सफलता के लिए प्रतिद्वंद्वियों पर रखे पैनी नजर – प्रेरणादायक कहानी | Inspirational Story In Hindi
थोड़े ही समय में डेविड और मार्केल ने यह समझ लिया की तरक्की का सही रास्ता कोई जाँब नहीं बल्कि बिजनेस है । दोनों ने बिजनेस में अपनी किस्मत आजमाने का निर्णय लिया । इससे पहले दोनों दोस्तों ने काफी समय तक विभिन्न प्राइवेट फॉर्म में जॉब करके ये जान लिया था कि जिंदगी जीने के लिए एक अच्छी जॉब काफी है मगर सपनों अगर की उड़ान भरना है तो उसके लिए उन्हें यह जॉब छोड़नी होगी और व्यापार करना होगा ।
ऐसे मैं दोनों ने मिलकर व्यापार करने की सोची सवाल यह था कि छोटे-मोटे व्यापार के लिए भी पूंजी का इंतजाम वह कहां से करें मगर जहां चाह है वहां राह दोनों दोस्तों ने अपने अपने पास जमा पैसा इकट्ठा किया परंतु यह बहुत थोड़ा ही था । ऐसे में दोनों ने अपने पुश्तैनी मकान को गिरवी रखकर कुछ और पैसे जमा कर लिए ।
“जबतक तुम दोनो को एक-दूसरे पर भरोसा था । तबतक तुम्हारा साथ काम करना कम्पनी के हित मे था परंतु अब स्थिति बिल्कुल विपरीत है अच्छा होगा कि समय रहते तुम दोनो अलग-अलग काम करो अन्यथा इस आपसी झगड़े मे कहीं ऐसा न हो कि न तुम दोनो की दोस्ती शेष रहे और न कम्पनी का अस्तित्व”
अब सवाल था कि वह मार्कल कि इस चाल का जवाब वह कैसे दें । चूंकि वे दोनों अपनी मशीनो को वैसे ही बहुत कम मार्जिन पर बेचा करते थे । ऐसे में मार्कल को मात देने के लिए मशीनों के दामों को कम करना डेविड के लिए संभव नहीं था । अब जो दूसरा रास्ता था वह ये था कि डेविड भी अपनी मशीनों को मार्कल की तरह ही छोटी और आसान किस्तों में ग्राहकों को मुहैया कराए परंतु किस्तो मे देने के लिए उसे काफी ज्यादा एक्स्ट्रा पूंजी की आवश्यकता थी । जो कि उसके पास नहीं थी क्योंकि फैक्ट्री निर्माण के लिए उसने मार्केट से पहले ही खूब सारा पैसा उठा रखा था । ऐसे में पुराना पैसा चुकाए बगैर कोई भी उसे और पैसे देने को तैयार नहीं था रही बात बैंकों की तो उन्होंने तो उसके सामने पहले हाथ खड़े कर दिए थे । अब डेविड चाह कर भी मशीनों को किस्तों में लेने का ऑफर ग्राहको को नहीं दे सकता था ।
मगर कुछ ही दिनों में वह हुआ जिसका सपना डेविड ने काफी लंबे समय से देख रखा था । डेविड की फैक्ट्री पूरी तरह बनकर तैयार हो गयी कुछ ही दिनों में इस नई फैक्ट्री से माल बनकर भी बाजार में आने लगा । डेविड की उम्मीदों की मुताबिक नई फैक्ट्री में बनने वाली मशीनों पर आने वाली लागत पहले से काफी कम थी जिसके कारण डेविड को मार्कल से सस्ते दामों में मशीने बेचने का मौका हासिल हुआ । मार्कल के नई चाल से लगभग बंद पड़ी डेविड की मशीनें एक बार फिर से बाजार में बिकने लगी । तब जाके डेविड की सांस में सांस आई मगर अचानक एक महीने बाद जो रिजल्ट आया उसे देखकर डेविड को कुछ खास खुशी नहीं हुई ।
उसे कुछ ही दिनों में यह समझ आ गया कि इतनी बड़ी फैक्ट्री के लायक अब वह नहीं रहा । फैक्ट्री रूपी, इस बड़े से जानवर के मुंह में निवाला भी बड़ा चाहिए ऐसे में उसने फैक्ट्री को बेचने की सोची परंतु कर्ज में डूब चुकी इस फैक्ट्री को लेने के लिए भी कोई आगे नहीं आ रहा था ।
जब एक दिन डेविड ऑफिस में दोनों हाथों पर अपना सर रख कर कोहनी को मेज पर गड़ाए अपने चेयर पर बैठा था । तभी उसके पास एक खत आया खत में एक ऑफर था । जिसके अनुसार कोई उसकी फैक्ट्री को खरीदना चाहता था । जिसके बदले वह उसे उसका सारा कर्जा अदा करने के साथ साथ उसे थोड़ा धन भी दे रहा था ।
इन सबके साथ डेविड के लिए सबसे फायदेमंद बात यह थी कि वह डेविड को आगे बिजनेस करने के लिए एक छोटी सी फैक्ट्री भी ऑफर कर रहा था । जब यह ऑफर लेटर डेविड ने पढ़ा तो वह काफी खुश हुआ क्योंकि वह ऐसे दलदल में फंस चुका था जिस से बाहर निकलने का उसे कोई रास्ता समझ नहीं आ रहा था । वह कुछ भी नहीं कर पा रहा था । बस दिन-रात उसी दलदल में धंसता जा रहा था । नीचे लेटर भेजने वाले का पता लिखा था । वह लेटर भेजने वाला कोई और नहीं डेविड का अपना दोस्त मार्कल था । डेविड ने जैसे ही लेटर भेजने वाले को जाना उसे बहुत गुस्सा आया उसने तत्काल लेटर को फाड़कर डस्टबिन में डाल दिया और ऑफिस से बाहर चला गया और शाम तक घर नहीं लौटा ।
असल मे रात भर भटकते भटकते डेविड को शायद यह समझ आ चुका था कि वह उसका प्रतिद्वंद्वी जरूर है और उसे इस हाल में पहुंचाने का शायद जिम्मेदार भी है परंतु इस समय उसके पास इससे बेहतर मौका भी दूसरा कोई नहीं है जैसे ही यह बात उसे समझ में आई । उसका गुस्सा और उसकी झल्लाहट शांत हो गई । उसने शांत मन से इस फैसले को स्वीकार कर लिया ।