कोई अयोग्यता योग्यता मे बाधा न बने – प्रेरणादायक कहानी | Inspirational Hindi Story
बहुत पुरानी बात है एक जंगल में एक शेर काफी दिनों से रह रहा था । एक दिन शेर जंगल में नदी के किनारे घूम रहा था । तभी अचानक उसने एक शेरनी को देखा शेर को काफी दिनों से एक दोस्त की तलाश थी । शेर को लगा कि आज उसका इंतजार पूरा हुआ । जैसे ही शेर शेरनी की तरफ बढ़ा शेरनी दहाड़ने लगी ।
शेर ने उसको समझाने की कोशिश की मगर अगले ही पल शेरनी उसके ऊपर झपट पड़ी । शेर को बहुत गुस्सा आया । काफी देर तक दोनों के बीच युद्ध चलता रहा परंतु शेरनी किसी भी हाल में हार नहीं मानने वाली थी । आखिरकार दोनों अब काफी थक चुके थे ।
मगर इस लंबे युद्ध के दौरान शेर को शेरनी काफी पसंद आने लगी थी । उसे शायद ऐसे ही साथी की तलाश थी । जो बिल्कुल उसके जैसा ही तेज तर्रार हो और परिस्थितियों से कभी हार न मानने वाला ।
आखिरकार शेर ने फिर से एक बार शेरनी की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया । शेर ने बार बार दोस्ती का हाथ बढ़ा कर शेरनी को अपने व्यवहार में बदलाव लाने के लिए विवश कर दिया आखिरकार दोनों में दोस्ती हो गई । अब दोनों साथ-साथ रहने लगे । कुछ ही दिनों में शेरनी ने तीन छोटे-छोटे बच्चों को जन्म दिया । तीनों काफी खूबसूरत थे ।
शेर शेरनी से पाए इस सौगात के लिए उसका बहुत शुक्रगुजार था । बच्चे जब भी वक्त पाते शेर से शरारत करने पहुंच जाते हैं शेर नाराज होने के बजाय पिता के फर्ज को निभाते हुए यथासंभव उन्हे बर्दाश्त करता । वक्त के साथ तीनों बच्चे बड़े होने लगे । वैसे तो शेरनी के तीनों बच्चे काफी सुंदर और हिष्टपुष्ट थे परंतु तीसरे बच्चे की पिछली एक टांग जन्म से ही अविकसित थी ।
जिसके कारण उसे अपनी तीन टांगों पर ही काम चलाना पड़ता । इस बात से वह मन ही मन काफी दुखी रहा करता था । शेर के बाकी दोनों बच्चे खेल-खेल में अक्सर एक दूसरे के साथ रेस लगाते थे । तीसरा बच्चा भी उनके साथ दौड़ता परंतु एक टांग के कमजोर होने के नाते वह उनकी बराबरी नहीं कर पाता । जब तक वे दो चक्कर मारकर आ जाते तब तक यह बेचारा अपनी आधी दूरी भी तय नहीं कर पाता ।
ऐसे में उसके अंदर बहुत ही हीनता का भाव पैदा होने लगा परंतु शेर के दोनों बच्चे उसको बार-बार साथ दौड़ने के लिए उत्साहित करते । धीरे-धीरे तीसरे बच्चे को समझ में आ गया कि वह अपने भाईयो जैसा नहीं है वह वो नही कर सकता जो वे कर सकते है सब जानने के बाद भी वह उनके साथ रेस में हिस्सा लिया करता और बार बार उन से आगे निकलने की कोशिश करता धीरे-धीरे बच्चे बड़े होने लगे। अब समय था उनकी ट्रेनिंग का शेर के शिकार पर जाने के बाद शेरनी उन तीनों बच्चों को ट्रेनिंग देना शुरू कर दी । शेर के दो बच्चे तो काफी मन से ट्रेनिंग में हिस्सा लेते परंतु तीसरा बच्चे का मन ट्रेनिंग में बिल्कुल भी नहीं लगता क्योंकि वह तो सिर्फ और सिर्फ तेज दौड़ने चाहता था और उसमें असफलता उसे हर तरफ से निराश और मायूस कर देती है ।
शेरनी को जैसे ही यह बात समझ में आई । उसने बच्चे से कहा
“देखो यह सच है कि तुम अपने दोनो भाईयो की तरह नहीं हो तुम्हारे अंदर जन्म से ही कुछ कमियां है परंतु उनके जिम्मेदार तुम नहीं हो । तुम अपने दोनो भाईयो की तरह तेजी से नहीं भाग सकते परंतु तुम एक बात मत भूलो कि तुम एक शेर हो और तुममे वह सारे गुण हैं । जो एक शेर के अंदर होने चाहिए । तुम्हे निराश होने की बजाय, शिकार करने और दूसरों से लड़ने का अभ्यास करना चाहिए जो वक्त पड़ने पर निश्चित रूप से तुम्हारे काम आएगी । ऐसे निराश बैठने से कोई फायदा नहीं”
शेरनी उसे अपनी बात बार-बार समझाती मगर उसके बच्चे के ऊपर उसकी बातों का जरा भी असर नहीं पड़ता क्योंकि उसे तो सिर्फ और सिर्फ तेज दौड़ने की ललक थी । तेजी से न दौड़ पाने की असफलता उसे और कुछ भी करने से रोक देती । उसका मन किसी भी काम में नहीं लगता ।
शेरनी जब भी उसे शिकार करना या लड़ना सिखाती तब उसका ध्यान अपने दोनों भाइयों साथ उनकी तरह तेजी से दौड़ लगाने मे लगा रहता। बार-बार की असफलता उसे हताश कर देती ।
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ऐसा उसके साथ तकरीबन हर बार होता हालांकि शेरनी उसके मन की स्थिति को समझ रही थी । ऐसे में वह बिना आपा खोय उसे बार-बार युद्ध करना, खुद को बचाने एवं शिकार करने की ट्रेनिंग देने की कोशिश में लगी रहती है । धीरे-धीरे तीनों शेर बड़े हो गए । जिसमें से दोनों ने अपनी ट्रेनिंग भी पूरी कर ली परंतु तीसरे शेर ने अपनी तेज दौड़ने की नाकामी से मिले मायूसी के कारण कुछ भी और नही सीख सका ।
परिवार के बड़ा होने के साथ ही अब उनकी आवश्यकताएं भी बड़ी हो गई । वैसे तो बच्चों के थोड़ा बड़ा होते ही शेरनी, शेर के साथ फिर शिकार पर जाया करती परंतु बच्चों के बड़े हो जाने के कारण अब सिर्फ अपने ब्लॉग पर, उन दोनो के द्वारा पूरे परिवार के लिए भोजन का जुगाड़ कर पाना संभव नहीं हो पा रहा था । ऐसे में अब बच्चे भी उनके साथ भोजन के लिए शिकार की तलाश में उनके साथ जाने लगे परंतु तीसरे बच्चे की शिकार के विषय में योग्यता शून्य होने के नाते शेर शेरनी उसे अपने साथ न ले जाकर उसे वहीं छोड़ जाते है ।
एक दिन तीसरा बच्चा शेर शेरनी और दोनों भाइयों के जाने के बाद जब इधर उधर घूम रहा था । तभी उसका ध्यान दूर पहाड़ी पर पड़ा । इस पहाड़ी पर जाने की उसकी बचपन से इच्छा थी परंतु आज खाली समय में उसने उस पहाड़ी पर जाने की सोची । पहाड़ी पर जाने पर अचानक उसके सामने एक चीता दिखाई दिया । दोनों एक दूसरे को देख कर दहाड़ने लगे ।
चीते को लगा कि यह जवान शेर उसकी जगह छिनना चाहता है । ऐसे में वक्त न गवाते हुए । चीते ने उसके ऊपर हमला बोल दिया । शेर तो फिर भी शेर होता है । ऐसे में दोनों के बीच घमासान युद्ध चलने लगा । मगर हर बार नौजवान शेर चीते से मात खा रहा था । इसका कारण यह था कि उसे युद्ध का कोई अभ्यास नहीं था ।
उसने कभी युद्ध को सीखना ही नहीं चाहा वैसे तो माँ ने हमेशा आत्मरक्षा एवं शिकार के लिए सभी जरूरी पैतरे सिखाने के लिए उसे उत्साहित किया करती परंतु एक पैर के अविकसित होने से भाइयों की तरह तेजी से दौड़ न पाने में असमर्थता उसे मायूस कर देती थी ।
जिसके कारण शेर का मन किसी भी दूसरे काम को सीखने में नहीं लगता आज उसकी यह गलती चीते के सामने उस पर भारी पड़ रही थी । वह बार-बार चीते से मात खा रहा था काफी देर चले युद्ध के बाद शेर को समझ में आ गया कि अगर वह वहां से नहीं भागा तो चीता शायद उसकी जान ही ले लेगा ।
ऐसे में शेर ने उल्टे पांव वहां से भागने की सोची परंतु चीता के सर पर मानो खून सवार हो गया हो वह किसी भी हाल में शेर को वहां से भागने भी नहीं दे रहा था आखिरकार काफी समय तक चले संघर्ष के बाद शेर ने अपनी जान गवा दी ।
Moral Of The Story
हर किसी के अंदर कोई न कोई कमी जरूर होती है परंतु उन कमियों के बावजूद कोई न कोई अच्छाई भी हमारे अंदर जरूर छुपी होती है । हर कोई किसी न किसी कला में जरूर पारंगत होता है । अपने अंदर छुपी प्रतिभा कुछ लोग ही नहीं समझ पाते वहीं कुछ लोग अपने अंदर छुपे टैलेंट को समझ कर भी उसे अनदेखा करते हैं । वह हमेशा ऐसे लक्ष्य की तरफ भागने की कोशिश करते हैं जिसके योग्य वे नही होते है । अपनी उस अयोग्यता के कारण वह इतने फ्रस्टेट हो जाते हैं कि जो कार्य वे सही ढंग से करके उसमें सफलता हासिल कर सकते हैं । उस कार्य को भी वह करने से अक्सर कतराते हैं जबकि ऐसा नहीं है कि हमें जो पसंद है वही हमारे भविष्य का निर्धारण करें हमें अपने पसंद के साथ-साथ अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार ही अपना लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए । दुनिया में कोई जरूरी नहीं कि जिस क्षेत्र को दूसरे लोग अपने भविष्य के लिए चुने हम भी उसी को अपना लक्ष्य बनाएं ।
जरूरत है कि हम अपनी क्षमताओं और अपने अंदर छुपी हुई प्रतिभा को पहचाने और उसके अनुरूप ही अपने लक्ष्य का निर्धारण करें जिसके फलस्वरुप हम अपने भविष्य को बेहतर बना सके, नाकी हम जो कार्य नहीं कर सकते बस उसी का रोना रोते रहें और उसी के पीछे भागते हुए अपना कीमती समय गवां बैठे और एक दिन वक्त का सामना होने पर हमारे पास सिवा पछताने के और कुछ भी ना रह जाए !
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