मेरी बेटी मेरा अभिमान | Motivational Story of courageous daughter in hindi


"मेरी बेटी मेरा अभिमान" प्रेरणादायक हिंदी स्टोरी । Motivational Story of courageous daughter in hindi.

  सिंडरेला अपने पिता की लाडली बिटिया थी। वह बहुत खूबसूरत थी। सिंड्रेला की खूबसूरती के चलते सभी लोग उसे को बहुत पसंद करते । सिंड्रेला चूकिं अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। इसलिए भी सिंड्रेला का मान-जान परिवार में काफी था ।

  माँ के गुजर जाने के बाद सिंड्रेला के पिता उसका और ज्यादा ख्याल रखते थे। काम पर जाने से पहले सिंड्रेला को नहलाने-धुलाने और कपड़े पहनाने के साथ-साथ वह उसे अपने हाथों से खाना खिलाते थे। काम से लौटने पर घर आकर सबसे पहले वो अपनी बिटिया को गले लगाते और उसकी फेवरेट चॉकलेट देना उसे नहीं भूलते।

  माँ के जाने के बाद भी बिन माँ की बेटी को माँ की कमी का एहसास उसके पिता ने कभी नहीं होने दिया। उसकी हर छोटी से छोटी ख्वाहिश पिता का सपना बन चुकी थी।

  सिंड्रेला के पिता एक सेठ के वहां नौकरी करते थे । सिंड्रेला जब बड़ी हुई, तो उसकी दोस्ती उस लड़की से हो गई, जिसके वहां सिंड्रेला के पिता नौकरी करते थे। सिंड्रेला की सभी दोस्त उसकी खूबसूरती की तारीफ किए बगैर नहीं रह पाते थे।

  हालांकि सेठ की लड़की भी काफी सुंदर थी। मगर सिंड्रेला के आगे वह कुछ भी नहीं थी। अगर किसी पार्टी में भी सिंड्रेला पहुंच जाती, तो सारे दोस्त उसी के इर्द-गिर्द मंडराते रहते।

  यह बात सेठ की लड़की को जरा भी अच्छी नहीं लगती । वह अब उससे चिढ़ने लगी थी। अब तो अगर कोई उसकी तारीफ भी करता, तो सेठ की बेटी उससे झगड़ उठती, जैसे-जैसे सिंड्रेला बड़ी हुई। वो अपने पिता को समझने लगी। 

  अब वो अपने पिता का बहुत ख्याल रखती। उन्हें बहुत मानती। देर होने पर वह पिता को सेठ के वहां लेने चली आती थी। सेठ भी सिंडरेला को बहुत मानता था। उसके जाने पर उसे कुछ न कुछ उपहार जरूर देता। वैसे भी सेठ बेटियों को बहुत लाड़-प्यार देने वालों में से था।

  वो अपनी बेटी की भी हर इच्छा को सर आंखों पर रखता था। वह उसे कभी भी दुखी नहीं देख सकता था। यद्यपि सेठ उसके पिता को महीने के बहुत थोड़े पैसे ही देता पर उसका पिता काफी जतन से घर चलाता। उसने उन थोड़े ही पैसों में एक छोटा ही सही पर बेटी की तरह ही एक काफी सुंदर घर बना लिया था और उस छोटे से मकान को बिटिया खूब सजा कर रखती, शायद जैसा उसकी मां रखती। अगर वह जिंदा होती।

  एक दिन सेठ ने उसके पिता को घर साफ करने के लिए भेजा। साफ सफाई के दौरान बहुत ही कीमती मछलियों का जार, जो सेठ की बेटी के पसंद पर सेठ ने उसे बाहर से मंगवाया था। अचानक सिंड्रेला के पिता के हाथ से ठोकर लग कर नीचे गिर गया। और देखते ही देखते टूट कर बिखर गया। जार के टूटने के कारण काफी कीमती मछलियां जो जार के अंदर थी एक-एक करके दम तोड़ने लगी।

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  जाड़ के टूटने की आवाज सुनकर सेठ की बेटी भी भागे-भागे बाहर आई। अपना प्यारा जार टूटा देखकर वह जोर जोर से रोने लगी। जब ये बात सेठ को पता चली, तो वह तुरंत अपनी बेटी के पास आकर उसे मनाने लगा। पर उसकी बेटी लगातार रोए जा रही थी।

  जिसके चेहरे पर उदासी सेठ ने कभी बर्दाश्त नहीं की उसे ऐसा बिलखता देख सेठ को बहुत गुस्सा आया। उसने सिंड्रेला के पिता को इसका दोषी माना और उसे 500 कोड़े मारने की सजा सुनाई।

  ऐसा सुनकर वृद्ध पिता के पैरों से जमीन ही खिसक गई। भागे-भागे सेठ के सामने हाथ जोड़ अपनी गलतियों की माफी मांगने लगा। उसने जार के टूटने की सारी कहानी सुनाई और जार टूटना महज एक संयोग था। ऐसा उसने सेठ को समझाने की बहुत कोशिश की।

  मगर बेटी के दुख में अंधे पिता को अपनी बेटी के बहते आंसू के आगे कुछ नहीं सूझ रहा था। सेठ ने अपने लोगों से सिंड्रेला के पिता को बाहर खंबे में बांधने को कहा,  बिचारा पिता जला देने वाली तपतपाती धूप में भूखे प्यासे बांध दिया गया। जैसे ही यह बात और लोगों को पता चली। वो भी वहां तमाशा देखने आने लगे।

  देखते ही देखते सिंड्रेला के पिता को देखने के लिए सारा शहर इकट्ठा हो गया। सब तमाशा देखने को उत्सुक थे। जब ये बात सिंडरेला को पता चली तो बिन मां की बेटी अपने एकलौते सहारे अपने प्राणों से अधिक प्यारे अपने पिता को बचाने वहाँ चली आई और भीड़ को चीरते हुए, सिंड्रेला अपने पिता के सामने खड़ी हुई और चाबुक चलाने वाले का हाथ पकड़ लिया।

   सेठ ने उसे ज़ोर से डाँटा वह भागकर सेठ के पास पहुंची और अपने पिता को माफ करने की सेठ से विनती करने लगी। मगर सेठ इसके लिए बिल्कुल तैयार न थे। वह जानती थी, कि 500 कोड़े उसके बुजुर्ग हो चुके पिता नहीं सहन कर पाएंगे और बीच में ही उसका साथ छोड़कर चले जाएंगे। 

  इसलिए उसने सेठ से कोड़े खुद पर चलाने के लिए कहा, पर सेठ ने उसकी सारी फरियाद न मंजूर कर दी। जब सेठ की बेटी को पता चला कि वो नौकर सिंड्रेला के पिता है, तो उसके मन में सिंड्रेला से बदला लेने की सूझी, उसने सिंड्रेला को बेघर करके शहर से जाने के लिए मजबूर करने की सोची, ताकि शहर में उससे ज्यादा खूबसूरत कोई न हो ।

  सेठ की बेटी ने उससे कहा

  “हम तुम्हारे पिता को छोड़ देंगे पर तुम्हे हमारी एक शर्त मंजूर करनी होगी तुम्हे एक खेल खेलना होगा । अगर तुम जीत जाती हो तो तुम अपने पिता को ले जा सकती हो। अगर तुम असफल रहती हो तो तुम्हारे पिता को ये 500 कोड़े तो पड़ेंगे ही तुम्हें अपना घर भी हमें देना पड़ेगा”

  उसके पिता जानते थे। कि मैं 500 कोड़े सहन नहीं कर पाऊंगा। फिर मेरे मरने के बाद बेटी से उसकी छत भी छिन जाए ऐसा वह नहीं चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपनी बेटी को ऐसी किसी भी खेल में हिस्सा लेने से मना किया । मगर मजबूर बेटी पिता को इस दंड से बचाने के लिए हर दाव मंजूर था।

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  उसने थोड़ा सोचने के बाद सेठ की बेटी को हां बोल दिया। सेठ की बेटी ने झट से अपनी दोनों उंगलियों में से दो रतन जड़ी अंगूठियां निकाली। जिसमें से एक सोने से बनी थी, और दूसरी चांदी से और फिर अपने पर्स को खाली करके उसमें डाल दिया। फिर उसने सिंड्रेला से बोला तुम्हें दोनों में से सोने की अंगूठी निकालनी है।

 “अगर तुमने सही अंगूठी का चयन किया तो तुम इस खेल मे जीत जाओगी और तुम्हारे पिता इस दंड से बच जाएंगे। नहीं तो तुम जानती हो कि फिर क्या होगा”

  सिंडरेला ने पर्स में हाथ डाला और काफी देर तक हाथ डाले रखा। फिर उसका हाथ बाहर आया तो सेठ की बेटी तिलमिला उठी।

  उसने सही अंगूठी निकाली थी। उसके हाथ एक रतन जड़ी सोने की अंगूठी थी। इस प्रकार सिंड्रेला ने अपने पिता के प्राणों की रक्षा की। सिंड्रेला खूबसूरत तो थी ही परन्तु खूबसूरत होने के साथ-साथ वह बहुत समझदार भी थी। उसकी समझदारी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है। कि जब सेठ की बेटी ने दोनों अंगूठियां पर्स में रखी।

  सिंड्रेला ने तभी देख लिया था कि दोनों में से एक अंगूठी जो सोने से बनी है उसमें हीरा जड़ा हुआ है और वह जानती थी की धूप चाहे कितनी भी हो हीरा अपनी शीतलता नहीं खोता है। उसने अपने इसी ज्ञान का फायदा उठाया और उसने पर्स में हाथ डालकर जो अंगूठी गरम नहीं थी। उसको निकाला और इस प्रकार उसे सफलता प्राप्त हुई।

Moral Of The Story :-

Moral of the story - मेरी बेटी मेरा अभिमान | Motivational Story of courageous daughter in hindi

                 

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      author

      Karan Mishra

      करन मिश्रा को प्रारंभ से ही गीत संगीत में काफी रुचि रही है । आपको शायरी एवं कविताएं कहने का भी बहुत शौक है । आपको, अपने निजी जीवन एवं कार्य क्षेत्र में मिले अनुभवों के आधार पर प्रेरणादायक विचार एवं कहानियां लिखना काफी पसंद है । करन अपनी कविताओं एवं विचारों के माध्यम से पाठको, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने की कोशिश करते रहे हैं ।

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