तभी संयोगवश पेड़ के जड़ों में स्थित मिट्टी का एक छोटा सा ढेला नीचे लुढ़कते-लुढ़कते पत्ते के ठीक ऊपर आ टिकता है और इस प्रकार जाने-अनजाने में वह पत्ते के अस्तित्व को मिटने से बचा लेता है । मिट्टी के ढेले के उपकार के प्रति पत्ते मे कृतज्ञता का भाव उत्पन्न होता है ।
तभी अचानक पत्ता तपाक से ढेले के ऊपर आ जाता है । ढेले के ऊपर पत्ते के आ जाने से वह अब पूरी तरह सुरक्षित है । पत्ता एक छतरी की भांति उसकी रक्षा कर रहा है ।
दोस्त, बरसात तो वैसे कभी-कभार होती है परंतु आंधी और तेज हवाएं अक्सर चलती रहती है । ऐसे में तुम पत्ते की ज्यादा बार मदद करते हो जबकि पत्ता कभी कभार ही तुम्हारे काम आता है । ऐसे में पत्ते को तुम्हारा एहसान मानना चाहिए परंतु पत्ते को ऐसा लगता है कि उसका भी तुम पर बराबर का उपकार है जबकि ऐसा नही है”
(हवा, ढेले से कहता है)
पत्ते और ढेले की कहानी | अभिमान विनाश का कारण है – कहानी से शिक्षा
दूसरो के विचारो को जानना अच्छा है परंतु बिना सोचे समझे उनके कहे अनुसार चलना मूर्खतापूर्ण है । रामायण इसका सबसे बड़ा उदाहरण है । जिसमे मन्थरा की बातो मे आकर कैकयी ने, न सिर्फ अपना बल्कि समस्त अयोध्यावासीय का भविष्य अंधकार मे डाल दिया ।