राजा वीर प्रताप का पुत्र जय सभी विद्याओं में निपुण था । राजा अपने इकलौते पुत्र की युद्ध कौशल में महारत को देखकर काफी प्रसन्न रहते परंतु वक्त के साथ ही उन्हें एक भारी चिंता सताने लगी ।
असल में सर्व गुण संपन्न होने के बावजूद जय मे एक भारी कमी थी । वह युद्ध में जाने से कतराता था हालांकि युद्ध मे न जानी की वजह उसका कोई भय नहीं था बल्कि वह छोटे-मोटे युद्धो मे शामिल होना अपना अपमान समझता है उसे लगता है कि युवराज सिर्फ बड़े युद्धो के लिए बने ऐसे छोटे-मोटे युद्ध लडना सैनिक का काम है । परंतु राजा इस बात को भलीभाँति जानते हैं कि इन्हीं छोटे-छोटे युद्धो को लड़कर ही कोई महान युद्धो बन सकता है सिर्फ़ अभ्यास के बल पर बड़े युद्धो का सामना नही किया जा सकता उसके लिए पर्याप्त अनुभव की भी आवश्यकता होगी जो सिर्फ़ इन छोटे-छोटे युद्धो को लड़कर बड़ी ही आसानी से प्राप्त किया जा सकता है ।
इसलिए वह अपने बेटे को युद्ध लड़ने के लिए बार-बार प्रोत्साहित करते रहते परंतु हर बार वह कोई न कोई बहाना बनाकर युद्ध को टाल जाता है इधर दिन-प्रतिदिन महाराज की तबीयत खराब होती जा रही थी उन्हें राज्य के भविष्य की चिंता सताने लगी ।
एक दिन महाराज ने राजदरबार में राजकुमार को बुलाया और उसे अपने शयनकक्ष में ले गए ।वहां दो अलमारीयां रखी थी जो बिल्कुल खाली थी उनकी तरफ इशारा करते हुए राजा ने राजकुमार से कहा
“देखो पुत्र पड़ोसी राज्य हमारे राज्य पर चढ़ाई करने के लिए काफी उतावला हो रहा है मगर हम भी पीछे हटने वालों में से नहीं मैं चाहता हूँ कि इस युद्ध की कमान तुम संभालो अगर तुम इस युद्ध मे सफलता हासिल करते हो तो मैं तुम्हें इस राज्य का अगला उत्तराधिकारी घोषित करूंगा अन्यथा तुम्हें इन दो अलमारियो, जिसमें से किसी एक मे राजमुकुट रखा होगा, को खोलना होगा । अब ये तुम्हारा नसीब जाने कि तुम जो अलमारी खोलते हो उसमें राजमुकुट है या फिर वह खाली है । अगर वहां राजमुकुट हुआ तो तुम मेरे अगले उत्तराधिकारी होगे अन्यथा राज दरबार के लोग इस राज्य का अगला उत्तराधिकारी चुनेंगे और तब यह राज दरबार पर निर्भर करेगा कि वे राज्य का अगला उत्तराधिकारी तुम्हें चुनते हैं या किसी और को”
वहीं खड़ी रानी स्पष्ट शब्दों में जय से कहती है
“अब देखना ये होगा कि तुम अपना कल, खुद लिखते हो या तुम्हारा नसीब लिखता है”
जय माता पिता की बातों को सुनकर स्तब्ध रह है । वह कई दिनों तक अपने शयनकक्ष से बाहर ही नहीं आता ।
इधर युद्ध मे जाने के लिए सेना तैयार खड़ी है । राजा महल की ओर पलट-पलट कर आशा भरी निगाहों से राजकुमार की राह निहार रहें है परंतु युवराज का कहीं कुछ पता नहीं । बढते वक्त के साथ उनके चेहरे पर निराशा के भाव साफ देखें जा सकते हैं । निराश और हताश राक सेना को युद्ध मे जाने की आज्ञा देने जा रहे तभी कोई उनके चरणों को स्पर्श करता है ।
वह कोई और नहीं उनका बेटा जय है । जो युद्ध में जाने के लिए अपने माता पिता का आशीर्वाद लेने आया है । यह देख के निराश हो चुके राजा का चेहरा खिल उठता है । माता-पिता से आशीर्वाद लेकर जय युद्ध में चला जाता है ।
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वह बहुत ही बहादुरी से दुश्मनो का सामना करता है और अपने कौशल को प्रमाणित करते हुए युद्ध में विजय प्राप्त करता है परंतु लौटते समय उसे एक दुखद घटना का सामना करना पड़ता है । काफी समय से अस्वस्थ चल रहे महाराज का देहांत हो जाता है और अचानक हुई इस दुखद घटना को महारानी झेल नही पाती परिणामस्वरूप उनकी भी मृत्यु हो जाती है । इस खबर को सुनते ही राजकुमार की जीत की खुशी काफूर हो जाती है । वह वहीं बैठ, विलाप करने लगते हैं ।
कई दिनों से शोक में डूबा राजकुमार एक दिन अपने पिता के शयनकक्ष में जाता है तभी उसे पिता की कही बातें याद आती है । जिसमें उसके पिता ने कहा था कि
“यदि तुम युद्ध जीत के आए तो यह राज्य तुम्हारा होगा अन्यथा फिर तुम्हें इन दो अलमारियों में से किसी एक को खोलना होगा, आगे तुम्हारा भाग्य जाने कि उस अलमारी में राजमुकुट है या वह खाली है । यदि अलमारी में राजमुकुट हुआ तो यह राज्य तुम्हारा होगा अन्यथा राजदरबार के लोग ही राज्य का अगला उत्तराधिकारी चुनेंगे” हमारी लेटेस्ट (नई) कहानियों को, Email मे प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें. It’s Free !
वह उन दो अलमारियों में से एक अलमारी को खोलता है संजोग से उसमें राजमुकुट रखा है । वह उसे देखकर अपनी खुशकिस्मती पर मुस्कुराता है वह सोचता है कि अगर उसने युद्ध न भी लड़ा होता तो भी वही उत्तराधिकारी बनता । यही सोचकर वह दूसरी अलमारी भी खोलता है परंतु उसे देखकर वह चौक जाता है क्योकि राजा के कहे अनुसार दूसरी अलमारी खाली होनी चाहिए परंतु ये क्या दूसरी अलमारी में भी एक राजमुकुट रखा है ।
यह सब देखकर राजकुमार अलमारी को पकड़े वहीं नीचे बैठ जाता है और सामने दीवार पर टंगी अपने माता पिता की फोटो को निहारने लगता है । उसकी आंखों से अश्रु की धार बहने लगती है । वह है सोचता है कि उसने युद्ध में जाने से पहले अपने माता-पिता के विषय मे कितना गलत सोचता था कि ये कैसे माता-पिता हैं जो अपने ही बेटे को राज्य का उत्तराधिकारी बनाने के लिए ऐसी अजीब सी शर्त रख रहें हैं लेकिन आज पता चला कि वे कितने सही थे वे आखिर क्या चाहते थे । असल मे वे तो हर मां-बाप की कैसे भी करके, अपने बेटे को सही राह पर लाना चाहते । वे तो बस उसे युद्ध उसे राजा बनाने से पहले इस पद के लिए पूर्णतया परिपक्व बनाना चाहते थे ।
कहानी से शिक्षा | Moral Of This Best Inspirational Story In Hindi
माता पिता अपने बच्चों का हमेशा भला कभी बुरा नहीं चाहते वह उन्हें हमेशा सही रास्ते पर लाना चाहते हैं ताकि उन्हें जिंदगी में आगे चलकर कोई कठिनाई ना हो । कभी कभी वह इसके लिए कुछ कठोर कदम भी उठाते हैं परंतु यह कदम हमेशा हमारी भलाई के लिए होता है । इसके लिए हमें कभी उन्हें गलत नहीं समझना चाहिए !