मिट्ठू “पापा पार्टी में रसगुल्ला होगा ना ?”
नितिन हंसते हुए “हां बेटा, जरूर होगा”
ऑफिस से घर लौटने के बाद मिट्ठू और उसके पिता नितिन अपने बेटे के साथ पार्टी अटेंड करने जा रहे हैं । मिट्ठू को रसगुल्ले बहुत पसंद है इसलिए वह किसी भी पार्टी में जाने से पहले यह जरूर कंफर्म करता है कि पार्टी में रसगुल्ला होगा या नहीं ।
वैसे मासूम मिट्ठू के इस प्रश्न का उत्तर दे पाना नितिन के लिए हर बार बहुत कठिन होता है परंतु बेटे का मन रखने के लिए नितिन को तुक्का मारना पड़ता हैं जो किस्मत से आज तक कभी बेकार नही गया । पार्टी हॉल में पहुंचने पर पता चलता है कि खाना शुरू हो गया है । नितिन बेटे को अपने दोस्त जीतेंद्र के पास बिठाकर खाना लेने के लिए जाने लगता है परंतु तभी मिट्ठू अपनी छोटी-छोटी उंगलियों को ‘V’ शेप में बनाते हुए नितिन से कहता है “पापा टू”
नितिन जवाब में “ओके” कहता है ।
बाप बेटे की इस अंडरस्टैंडिंग को जीतेंद्र नहीं समझ पा रहा ऐसे में वो नितिन से पूछ बैठता है
“यार, तुम दोनों बाप बेटों का ये सीक्रेट कोड क्या है, जरा मुझे भी बताओगे ?”
तब नितिन हंसकर कहता है
“मिट्ठू को रसगुल्ले बहुत पसंद हैं, वो उसे ही दो लाने को कह रहा है”
यह सुनकर जीतेंद्र हंस पड़ता है और मिट्ठू से बातें करने लगता है । थोड़ी ही देर में नितिन खाने के साथ दो रसगुल्ले लेकर वहां पहुंचता है और अपने हाथों से मिट्ठू को खाना खिलाने लगता है तभी जीतेंद्र उन्हें टोकते हुए कहता है
यार नितिन, जब मिट्ठू को रसगुल्ला बहुत पसंद हैं तो उसे पहले रसगुल्ला खिलाओ, ये तंदूरी, ये दाल-चावल क्यूं खिला रहे हो
नितिन अभी कुछ कहता परंतु तब तक मिट्ठू बोल पड़ता है
अंकल मैं वो सबसे लास्ट में, मजे ले लेकर खाऊंगा
“अच्छा, तो ये बात है , मैं अब समझा”
अपने गालों पर हाथ रखते हुए जितेंद्र आश्चर्यजनक अंदाज में, उससे कहता है ।
थोड़ी ही देर में मिट्ठू, नितिन को अब और खिलाने से मना कर देता है और अब बारी है उसके फेवरेट रसगुल्लों की परंतु आधा रसगुल्ला खाते-खाते ही उसे डकार आ जाती है और फिर किसी तरह वह अपना एक रसगुल्ला ही खत्म कर पाता है । हालांकि नितिन उसे बचा हुआ दूसरा रसगुल्ला खिलाने की बहुत कोशिश करता है परंतु अब वह कुछ भी खाने की स्थिति में नहीं है ।
मिट्ठू की प्रेरणादायक कहानी से शिक्षा
दोस्तों यह रसगुल्ला हमारी जिंदगी का सेलिब्रेशन टाइम है जिसे हम अपने सारे जरूरी कार्यो को निपटाने के बाद करना चाहते हैं मगर दुर्भाग्यवश ए जिम्मेदारियां यह जरूरी कार्य कभी खत्म ही नहीं होती और जब खत्म होते हैं तब सेलिब्रेशन का टाइम ही नहीं रहता सब कुछ भूल हो चुका रहता है ।
दोस्तों सारे कार्यों को निपटाना बहुत जरूरी है जरूरी कार्यों को निपटाना गलत नहीं है मगर बीच-बीच में लाइफ को सेलिब्रेट करना जिंदगी को जीना भी बहुत जरूरी है क्योंकि वरना शायद हम इस सेलिब्रेशन के टाइम को ही वरना हो सकता है कि जिंदगी हमें ऐसा मौका ही ना दें कि हम इसे सेलिब्रेट कर सकें इसीलिए लाइव की जिम्मेदारियों को पूरा करने के साथ-साथ अपनी लाइफ को भी जीना सीखिए !