मुंबई महानगर के एक झोपड़पट्टी में शिवानी अपने पिता के साथ रहती थी। उसके पिता काफी दिनों से बीमार चल रहे थे। बीमार पिता के इलाज के पैसे वो बड़ी मुश्किल से जुटा पाती ।
ये बात शिवानी ने मोहल्ले के अन्य प्रभावशाली लोगों से कही मगर वो भी बिल्डर से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहते थे।हार मानकर शिवानी ने पुलिस का दरवाजा खटखटाया मगर अफ़सोस पुलिस तो बिल्डर की ही खिदमतगार निकली, शिवानी को जब कुछ नहीं सूझा तो, वह चारपाई पर मुंह के बल लेट गई, और तकिए पर सर रखकर सामने दीवार पर टंगे अपने पिता के फोटो को निहारने लगी उसकी आंखों से डब-डब आंसू बहने लगे। उसके पीछे तो पहले ही कोई नहीं था।
पिता का सहारा भी चला गया, और फिर अब घर भी छीना जा रहा था अब वह जाए तो कहां जाए, दिन भर रोते रोते शाम को शिवानी अचानक अपना दुपट्टा उठाया और बेसुध होकर घर से निकल पड़ी। आगे जाकर एक बिल्डिंग जिस पर काम अभी चल रहा था। उस बिल्डिंग में सबसे ऊचें माले पर पहुंच गई, वहां पहुंचकर वह अभी बिल्डिंग से छलांग लगाने की सोच ही रही थी, के तभी एक आवाज आई वहां बिल्डिंग में काम कर रहे दो मजदूर फेसबुक पर कुछ पोस्ट पढ़ रहे थे। उसमे से एक ने कहा कि
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