । इधर बड़ी फैक्ट्री होने के नाते उसका मेंटेनेंस भी काफी ज्यादा था । ऐसे में कमाई बिल्कुल शून्य होता देख डेविड घबरा गया । उसने ग्राहकों से नए सिरे से बात करनी चाहि परंतु वे उसे मार्कल की तरह ही मशीनों को किस्तों में अथवा उससे कम मूल्य पर  देने का दबाव डालते ।

  कोई रास्ता न देख डेविड ने मशीनों का मूल्य कम करने की सोची हालांकि इसके लिए उसके पास मार्जिन बिल्कुल भी नहीं था । ऐसे में उसने मशीनों की क्वालिटी में समझौता करते हुए मशीनों का दाम थोड़ा कम कर दिया । मार्कल की मशीनों के मुकाबले डेविड की मशीनों का दाम कम होने के कारण उसकी मशीनें एकबार फिर मार्केट में चल पड़ी  परंतु सच आखिर कबतक छुपा रह सकता है । कुछ दिनों में ही लोगों को समझ में आ गया कि डेविड की मशीनों की क्वालिटी अब पहले जैसी नहीं रही जिसके कारण लोग डेविड की मशीनों को और ज्यादा सस्ता खोजने लगे । अब डेविड की लड़ाई पहले दूसरे पायदान की नहीं बल्कि चौथे पांचवे की हो गई ।

  इमेज के गिर जाने के कारण अब डेविड की मशीनों का मूल्य ग्राहक अपनी-अपनी तरह लगाने लगे थे  साथ ही डेविड की मशीनें अब वह पसंद करता जो मार्कल जैसी टॉप कंपनियों की मशीनें नहीं खरीद सकता था । जिसके कारण डेविड की मशीनों की बिक्री एकबार फिर काफी कम हो गई चूंकि डेविड की फैक्ट्री ज्यादा क्वांटिटी में मशीनों का निर्माण करने की क्षमता रखने वाली थी । ऐसे में थोड़ा आर्डर मिलने से कम क्वान्टिटी मे मैन्युफैक्चरिंग डेविड को महंगा पड़ रहा था । अब तो आलम यह था कि डेविड 

    “न घर का रहा न घाट का “
  एक तरफ मशीनों की घटती बिक्री और घटते दाम दूसरी तरफ ऑर्डर कम मिलने के कारण बड़ी सी फैक्ट्री में मैन्युफैक्चरिंग पर बढ़ती लागत अब डेविड करे तो क्या करें । डेविड को बाजार और बैंकों से कर्ज लिया पैसा चुकाना तो दूर उसका सूद भी दे पाना उसे मुश्किल हो रहा था ।

  उसे कुछ ही दिनों में यह समझ आ गया कि इतनी बड़ी फैक्ट्री के लायक अब वह नहीं रहा । फैक्ट्री रूपी, इस बड़े से जानवर के मुंह में निवाला भी बड़ा चाहिए ऐसे में उसने फैक्ट्री को बेचने की सोची परंतु कर्ज में डूब चुकी इस फैक्ट्री को लेने के लिए भी कोई आगे नहीं आ रहा था ।

  जब एक दिन डेविड ऑफिस में दोनों हाथों पर अपना सर रख कर कोहनी को मेज पर गड़ाए अपने चेयर पर बैठा था । तभी उसके पास एक खत आया खत में एक ऑफर था । जिसके अनुसार कोई उसकी फैक्ट्री को खरीदना चाहता था । जिसके बदले वह उसे उसका सारा कर्जा अदा करने के साथ साथ उसे थोड़ा धन भी दे रहा था ।

   इन सबके साथ डेविड के लिए सबसे फायदेमंद बात यह थी कि वह डेविड को आगे बिजनेस करने के लिए एक छोटी सी फैक्ट्री भी ऑफर कर रहा था । जब यह ऑफर लेटर डेविड ने पढ़ा तो वह काफी खुश हुआ क्योंकि वह ऐसे दलदल में फंस चुका था जिस से बाहर निकलने का उसे कोई रास्ता समझ नहीं आ रहा था । वह कुछ भी नहीं कर पा रहा था । बस दिन-रात उसी दलदल में धंसता जा रहा था । नीचे लेटर भेजने वाले का पता लिखा था । वह लेटर भेजने वाला कोई और नहीं डेविड का अपना दोस्त मार्कल था । डेविड ने जैसे ही लेटर भेजने वाले को जाना उसे  बहुत गुस्सा आया उसने तत्काल लेटर को फाड़कर डस्टबिन में डाल दिया और ऑफिस से बाहर चला गया और शाम तक घर नहीं लौटा ।


  अगली सुबह वह मार्कल के घर जा पहुंचा । दरवाजा खटखटाने पर मार्कल बाहर आया डेविड ने मार्कल से उसके द्वारा दिए गए ऑफर लेटर के लिए सहमति जताई । मार्कल बहुत खुश हुआ और देखते ही देखते डेविड की बड़ी सी फैक्ट्री का वह मालिक मार्कल बन बैठा । उसने अपनी छोटी सी फैक्ट्री को डेविड को दे दिया ।

  असल मे रात भर भटकते भटकते डेविड को शायद यह समझ आ चुका था कि  वह उसका प्रतिद्वंद्वी जरूर है और उसे इस हाल में पहुंचाने का शायद जिम्मेदार भी है परंतु इस समय उसके पास इससे बेहतर मौका भी दूसरा कोई नहीं है जैसे ही यह बात उसे समझ में आई । उसका गुस्सा और उसकी झल्लाहट शांत हो गई । उसने शांत मन से इस फैसले को स्वीकार कर लिया ।

Moral Of The Story 


moral of the story "सफलता के सूत्र - प्रेरणादायक हिंदी कहानी | Top Inspirational Story In Hindi"

  हम अक्सर अपनी सफलता के लिए दृष्य इच्छा शक्ति और पूरे आत्मविश्वास के साथ सफलता की सारी संभावनाओं को तरासते हैं यद्यपि मौजूदा विकल्पों में सही विकल्प का चुनाव कर कर पूरी लगन और मेहनत से उस पर काम भी करते हैं परंतु  हमारा फैसला सही होने पर और हमारी ईमानदार और कड़ी मेहनत के बावजूद कभी-कभी हम सफलता से वंचित रह जाते हैं । जिसका प्रमुख कारण यही है कि हम सिर्फ खुद को बेहतर बनाने में लगे रहते हैं यह सही है कि सफल होने के लिए सबसे ज्यादा खुद को बेहतर बनाने की आवश्यकता है परंतु अपने विरोधियों से आगे निकलने के लिए सिर्फ इतना ही काफी नहीं है क्योंकि अगर हमें वाकई में अपने विरोधियों से आगे निकलना है । तो उनके हर कदम पर नजरें गड़ाए रखनी होगी । हमें जानना होगा कि वह अपने लक्ष्य में सफल होने के लिए क्या-क्या कदम उठाने जा रहे हैं क्योंकि अगर हम उनके हर अगले कदम को पहले ही जान लेंगे तो जाहिर सी बात है कि हम उसी के अनुसार अपने दिशा में परिवर्तन या सुधार ला सकते हैं । सफलता सिर्फ आंख मूंदकर कठिन परिश्रम से हासिल नहीं की जा सकती इसके लिए हमें अपनी निगाहें चारों तरफ दौड़ानी होगी । हमें देखना होगा कि हमारे  competitor हमें आगे कौन सी चुनौतियाँ  दे सकते हैं और  अगर हमें इस बात का पता होगा तो हम उस चुनौती की तैयारी पहले से ही कर सकते हैं अन्यथा फिर हमारे सामने वही मुश्किलें आ खड़ी होंगी । जो डेविड के सामने आ खड़ी हुई डेविड ने अपने competitor पर जरा भी ध्यान नही दिया ।  उसने उसके प्लान को जानना जरूरी नहीं समझा वह बस अपने ही लक्ष्य को पूरा करने में लगा रहा जबकि मार्कल ने डेविड के हर कदम पर नजरें गड़ाए रखी। जिसके कारण उसने डेविड के कमियों को भी जान लिया । वह किन मुश्किल हालातों में है उसने यह पहले ही समझ लिया और फिर उसने वहां चोट की जहां से बचकर निकल पाना लगभग असंभव था । आपको भी अगर सफल होना है, अपने बिजनेस में सक्सेस पानी हैं । तो सिर्फ आंखें मूंदे अपने फैसले को पूरा करने में लगे न रहें अपने प्रतिद्वंदियों पर नजर रखे हुए अपनी आगे की स्ट्रेटेजी बनाए ।

याद रहे आपको मार्कल बनना है डेविड नही !




author

Karan Mishra

करन मिश्रा को प्रारंभ से ही गीत संगीत में काफी रुचि रही है । आपको शायरी, कविताएं एवं‌‌ गीत लिखने का भी बहुत शौक है । आपको अपने निजी जीवन में मिले अनुभवों के आधार पर प्रेरणादायक विचार एवं कहानियां लिखना काफी पसंद है । करन अपनी कविताओं एवं विचारों के माध्यम से पाठको, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने का प्रयत्न करते हैं ।

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