धन की लालसा मे रिश्तों की डोर हो रही कमजोर प्रेरक कहानी | Hindi Story
माँ “हां बोलो बेटा”
“तुम कहां गई थी, माँ”
“कहीं नहीं मैं तो यही थी तुम सो जाओ”
आराधना के रूप में ज्योति को उसकी नई माँ मिल गई थी । वैसे तो माना जाता है कि सौतेली माँ सौतेली ही होती है । वह कभी भी सगी माँ जैसा प्यार बच्चे को नहीं दे सकती । मगर आराधना ने इस मान्यता को पूरी तरह झूठा साबित कर दिया था ।
ज्योति की माँ के गुजर जाने के बाद उसके पिता को अपनी नन्हीं सी बिटिया की परवरिश की चिंता सताने लगी । ऐसे में उसने सभी मान्यताओं को ताक पर रखते हुए उसके लिए एक दूसरी माँ लाने का फैसला किया । हालांकि वह इस फैसले से काफी डरे-डरे से थे । उनके मन में कई सवाल थे जैसे
“क्या आराधना उसे सगी माँ जैसा प्यार दे पाएगी ?”
“क्या वह उसके जिंदगी में एक माँ की कमी को पूरा कर पाएगी ?”
“कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि जिस ज्योति के लिए वे इतना सब कुछ कर रहे हैं वो एक दिन उसी के राह का कांटा बन जाएगी ?”
इन तमाम सवालों में उलझे हुए ज्योति के पिता ने आखिरकार सभी पुरानी दकियानूसी बातों को दरकिनार करते हुए वह किया जो शायद उनकी अन्तर्मन ने उनसे कहा या जो उनके अंतरात्मा की आवाज थी ।
आराधना के घर में कदम रखते ही ज्योति की जिंदगी में फिर से खुशियां ही खुशियां लौट आई थी । आराधना ने उसे बिल्कुल भी किसी सौतेली माँ जैसा कोई अनुभव होने ही नहीं दिया । वह उसे खूब लाड़-प्यार देती । देखते ही देखते काफी समय गुजर गया ।
आराधना की पड़ोसन और रिश्ते मे उसकी बुआ जो अक्सर उसके घर आया जाया करती थी, एक दिन उससे मिलने उसके घर आयी काफी देर तक उनमें बाते चलती रही कुछ देर बाद बुआ ने कहां
“वैसे तो मै जानती हूँ कि तुमसे कुछ भी कहने का कोई फायदा नही पर फिर भी कह रही हूँ माना कि ज्योति तुम्हारी अपनी बेटी जैसी है पर अपनी तो नही है ना.. . मेरी मान और कम से कम अपनी एक सन्तान तो दुनिया मे ला”
अराधना जानती थी कि उसकी बुआ उसका कभी बुरा नही चाहेगी, आखिर उसे इतने बड़े घर मे बहू बनाकर लाने वाली उसकी बुआ ही तो थी । शाम को पति के घर लौटते ही आराधना बच्चे की जिद्द पर अड़ गई । आराधना ने उन्हें पूरा भरोसा दिलाया कि उसकी कोख से जन्मी संतान और ज्योति में वो किसी प्रकार का कोई भी फर्क नहीं करेंगी । वह ज्योति को तब भी उतना ही प्यार देगी जितना कि वह आज दिया करती है ।
ज्योति के पिता के लाख समझाने पर भी वह नही मानी उल्टे उसने खाना पीना सब छोड़ दिया । आखिरकार ज्योति के पिता को आराधना के जिद्द के आगे झुकना ही पड़ा ।
कुछ ही दिनों में घर के आंगन में नन्ही किलकारियां गूंज उठी । ज्योति को उसका भाई मिल गया था । भाई को पाकर ज्योति बहुत खुश थी । दोनों का सारा दिन साथ ही साथ बितता । वह दिनभर एक दूसरे के साथ खेला करते थे । देखते ही देखते दोनों बच्चे बड़े होने लगे । तभी एक दिन अकस्मात ज्योति के पिता का देहांत हो गया । हालांकि अपने पीछे वे काफी सारा धन छोड़ गए थे ।
ऐसे में उनके जाने के बाद भी पैसे रुपए की कोई खास दिक्कत उन्हे नहीं हुई । सब कुछ ठीक-ठाक ही चल रहा था कि तभी एक दिन आराधना की बुआ ने एकबार फिर उसके मन मे जहर घोलने की कोशिश की, उसने कहा
“मुझे लगता है तुम्हें जल्द से जल्द ज्योति की शादी कर देनी चाहिए”
“पर.. अभी तो वह बहुत छोटी है अभी तो उसके खेलने कूदने की उम्र है, इतनी छोटी सी उम्र में उसका ब्याह करना ठीक नहीं होगा” ऐसा अराधना ने कहा
तब उसकी बुआ बोली
“तुम्हारा सोचना बिल्कुल सही है असल मे तुम बहुत भोली हो परंतु तुम नहीं जानती कि जमाना कितनी तेजी से बदल रहा है तुम्हारा पति भी अब नहीं रहा और तुम यह क्यों भूल जाती हो कि तुम्हारा एक बेटा भी है । जिसका तुम्ही एकमात्र सहारा हो । अगर तुमने ज्योति का विवाह शीघ्र नहीं किया तो आगे चलकर इसके लिए बहुत दान-दहेज की आवश्यकता पड़ेगी । तब तुम क्या करोगी कहां से लाओगी इतना पैसा और अगर इसी पर सारा धन खर्च कर बैठोगी तो अपने लाडले को क्या बिठाकर भीख मंगवाओगी”
बुआ की ऐसी बातों को सुनकर आराधना सोच मे पड़ गई वह उसकी ऐसी बातों का कोई भी जवाब नहीं दे सकी । बुआ के जाने के बाद, दिन-रात आराधना के मन में उसकी कही बातें गूंजती रही । आज पहली बार उसे ज्योति पराई और बेटा अपना लगने लगा था । जैसे जैसे वह बुआ की बातों को गहराई से सोचती गई वैसे-वैसे उसे ज्योति एक बोझ लगने लगी ।
अपने पति द्वारा उसके सर पर थोपा गया । एक ऐसा बोझ जिसे उसके पति ने उसके कन्धे डाल खुद दुनिया से रूकसत हो चला था । एक बोझ अब तो आराधना को ज्योति के ऊपर एक पैसा भी खर्च करना ठीक नहीं लग रहा था । उसे खिलाना पिलाना भी अब आराधना पर भारी पड़ने लगा था । वह अब जल्द से जल्द ज्योति से पिंड छुड़ाना चाहती थी । उसे लगने लगा था कि वह उसके बेटे के हिस्से की संपत्ति खा रही है ।
ऐसे में वह जल्द से जल्द ज्योति को निपटा देना चाहती थी ।
आराधना ज्योति के ब्याह के लिए अधीर एवं उसके एवं प्रति निष्ठुर चुकी थी कि अंधे, लंगड़े, लूले कैस भी लड़के से उसका बस ब्याह करके उससे छुट्टी पा लेना चाहती थी ।
आखिरकार जैसा उसने सोचा था वैसा ही हुआ उसे ज्योति के लिए वर तो मिला पर वह दोनों आंखों से सुर था । ब्याह के बाद विदा होकर जब ज्योति अपने ससुराल पहुंची तो उसे पता भी नहीं था कि उसका पति अंधा है । हालांकि रास्ते भर वह मन ही मन, अपने ससुराल और सपनों के राजकुमार अर्थात अपने पति के विषय में तमाम अच्छी-अच्छी कल्पनाएं गढ़ी जा रही थी । जब ज्योति की डोली उसके ससुराल के दरवाजे पर आकर रुकी तो उसके सामने जो नजारा था वैसा तो उसने या उसके मृत पिता ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा । वहां घर के नाम पर एक छप्पर था ।
वहां पहुंचने के बाद थोड़ी ही देर में उसका दूसरा सपना भी चूर-चूर हो गया । जब उसे पता चला कि उसका पति दोनों आंखों से अंधा है । छोटी सी ज्योति को बहुत ही जोर का झटका लगा था । उसकी माँ आराधना उसके साथ ऐसा करेगी ऐसा तो उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी ।
मगर जो सच को स्वीकार कर लेने में ही भलाई थी । दिन बीतने के साथ ही ज्योति ने सच को स्वीकार करते हुए लिया और इसे ही अपना नसीब मान बैठी साथ ही इस कृत के लिए उसने अपनी माँ को भी माफ कर दिया । अब वह अपने पति के साथ यहां बहुत खुश थी ।
एक दिन जब उसे अपनी माँ की बहुत याद आई । तब उसने अपने पति से मायके जाने का अनुरोध किया पति ने भी सहस्त्र इस बात को स्वीकार कर लिया और वे दोनों माँ से मिलने निकल पड़े । मायके पहुंचकर ज्योति ने दरवाजा खटखटाया मगर उसके काफी प्रयासों के बावजूद दरवाजा नहीं खुला । उसे लगा कि शायद उसकी माँ और उसका भाई घर पर नहीं है । ऐसे में जब उसने आस पड़ोस से पता किया तब उसे पता चला कि नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है । आज सुबह ही उन्होंने दोनों मां-बेटे को घर पर ही देखा है ।
ऐसे में ज्योति ने दोबारा से प्रयास करना चाहा । तभी उसकी नजर दरवाजे के बीच बने सुराख से घर के आंगन मे खड़ी अपनी माँ पर पड़ी जो कमर पर हाथ टिकाए दरवाजे की ओर घुर रही थी, शायद वह ज्योति के बार-बार दरवाजा पिटने और वहां से न जाने से नाराज थी । माँ के ऐसे रवैया को देखकर उसे इतना दुख हुआ जितना कि शायद उसे अपनी शादी के बाद अपने माँ की असलियत को जानकर भी नहीं हुआ था ।
पीछे मुड़कर आंखों में ढेर सारा आंसू लिए हुए ज्योति ने वापस ससुराल लौटने के लिए जैसे ही अपना कदम आगे बढ़ाया, अन्दर से आवाज आई
“जाने कब ये हम माँ-बेटे का पिण्ड छोड़ेगी.. . शादी भी कर दी फिर भी न जाने क्या लेने यहां चली आती है”
इस दिन के बाद ज्योति ने फिर कभी मायके की तरफ रुख नहीं किया ।
वैसे ज्योति का अंधा पति बांसुरी काफी अच्छा बजा लिया करता, उसकी बांसुरी की धुन से मन्त्र मुग्ध होकर लोग उसे पैसे भी देते, परंतु इतने कम पैसो से उनके घर का गुजारा बहुत मुश्किल से हो पाता था ।
एक दिन जब राजा उधर से गुजर रहे थे । तभी ज्योति के पति के बांसुरी की आवाज ने मानो उनके कदमों को जकड़ सा लिया हो । वह उस मनमोहक बांसुरी की धुन को बस सुनते रहे । जब बांसुरी की आवाज उनके कानों तक आना बंद हो गई । तब उन्होंने उस बांसुरी बजाने वाले के बारे पता लगाने को कहा ।
अगले दिन जब ज्योति अपने पति के साथ दरबार में पहुंची तब ज्योति के अंधे पति की कला के लिए राजा ने उसे खूब सराहा और उसे अपने दरबार में स्थान भी दे दिया । इस घटना से अचानक ज्योति की स्थिति में बहुत बड़ा उलटफेर हुआ वह फर्श से अर्श पर पहुंच गई । जहां खाने के लिए घर में एक दाना तक बड़ी मुश्किल से उन्हें नसीब होता, आज वहीं उसे नौकर-चाकर धन दौलत सब कुछ मिल गया था । वह बहुत ऐशो आराम से रहने लगी थी ।
सुखी जीवन मे वापस लौटते ही ज्योति को अपनी माँ और अपने भाई के विषय मे चिंता सताने लगी परंतु वह चाह कर भी अब मायके नहीं जा सकती थी क्योंकि वह बखूबी जान चुकी थी कि उसकी माँ अब उससे किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं रखना चाहती और न ही वह उसे अपने सामने देखना चाहती है । ऐसे में वह अपने मायके जाने की इच्छाओं को हरबार खुद ही कुचल देती ।
उधर आराधना ने एक-एक पाई जिस लाडले के लिए बचा कर रखी थी । उस लाडले की एक दिन अचानक काफी तबीयत बिगड़ गई । काफी इलाज के बाद भी वह ठीक नहीं हो रहा था । तभी पता चला कि उसका लाडला छय रोग से ग्रस्त है । यह सुनते ही आराधना के जमीन से पांव खिसक गए ।
हालांकि आराधना ने हकीम जी के कहे अनुसार लाडले को बचाने के लिए सारे प्रयास किए कर डाले । उसने उसका हर संभव इलाज कराया मगर कोई फायदा नहीं हुआ । एकतरफ जहां उसे अपने बेटे से हाथ धोना पड़ा, वहीं इस लंबी बीमारी के इलाज में आराधना का सब कुछ बिक गया । उसके पास अब रहने को छत तक नही बची थी ।
वैसे आराधना को धन के जाने का बिल्कुल भी गम नहीं था परंतु लाडले से बिछड़ने का गम ने उसे पागल कर दिया वह उसकी याद मे खाना पीना सब भूल गई और उसके लिए दिन रात बस रोती रही । धीरे-धीरे काफी वक्त गुजर गया । आराधना अब भी अपने बेटे को याद करके बस रोती रहती । पेट भरने के लिए उसने इधर-उधर घरों में काम करना शुरू कर दिया था ।
दिन-रात बेटे के गम मे बहे आसूवों ने अराधना के आंखों की रौशनी लगभग छीन ली वह आंधी न होकर भी अंधों के समान हो गई । साफ नहीं दिखाई न देने की वजह से लोगों ने उससे अपने घर का काम करवाना भी बंद कर दिया । अब तो आराधना के सामने बहुत मुश्किल आ खड़ी हुई थी । पेट की आग को बुझाने के लिए उसके पास कोई विकल्प नहीं था ।
एक दिन भटकते-भटकते आराधना एक चरवाहे के पास जा पहुंची । चरवाहे को उसके हाल पर बहुत तरस आया और उसने उसे खेतों से घास लाने का काम दिया और बदले में उसके बदले उसे दो वक्त का खाना देने का वादा किया ।
एक दिन जब आराधना घास के गट्ठर को सर पर उठाए साथ गई बाकी औरतों के साथ खेतो से वापस आ रही थी । तभी रास्ते में ज्योति का घर पड़ा । कुछ भी देखने मे लगभग असमर्थ अराधना ने घर के बाहर खेल रहे ज्योति के बेटे से टकरा गई और उसके साथ-साथ घास का गट्ठर भी बच्चे के ऊपर आ गिर पड़ा । जिसके कारण बच्चे को बहुत चोट आई ।
ऐसे में घर के बाहर खड़े ज्योति के नौकरों, आराधना को बहुत बुरा भला कहने लगे । शोर सुनकर ज्योति घर के बाहर निकली सामने वह आराधना को देखकर चकित सी रह गई । इतने दिनों तक दूर रहने के बाद भी वह अपनी माँ को नहीं भूल सकी थी । माँ को सामने पाते ही उसने नौकरों से शांत रहने एवं वहां से जाने को कहा ज्योति की आवाज आराधना पहचान गई । उसकी आंखों से डब डब आंसू गिरने लगे । तब तक ज्योति आराधना के पास पहुंच चुकी थी और उसने अपनी माँ के आंसू को पोछते हुए अपने बेटे से आराधना को मिलवाया । बेटा भी नानी को पाकर बहुत खुश हुआ ।
ज्योति आराधना को घर के अन्दर ले आई और उसे नहलाने धूलाने के बाद अच्छा भोजन उसे खाने को दिया । थोड़ी देर बाद आराधना सर झुकाकर वहां से बाहर निकलने लगी । तभी ज्योति ने उसका हाथ थाम लिया और बोली
“कहां जा रही हो माँ अब यही तुम्हारा घर है” आराधना उससे कुछ भी नही कह पा रही थी । बस उसकी आंखों से आंसुओं की धार बहे जा रही थी ।
इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है | Moral Of This Inspirational Hindi Story
हमारे अपने ही हमारे लिए सबसे बड़ा धन है । उनसे बड़ा धन इस संसार में दूसरा कोई नहीं है । उनके साथ रहने पर हम बड़े से बड़े दुख से भी उभर सकते हैं जबकि उनके न रहने पर छोटे से छोटा गम भी हम पर भारी पड़ सकता है !
दोस्तों सबसे बड़ा धन हमारे अपने हैं । अगर हमारे अपने हमारे साथ हैं तो हम जिंदगी की बड़ी से बड़ी कठिनाई को भी पार कर सकते हैं जबकि अगर यही हमारे साथ न रहें तो सिर्फ धन के सहारे विपदाओं से नहीं निपटना शायद मुश्किल होगा ।
जिंदगी में सुख-दुख का आना-जाना लगा रहता है । ऐसा कोई नहीं है जिसने पूरे जीवन में सिर्फ सुख ही सुख भोगा हो और दुख उसने कभी न देखा हो दुख और सुख का आना जीवन में दिन और रात की तरह ही है जैसे रात के बाद दिन आता है और दिन के बाद रात वैसे ही सुख और दुख का आना हमारे जीवन में लगातार जारी रहता है ।
ऐसे मैं अगर हम ये सोचते हैं कि हम अपनों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को त्याग कर अपने बोझ को काफी हद तक कर सकेंगे जिससेहमारी प्रगति की राह आसान हो जाएगी तो हां आप बिल्कुल सही हैं ऐसा करके आप वाकई प्रगति के पथ पर और ज्यादा गति से आगे बढ़ सकते हैं परंतु जब मुश्किलें आती हैं तब यही हमारे अपने जो अच्छे वक्त में हमें बोझ जैसे लगते हैं हमारे बुरे वक्त में हमें किसी मजबूत स्तंभ की तरह सहारा प्रदान करते हैं और जिनके सहारे हम अपने बड़े से बड़े गम को भी भूल जाते हैं । उनके साथ हम हंसना सीख लेते हैं । उनके साथ हम चलना सीख लेते हैं ।
धन गया तो कुछ नहीं गया मगर यदि अपने चले गए तो समझो सब कुछ चला गया