सफलता की पहली शर्त – प्रेरणादायक हिन्दी स्टोरी | What Is The First Bet Of Success Inspirational Story In Hindi

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कैसे पाएं सफलता – प्रेरणादायक हिन्दी कहानी | How To Get Success – Inspirational Story In Hindi

  हेमंत ने स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद रोजगार की सोची परंतु हेमंत के पास सिर्फ BA की डिग्री थी। आजकल भला ऐसी डिग्री का क्या, न जाने रोज कितने ऐसी डिग्रियां लेकर बेरोजगरी रजिस्टर में अपना नाम दर्ज कराया करते हैं।

  हालांकि हेमंत ने जॉब पाने की खातिर कोशिश बहुत की। उसने अपने सारे दोस्तों, उनके घर वालों, अपने रिश्तेदार, अड़ोस पड़ोस यहां तक कि हर जानने वालों से कोई अच्छी जॉब बताने को कहा, उनके द्वरा एक आदि जॉब का पता भी चला परंतु वैसी बेगारी से तो बेरोजगारी भली।

  “अपनी बेरोजगारी मिटाने के लिए जॉब के नाम पर कोई भी जॉब करने लगूंगा, तो शायद अपने जीवन का सबसे सुनहरा समय शायद यूँ ही गवा बैठूंगा और फिर पूरी जिंदगी किस्मत को दोष देता फिरूगा”
ऐसा हेमंत ने सोचा

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  ऐसा सोचकर हेमंत ने ऐसी वैसी कोई जॉब न करने का निर्णय लिया। इस फैसले के बाद वह और दृढ़ निश्चय के साथ जॉब की तलाश करने लगा । उसने दूसरे बड़े शहरों में भी जॉब ढूंढने का मन बनाया। उसका यह फैसला बहुत काम आया। उसे बड़े शहरों में ऊंची पगार की नौकरी मिलने लगी। मगर परेशानी यह थी कि इस जॉब में पैसे तो ज्यादा थे। मगर उन बड़े शहरों में किराए का मकान लेकर रहने और अन्य खर्चों के समक्ष ये उची पगार कुछ भी नहीं थी। बात घूम फिर कर वहीं आ गयी । यह बात समझ में आते ही
 
 “लौट के बुद्धू घर  को आए”

  घर आने के बाद हेमंत इस लंबे और थका देने वाले संघर्ष के बाद काफी मायूस हो गया। उसका किसी चीज में मन नहीं लगता चूँकि बाजार के बीचो-बीच उसका घर था ऐसे में अब वह रोज सुबह सवेरे उठकर आसपास की दुकानों पर तफरी करने चला जाता।
  पूरा दिन उसका उन्हीं दुकानों पर बितता अब तो वह दिन में केवल दो बार ही घर की ओर रुख करता पहली बार दोपहर के भोजन के लिए तो दूसरी बार, जब शाम को सारी दुकानों के बंद होने का समय हो जाता । 

  परंतु वक्त के इस बर्बादी में भी हेमंत को सफलता की नई दिशा मिल गई। उसे एक दोस्त मिला जो पास के ही बाजार में बेकर्स की दुकान खोला था। मजे की बात यह थी कि उसे दुकान खोले अभी थोड़े ही दिन हुए थे। मगर दुकान काफी अच्छी चल रही थी दोस्त अपनी कमाई से काफी संतुष्ट भी था।

  दोस्त से इन सब बातों को जानने के बाद हेमंत ने भी बेकर्स की दुकान डालने की सोची। भाड़े की दुकान के किराए के लिए हेमंत के पास पैसे थे। मगर ऊंची पगड़ी का इंतजाम कर पाना उसके लिए दूर की कौड़ी साबित हो रही थी।

  मगर हेमंत दुकान को करियर बनाने की दिशा में हर मुश्किल से निपटने को तैयार था। इसी सोच विचार में एक दिन उसके मन में एक ख्याल आया कि क्यों न बाजार के बीचो-बीच स्थित अपने छोटे से मकान के, रोड से सटे बाहर वाले कमरे को ही दुकान में तब्दील कर दिया जाए ।

  इसप्रकार राह से भटक चले हेमंत की जिंदगी की गाड़ी फिर से पटरी पर आ गई। अब सारा समय वह दुकान को देता। बीतते समय के साथ मिले अनुभवों की बदौलत हेमंत की दुकान चल पड़ी।

  जैसे-जैसे हेमंत के हाथ में पैसा आने लगा। उसके आत्मविश्वास में काफी इजाफा हुआ। इस काम में सबसे अच्छी बात यह थी, कि दुकान में बिकने वाली अधिकांश वस्तुएं लोगों की रोजमर्रा की जरूरतों में शामिल थी।

  ऐसे में रोज कुछ न कुछ कमाई हो ही जाती। कच्चा सामान होने के नाते मार्जिन भी बहुत था बाजार में हेमंत जैसी अच्छी रेंज वाली दुकानें भी बहुत कम थी।

  मगर इन सब खूबियों के बावजूद इस काम में दिक्कत भी बहुत थी। पहली तो यह काम जोखिम भरा था, क्योंकि खरीदें माल को दिनभर में न बेच पाने पर उसके खराब हो जाने का डर बना रहता।

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  दुकान पर आने वाले ग्राहकों को तो बस हर चीज एक दम ताज़ी चाहिए थी। एक दिन भी पुरानी चीजों को कोइ खरीदना नहीं चाहता ।

  हेमंत के नुकसान से ग्राहकों का क्या लेना देना । भला वो उसके नुकसान की चिंता क्यों करें। कुछ तो ताजे माल में भी कमी निकाल देते। ऐसे ग्राहकों से हेमंत काफी इरिटेट हो जाता और अपना संयम खो बैठता।

  हेमंत ने अपने नुकसान से उबरने का नायाब तरीका ढूंढ निकाला। उसने अपने हर समान का दाम खरीद से काफी बढ़ा चढ़ा कर रखा। जिसकी वजह से उसे नुकसान की कोई चिंता नहीं रहती।

 “मगर किस्मत फूटी हो तो मरी मछली भी पानी में कूद जाती है”
उसी बाजार में देखते ही देखते एक दो बेकरी की दुकाने और खुल गई। जिससे मार्केट मे कंपटीशन बढ़ गया, मार्केट मे बने रहने की खातिर हेमंत को भी चीजों को बेचने के लिए मुनाफा घटाना पड़ा।

  एक तरफ गला काट प्रतियोगिता मे घटता मुनाफा दूसरी तरफ कच्चे सामान में बढ़ता नुकसान। ऐसे में हेमंत का उत्साह धीरे-धीरे कम होने लगा।

   हेमंत को समझ में आ गया कि इस काम से जिंदगी तो गुजारी जा सकती है। मगर कुछ हासिल कर पाना सफेद झूठ से ज्यादा कुछ भी नहीं। इस काम से सबक लेते हुए धैर्य के साथ उसने सफलता के नए रास्तों को तराशना शुरू कर दिया।

  बहुत ही सोचने समझने के बाद उसने पूरी गलतियों को न दोहराते हुई रेडीमेड गारमेंट्स की दुकान खोली। इस काम मे स्कोप भी काफी था और सबसे अच्छी बात ये कि इसमें कच्चे सामानों का दूसरे ही दिन खराब हो जाने जैसा कोई जोखिम भी नहीं था।

  देखते ही देखते पूरे बाजार में हेमंत,  हेमंत से सेठ जी बन गया। इस तरह इस काम से वह पैसों के साथ साथ इज्जत भी कमाना शुरु कर दिया।

  एक दिन अचानक काफी दिनों से बन्द पड़ी, सामने वाली दुकान का शटर उठा, पता चला कि उसमें कोई बेकर्स की दुकान खोलेगा। यह सुनकर हेमंत हंस पड़ा।

“जिस काम को उसने अभी कुछ दिन पहले ही लात मार दी । आज जाने कौन मूर्ख उसी काम मे अपना भविष्य बनाने चला”

हेमंत दुकानदार को समझाना चाहा। मगर फिर न जाने वह मन ही मन क्या सोचकर
 वहाँ नही गया।

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  कुछ दिनों बाद वह दुकान बनकर तैयार हो गई। शुरू-शुरू मे तो उसके दुकान का हाल भी बिल्कुल हेमंत की पुरानी दुकान जैसा ही रहा परन्तु तकरीबन आठ महीने गुजर जाने के बाद, उस दूकान की जो रंगत थी उसे देखकर हेमंत को अपने द्वारा बेकरी की दुकान बन्द किए जाने के पुराने फैसले के सही या गलत के बारे में सोचने समझने के लिए मजबूर कर दिया।

  दुकान देखते-ही-देखते न सिर्फ उस बाजार में बल्कि पूरे एरिया में फेमस हो गई । दूर-दूर से लोग उसकी बनाई पेस्टी, पेटीस आदि लेने आते। बर्थडे और एनिवर्सरी केक खरीदने वालों का तो ताता लगा रहता।

“जिस काम मे हेमंत ने डार्क फ्यूचर देखकर उसे छोड़ दिया था । उसी काम से कोई भला अपना भविष्य कैसे सवार सकता है”

हेमंत के दिमाग में हर पल अब यही सवाल गूंज रहे था। उधर हेमंत की पुरानी मुसीबतों ने नया रूप ले लिया था ।

  कपड़े के कारोबार में दूसरे ही दिन नुकसान होने वाला तो कुछ भी नहीं था। मगर रोज बदलते फैशन में कौन सा परिधान कब ओल्ड फैशन बन जाए और फिर उसकी बिक्री पर ताला जड़ जाए यह कोई नहीं जानता।

  आखिरकार अपने सवालों का जवाब जानने हेमंत सामने वाली बेकरी की दुकान पर जा पहुंचा। उसने दुकानदार से अपनी सारी आपबीती सुनाई।
  दुकानदार उसे सुनकर हंस पड़ा। दुकानदार ने बताया कि

“मैन काफी समय पहले इस काम को अपने घर के पास वाले बाजार से शुरू किया था। तब मुझे भी ऐसी ही मुसीबतों का सामना करना पड़ा। जो तुमने किया मगर जैसे-जैसे मैंने इस काम की बारीकियों को समझा और उसपर गौर करना शुरू किया मेरा काम दिन-प्रतिदिन पहले के मुकाबले आसान होता गया”

दुकानदार ने फिर कहा

  “सामान का ताजा होना इस काम की पहली शर्त है और शायद इस काम मे सफलता की पहली शर्त भी यही है । जिस दिन मैंने इस बात को समझा, पहले तो कुछ उत्पाद बनाना मैने स्वयं सीखा और धीरे-धीरे मैंने इस काम के लिए कुछ वर्कर्स भी रखें जैसे-जैसे काम बढा मेरे आत्मविश्वास मे भी बढ़ोतरी हुई। मैंने ठान लिया कि मुझे इसी काम को करना है। मैंने इस बात को भी भली-भांति समझा कि कोसों दूर से कोई ग्राहक मेरे उत्पादों के बारे मे जानकर मेरी दुकान पर कभी कभाई आ सकता है। मगर रोजमर्रा की इन चीजों को खरीदने वह रोज रोज नहीं आ सकता। इसलिए मैंने शहर के विभिन्न हिस्सों में एक-एक करके अपनी दुकान डाली और हर नई दुकान पर स्वयं तब तक मौजूद रहा जब तक कि उसकी इमेज मेरे दूसरे दुकानों की तरह न हो जाए”

हेमंत को अपनी खामिया याद आ रही थी
दुकानदार ने बताया कि

“क्वालिटी को बरकरार रखकर इस छोटे से दिखाने वाले बिजनेस को मैंने ब्रांड बना दिया। जिसका नाम है

माई टेस्ट’

आई मीन मेरी, दुकान का नाम मैंने शहर में जितनी भी दुकानें खोली सबका नाम माई टेस्ट है”

Moral of the story 

         तुम्हारे काम की पहली शर्त ही सफलता की पहली शर्त है इसे समझें और इसे पूरा किए बिना तुम कभी सफल नहीं हो सकते !

जॉब या बिज़नेस को बदलते रहना बेहद आसान है but किसी भी job या business में success पाने के लिए, काम की बारीकियों & उसकी पहली शर्त को समझना और उसे पूरा करने का हर सम्भव प्रयास करने से ही सफलता सम्भव है !

    
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author

Karan Mishra

करन मिश्रा को प्रारंभ से ही गीत संगीत में काफी रुचि रही है । आपको शायरी एवं कविताएं कहने का भी बहुत शौक है । आपको, अपने निजी जीवन एवं कार्य क्षेत्र में मिले अनुभवों के आधार पर प्रेरणादायक विचार एवं कहानियां लिखना काफी पसंद है । करन अपनी कविताओं एवं विचारों के माध्यम से पाठको, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने की कोशिश करते रहे हैं ।

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