अपनों को कराएँ अपनेपन का एहसास बनी रहेगी रिश्तों मे मिठास – कहानी

"अपनों को कराएँ अपनेपन का एहसास बनी रहेगी रिश्तों में मिठास" प्रेरणादायक हिन्दी स्टोरी | A best moral story in hindi. feeling - heart touching story in hindi. motivational story in hindi

एहसास – प्रेरणादायक हिन्दी कहानी  | Feeling – Heart Touching Story In Hindi

  माँ के साथ अक्सर गांव के प्राथमिक चिकित्सालय में जाते-जाते वहां की महिला डॉक्टर से सौम्या काफी  प्रेरित हो गई थी । वह घर पर अक्सर बच्चों के साथ डॉक्टर-डॉक्टर का खेल खेला करती । इस खेल में वह पिता की शर्ट को बाहों में डालें, शर्ट के बटन खुला छोड़  खुद महिला डॉक्टर की भूमिका निभाती ।

  बचपन का यह खेल एक दिन उसका जुनून बन गया  और देखते ही देखते उसके जुनून ने सफलता हासिल की ।  डॉक्टरी की पढ़ाई के दौरान सौम्या की दोस्ती अपने बैचमेट प्रशांत से हो गई । प्रशांत भी उसी के बगल के गांव का रहने वाला था । दोनों के विचारों में काफी समानता थी ।

  शायद इसी वजह से सौम्या और प्रशांत की दोस्ती काफी क्लोज हो गई । पढ़ाई खत्म होने के बाद कल तक, नन्ही सी सौम्या जो डॉक्टर डॉक्टर का खेल खेला करती थी । आज खुद एक हायर डिग्री होल्डर डॉक्टर बन चुकी थी ।

  जिसके आधार पर उसका शहर में स्थित मेडिकल कॉलेज में बतौर प्रोफेसर नियुक्ति हुई । जिंदगी के इस भाग दौड़ में जॉब पाने के बाद जब सौम्या को थोड़ी फुर्सत मिली तब उसे अपने करीबी मित्र प्रशांत की याद आई और उसने प्रशांत को तलाशना शुरू कर दिया ।

  वह अपने इस मकसद में भी सफल हुई । उसकी अपने जिगरी यार प्रशांत से मुलाकात हुई संजोग से वह भी उसी मेडिकल कॉलेज में बतौर प्रोफ़ेसर नियुक्त हुआ । पुराने यार को पाकर सौम्या बहुत खुश हुई । वे ज्यादा से ज्यादा टाइम एक दूसरे के साथ स्पेंड करने लगे ।

  सौम्या और प्रशांत दोनों ने ही इस साथ को जीवन भर का साथ बनाने की सोची । इसके लिए उन दोनों ने अपने अपने घर वालों से बात भी की । दोनों के परिवार के लोगों को इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं थी । सभी बहुत खुश थे । दो करीबी दोस्त जीवन भर की दोस्ती के पवित्र बंधन में बंध गए ।

  दोनों का प्रोफेशन एक ही होने के कारण वे एक दूसरे को बहुत अच्छी तरह समझते थे । जीवन की भाग दौड़ में न जाने कब शादी के सात साल गुजर गए हालांकि  इन सात सालों में दोनों के बीच रिश्तो की मिठास कभी कम नहीं हुई परंतु  शादी के इतने समय बाद भी उनकी कोई संतान नहीं थी ।

  एक बार जब सौम्या की मां उनसे मिलने मेडिकल कॉलेज उनके आवास पर आई तो उन्होंने सौम्या से इस विषय पर बात की, तब सौम्या ने बताया कि कोई प्रॉब्लम तो नहीं है परंतु इस जिम्मेदारी के लिए अभी उनके पास वक्त की थोड़ी कमी है ।

  अभी वे अपने करियर को और बेहतर बनाने में लगे हैं । अपना सारा समय वह अपने करियर को देना चाहते हैं और इसलिए बच्चे के विषय में अभी नहीं सोच रहे है । माँ उससे थोड़ी सहमत जरुर थी पर उसके मन मे भी कुछ विचार थे । जिसे उसने उससे शेयर किया। माँ की बाते शायद उसे सही लगीं फलत: साल भर बाद श्रेयांश को उसने जन्म दिया ।

  कॉलेज के क्लासेस ओपीडी सेमिनार और उसके बाद बच्चे की परवरिश वाकई सौम्या की लाइफ काफी संघर्ष वाली हो गई थी । उसे एक पल का भी चैन नहीं था । वह सुबह उठते ही तैयार होकर मेडिकल स्टूडेंट्स को क्लासेस देने जाती फिर पेशेंट्स को देखती कॉलेज से फुर्सत पाते ही वह भागे अपने बच्चे के पास पहुच जाती ।

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  इस भागदौड़ में कुछ ही दिनों में सौम्या ने समझ लिया था कि कहीं न कहीं उसके बच्चे की परवरिश में कुछ कमी रह जा रही है जैसे ही उसको इस बात का एहसास हुआ उसने फौरन अपने बच्चे के लिए एक केयरटेकर रखने की सोची । केयर टेकर श्रेयांश का सौम्या की गैरमौजूदगी में पूरा दिन खयाल रखती ।

  जिसके कारण सौम्या को भी श्रेयांश की पल-पल की चिंता से मुक्ति मिल गई और वह अपना काम अब ज्यादा इमानदारी से कर सकती थी ।

  धीरे-धीरे श्रेयांश बड़ा होने लगा अब उसके स्कूल जाने का समय था । सौम्या उसे अपनी तरह ही एजुकेटेड बनाने का सपना देखती थी इसीलिए उसने अपने बच्चे को उस छोटे से शहर के सबसे बड़े स्कूल में दाखिला दिलाया । व्यस्तता के कारण सौम्या बच्चे को काफी कम समय ही दे पाती । ऐसे में उसने बच्चे को पढ़ाई में अव्वल बनाने के लिए होम ट्यूशन की व्यवस्था भी कर दी ।

परंतु उसे  कुछ ही दिनों में यह बात समझ में आ गई कि इस छोटे से शहर में वह अपने बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए जितना चाहे  अच्छा प्रयास कर ले परंतु वह उसे यहा वे सुविधाएं नहीं दे सकती जो बड़े शहरों में बड़ी आसानी सेउसे प्राप्त हो सकती है । सौम्या को यह बात समझ में आ ही गई कि इस छोटे से शहर में श्रेयांश का कोई भविष्य नहीं । ये सब समझने के बाद उसने बड़े  शहर के जाने-माने विद्यालय में श्रेयांश का दाखिला कराया ।

  श्रेयांश को सफल बनाने  के लिए उसने एक बड़ा फैसला जरूर कर लिया परंतु उसका दिल इस बड़े फैसले के लिए शायद राजी नहीं था । वह श्रेयांश के लिए काफी तड़पती रहती । वह जैसे  ही कॉलेज से एक दो दिनों की फुर्सत पाती भागकर अपने बच्चे से मिलने उसके हास्टल जाती ।

  धीरे-धीरे माँ के सपनों की मुताबिक श्रेयांश भी उसी की तरह एक बड़ा डॉक्टर बना । श्रेयांश का कुछ ही दिनों में विवाह भी हो गया । बेटा और बहू दोनों पेशे से डॉक्टर थे । बेटा बहू को लेकर माँ के पास वापस आ गया ।  इस लंबे अंतराल में माँ जॉब से अब रिटायर हो चुकी थी और उसने मेन शहर में ही अपना खुद का एक अस्पताल डाल दिया था ।

  वह काफी फेमस भी था । बेटे और बहू को पाकर सौम्या बहुत खुश हुई । आज काफी वर्षों बाद उसके जीवन का अकेलापन धीरे-धीरे खत्म होने  लगा चूंकि  बेटा और बहू दोनों पेशे से  डॉक्टर थे इसलिए माँ ने उनके बैठने की भी व्यवस्था उसी अस्पताल में करा दिया ।

   चूँकि बहू भी, सौम्या की तरह ही स्त्री रोग विशेषज्ञ थी इसलिए उसने अपनी ही केबिन में अपने ही चेयर के ठीक बगल में उसकी भी चेयर लगा दी । एक काफी मशहूर और अनुभवी डॉक्टर की छत्रछाया में नववधू ने अपने नए जीवन एवं नए करियर की शुरुआत की ।

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  कुछ ही समय पश्चात श्रेयांश को एक सुन्दर पुत्र प्राप्त हुआ । सौम्या अब माँ से दादी बन चुकी थी । वह फूले नहीं समा रही थी । आज उसकी जिंदगी में सब कुछ था । धन दौलत सारे ऐशो-आराम और तन्हाइयों को कहीं दूर फेंकता  उसका अपना भरा पूरा परिवार आज जाके उसने खुद को कंप्लीट माना ।

मगर इन सब  के बीच बंद कमरे में कुछ और भी चल रहा था । जिसकी खबर शायद सौम्या को नहीं थी । असल में बहू बड़े शहर में रहकर बड़े बड़े ख्वाब देख चुकी थी अब उसके पांव इस छोटे शहर में नहीं टिक पा रहे थे जिसको लेकर अक्सर उसका अपने पति से बहस होती रहती हालांकि ये बाते कभी भी बंद दरवाजे के बाहर नहीं गई ।

  एक दिन बहुरानी अपने बच्चे के साथ अपने परिवार वालों से मिलने मायके गई । काफी वक्त बीत गया, मगर वह नहीं आई ऐसे में जब भी सौम्या उससे पूछती तो वह कोई न कोई बहाना मार वापस आने की बात को टाल देती । कुछ ही दिनों बाद उसने सौम्या का फोन भी उठाना बंद कर दिया, इसी बीच न जाने कैसे एक दिन सौम्या को दिल का दौरा पड़ा ।

  उसे फौरन अस्पताल ले जाया गया । जहां से उसे ऊंचे सेंटर भेज दिया गया । इस लंबी भाग दौड़ के बाद डॉक्टरों ने सौम्या को बचा तो लिया  परंतु आगे ऐसी कोई घटना न घटे जिससे उसके मन को गहरा ठेस पहुंचे ऐसी हिदायत डॉक्टरों ने उसके परिवार वालों को दी ।

  श्रेयांश बड़ी मुश्किल में फंस चुका था । वह कभी माँ के पास रहता तो कभी भागकर अपनी पत्नी जो अब विदेश में सेटल हो चुकी थी उसके पास जाता । एक बार जब वह अपनी पत्नी से मिलने फॉरेन गया तो बहुत दिनों तक वापस नहीं लौटा । उसका फोन भी स्विच ऑफ बता रहा था ।

  सौम्या काफी घबरा गई । वह श्रेयांश के ससुराल वालों से अपने बच्चे के बारे में पूछने लगी । तब उसे पता चला कि उसकी बहू अब विदेश में सेटल हो गई है और उसका बेटा आए दिन उसी से मिलने जाता रहता है ।

  कुछ दिनों बाद श्रेयांश घर वापस लौटा इस बार उसके साथ उसका बेटा भी था ।

  सौम्या बहुत खुश हुई उसका टूटा हुआ विश्वास फिर से जाग उठा क्योंकि इस बार बेटा अकेले नहीं बल्कि अपने बच्चे को भी साथ ले आया था । अब तो बहू का भी आना लगभग तय था सौम्या इस बात से बहुत खुश थी वह अपने पति को लेकर थोड़ी ही दूर स्थित एक मंदिर में भगवान के दर्शन को चली गई ।

  लौटने पर उसे जो पता चला उसे सुनकर उसकी रूह कांप उठी असल मे इस बार बेटा यहां कोई स्थाई रूप से रहने की नियत से नहीं आया था बल्कि अपना बोरिया बिस्तर समेटने के लिए  आया था श्रेयांश यहां खुद के द्वारा खरीदी हुई महंगी-महंगी मशीनों को बेचकर हमेशा हमेशा के लिए अपनी पत्नी के पास विदेश जा चुका था शायद उसे भी समझ में आ गया था कि जिंदगी का असली मजा फॉरेन कंट्रीज में ही हैं जहां जिंदगी को हसीन बनाने की सारी चीजें और सारे ऐसो आराम मौजूद हैं ।

Moral Of  The Story

बच्चो को सफलता और सुविधाओ भरी जिंदगी का मायने समझाने के साथ-साथ उनको रिश्तो की समझ और अपनेपन का एहसास कराते रहना भी जरुरी है !

 सफलता और संपन्नता समझाने के साथ-साथ अपने बच्चों को अपनेपन का एहसास भी कराएं ताकि रिश्तो में मिठास भी बनी रहे ।
ऐसी क्या कमी रह गई थी । सौम्या की परवरिश में जो आज उसे ऐसा दिन देखना पड़ा । आखिर उसने श्रेयांश को क्या नहीं दिया । जिसके कारण श्रेयांश आज उसे यहां तन्हा छोड़ चला ।
  क्या मां-बाप से ज्यादा अहमियत सिर्फ पैसों की है ? ऐसो आराम की है ? बड़े-बड़े बंगलों की है ? बड़े बड़े होटलों की है ? अच्छे रोड की है ? क्या पैसा ही सब कुछ है ? जिंदगी में अपनों का कोई महत्व नहीं है ? क्या पैसा अपनों से बढ़कर है ? आखिर श्रेयांश को प्यार का मतलब क्यों नहीं पता ? आखिर वह प्यार की अहमियत क्यों नहीं समझ सका ? वह अपनों के महत्व को क्यों नहीं जानता ? 
  क्या उसे  किसी ने प्यार की अहमियत नहीं समझाया ? प्यार क्या होता है अपनापन क्या होता है क्या उसे इस बात का एहसास ही नहीं था ?

  तो हां शायद यही सच है.. . 
  सौम्या ने हमेशा श्रेयांश को ऊंची से ऊंची शिक्षा दिलाने, उसके भविष्य सवारने की तमाम कोशिशें की और इसके लिए वह बड़े से बड़ा त्याग करने से भी नहीं हिचकी । अपने कलेजे के टुकड़े को उसके छोटी सी उम्र में ही खुद से काफी दूर करने की हिम्मत भी उसने जुटा ली परंतु जो प्यार होता है जो रिश्तो में अपनापन होता है जो  अपनेपन का एहसास होता है उस अपनेपन का एहसास उसने अपने बच्चे को कभी नहीं कराया क्योंकि इसके लिए थोड़े वक्त की जरूरत थी ।
  जो उसके पास कभी था ही नहीं सौम्या ने जो चाहा वही हुआ फिर वह दुखी क्यों है ? वह अपने बच्चे को अच्छा फ्यूचर देना चाहती थी । वह उसे कामयाब देखना चाहती थी जैसा हुआ भी उसका बेटा काफी बड़ा डॉक्टर भी बन गया । अब उसे क्या चाहिए ?
  उसके बच्चे के पास बहुत सारी सुविधाएं आजीवन रहेंगी जिसका कभी उसने सपना देखा था फिर आज सौम्या दुखी क्यों है ?

 उसके बच्चे को सिर्फ सफलता और सुविधाओ भरी जिंदगी के मायने पता थे रिश्तो की समझ तो उसमे तनिक भी नही थी । छोटी सी उम्र से ही मां-बाप से दूर रहने वाले बच्चों में भावनाएं जन्म ही नहीं ले पाती हैं उनके अंदर रिश्तो की अहमियत ही नही पैदा हो पाती है उसका एहसास ही नहीं उन्हें कभी होता है । जो एक बच्चे के अंदर अपने मां-बाप के प्रति होना चाहिए  जिन रिश्तो में अपनेपन का एहसास ही न हो उसका भविष्य शायद ऐसा ही होता है !  

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author

Karan Mishra

करन मिश्रा को प्रारंभ से ही गीत संगीत में काफी रुचि रही है । आपको शायरी, कविताएं एवं‌‌ गीत लिखने का भी बहुत शौक है । आपको अपने निजी जीवन में मिले अनुभवों के आधार पर प्रेरणादायक विचार एवं कहानियां लिखना काफी पसंद है । करन अपनी कविताओं एवं विचारों के माध्यम से पाठको, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने का प्रयत्न करते हैं ।

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