रात को मुकेश और उसके पिता अपने-अपने बिस्तर पर सोने चले गए । अंधेरे कमरे मे दोनो करवटे बदलते रहे नींद दोनो की गायब थी । रंजीत का तो पता नही पर मुकेश अपने पिता के बदले व्यवहार से काफी दुखी था साथ ही कुछ घबराया हुआ था । आखिर मुकेश क्यू घबराया हुआ था और कुछ दिनो से वो शाम को छः बजे क्यों घर लौटता था, जबकि स्कूल की तो शाम चार बजे ही छुट्टी हो जाती थी….
सुबह के दस बज गए, मुकेश के स्कूल का समय हो गया। पर रंजित घर नहीं लौटे, उन्होंने सुबह की दवा भी नही ली । मुकेश पिता को ढूँढने निकला पूरे मोहल्ले मे ढूंढ लिया, पर रंजित का कुछ पता नहीं चला। फिर घबराए मुकेश ने सारा शहर, वो सारी जगह छान मारा जहाँ रंजीत के होने की सम्भावना लगी। थक-हार के घर लौटा तो सामने रंजीत तख्ते पर मायूस बैठे थे। उनके लगातार लम्बी छुट्टियो के कारण उन्हे, नौकरी से निकला जा चुका था, उनके दोस्त का फोन इसी सिलसिले मे आया था । “गरीबी मे आटा गिला” एक तो बीमारियों मे पैसे की जरूरत उपर से पगार भी खत्म। मुकेश को इस बात की आशंका पहले से ही थी, उसने इस चैलेंज को स्वीकार कर लिया था, उसने बताया कि आजकल वो स्कूल के बाद बच्चों को पढाता है।
कॉलेज का पहला दिन जैसे ही निशा अपनी स्कूटी से निकली उसके ठीक पीछे पीछे मुकेश भी निकला निशा आगे-आगे मुकेश पीछे-पीछे निशा ने मुकेश को घर से निकलते हुए तो देखा था पर मुकेश उसके पीछे पीछे चल रहा है। ये वो नहीं जानती थी, जैसे ही उसकी निगाह स्कूटी के साइड मिरर पर पड़ती है। वो मुकेश को देख लेती है, हालांकि मुकेश का उसके पीछे पीछे आना तो महज एक संजोग था। पर निशा उसे कुछ और ही समझ बैठी निशा कॉलेज पहुंचकर सीधे अपने क्लास में चली जाती है। और अपनी आदतों के अनुसार वो क्लास की सबसे पहली सीट पर बैठती है,मुकेश जैसे ही क्लास में घुसता है, उसे देख निशा तमतमा जाती है वह मन ही मन सोचती है। “इसके वालिद को मैंने दो बात क्या कह दी। यह तो मेरे पीछे ही पड़ गया। इसकी हिम्मत तो देखो घर तो घर मेरा पीछा करते करते यहां तक जा पहुंचा अभी इसकी शिकायत प्रिंसिपल सर से करती हूं”
मुकेश निशा को एकटक देखता ही रहता है। मुकेश सोचता है, इससे कहूं या ना कहूं पर चाय की तलब ने मुकेश को बेचैन कर रखा था। वो धीरे से निशा के बगल में बैठता है। जैसे ही कुछ बोलने की सोचता है, बगल किसी की मौजूदगी भाप निशा चौक जाती है। उसके मुख से जोर की चीख निकल जाती है। मुकेश उसके लबो को दबा लेता है, दोनों एक दूसरे की आंखों में आंखें डाले हैं, निशा के मुख को मुकेश के हाथ कसकर दबा रखे हैं। काली घटावो की तरह निशा के केशुवो से टपकता उसके गालों पर पानी मोती की तरह उसके हुस्न में चार चांद लगा रहा है। चौकने से उसकी आंखें काफी बड़ी और नशीली हो गई हैं, उसके भौहें तन गई हैं, मुकेश उसके इस खूबसूरत रूप को देखकर मदहोश हो जाता है। और तभी क्या हुआ कहती हुई, वहां आसमां आ जाती है। मुकेश जल्दी से खंबे के पीछे छुप जाता है। निशा आसमां से कहती है कुछ नहीं हुआ मां बस मुझे लगा कोई बिल्ली बगल से गुजरी है।
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