खुशहालपुर गांव के एक छोटे से मंदिर में दुर्गा प्रसाद नाम के एक पुजारी रहा करते थे दुर्गा प्रसाद एक सिद्ध पुरुष थे । उनके ज्ञान के बारे में दूर-दूर तक चर्चा थी जिसके कारण काफी दूर-दूर से लोग उनसे मिलने एवं उनका आशीर्वाद प्राप्त करने आते ।
पुजारी बाबा सुबह के चार बजे ही उठ जाते हैं । वे मंदिर की साफ सफाई से लेकर लगभग सभी जरूरी काम स्वयं करते । एक दिन सामने से आवाज आई
“बाबा हमें भी प्रसाद मिलेगा”
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स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित अत्यंत सुंदर महिला बाबा के सामने हाथ फैलाए खड़ी थी उसे देखकर बाबा ने मुस्कुराते हुए कहा
“क्यों नहीं बच्चा, प्रसाद तो सबको मिलना चाहिए तो तुम्हें क्यों नहीं लो तुम भी प्रसाद ग्रहण करो”
तभी अचानक किसी ने प्रसाद दे रहे बाबा का हाथ पकड़ लिया बाबा ने पलट कर देखा तो वह गांव की धोबन थी बाबा ने मुस्कुराते हुए धोबन से पूछा
“क्या बात है ? तुम मुझे प्रसाद देने से क्यों रोक रही हो ?”
तब धोबन ने कहां
“क्या कर रहे हैं बाबा यह कैसा अनर्थ कर रहे हैं”
बाबा बोले
“प्रसाद देने में अनर्थ कैसा, प्रसाद पर तो सबका हक है”
तब धोबन ने कहा
“आप जानते भी हैं ये महिला कितने घरों का नाश कर के बैठी है और अब आई है यहां प्रसाद लेने इसके ऊपर तो वही कहावत बैठती है कि नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली”
बाबा ने कहा
“ऐसे किसी का अपमान करना उचित नहीं है तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए”
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तब धोबन ने कहा
“बाबा आप नही जानते ये कोई आम महिला नहीं है ये तो एक वेश्या है वेश्या”
यह सुनते ही बाबा के हाथ से प्रसाद की थाली नीचे गिर गई वह वहां एक पल भी न रुकते हुए दौड़े-दौड़े स्नान गृह की और भागे प्रसाद न पाकर भी महिला को कोई दुख नहीं हुआ उसने फर्श पर बाबा के चरणों के बने छाप को अपने पल्लू से छू कर उसे माथे पर लगाया और चुपचाप वहां से चली गई परंतु उसका मंदिर में आना निरंतर जारी रहा ।
वह रोज सुबह अपनी लग्जरी गाड़ी से काफी सज धज कर मंदिर आती ईश्वर के सामने मत्था टेकती हालांकि वह अब बाबा के पास नहीं जाती बल्कि दूर से ही उन्हें प्रणाम कर लेती परंतु जब भी वह बाबा को प्रणाम करती तब वे अत्यंत क्रोधित होकर इधर उधर देखने लगते परंतु महिला फिर भी अपना कर्तव्य कभी नहीं भूलती वह जानती थी कि उसने अपना जीवन संवारने के लिए जाने कितने घरों का विनाश कर दिया है । ऐसे मे उनके द्वारा उसे घृणा की दृष्टि से देखना उचित है ।
यही सोचकर वह बाबा के प्रति अपार श्रद्धा और प्रेम का भाव रखती वह जानती थी कि बाबा ने न जाने कितने लोगों का कल्याण किया है वह हमेशा हर किसी के लिए अच्छी भावना रखते है और सबका भला ही चाहते है इसलिए उसे बाबा से ये उम्मीद थी कि एक न एक दिन बाबा उसकी मजबूरियों को समझेंगे और उसे भी अपना आशीर्वाद प्रदान करेंगे ।
परंतु समय के साथ बाबा का क्रोध उस महिला के प्रति कम होने की बजाय बढ़ता ही चला गया । एक दिन बाबा की नजर उस महिला के ठाट-बाट पर पड़ी तब मन-ही-मन बाबा ने सोचा यह देखो ईश्वर का ये कैसा न्याय, एक तरफ यह महिला न जाने कितने घरों का नाश करके बैठी है परंतु फिर भी ईश्वर की कृपा से इसके पास गाड़ी, बंगला, स्वर्ण आभूषण और वह सब कुछ है जो जीवन को सुखदमय बना सकता है ।
वही मुझे देखो मैं कठोर से कठोर तप करता हूँ यज्ञ करता हूँ हर किसी का भला करने की कोशिश करता हूँ मगर फिर भी मेरे हाथ खाली हैं न तो मेरे पास गाड़ी है और न ही मेरे पास कोई बंगला है ले देकर बस यही मंदिर है अगर यह मंदिर न होता तो मेरे सर पर छत भी न होती । पहनने को सिर्फ यही फटी पुरानी धोती और रुखा-सूखा भोजन है । बाबा इन बातों को सोच-सोच कर काफी दुखी रहा करते थे ।
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एक दिन जब बाबा मंदिर में कथा बाच रहे थे उसी समय अन्य लोगों के साथ ही वह महिला भी वहां बैठकर कथा सुन रही थी तभी जीर्ण हो चुकी मंदिर की छत अचानक नीचे गिर गई और छत में दबकर वहां बैठे काफी लोग घायल हो गए जिसमें बाबा सहित कई लोगों की जान भी चली गई उन कई लोगों में वह महिला भी थी ।
उनकी मृत्यु के पश्चात यमराज उन्हें लेकर स्वर्ग के द्वार पहुंचे यमराज ने महिला को स्वर्ग में जाने को कहा यह देख कर बाबा काफी आश्चर्यचकित हुए थोड़ी देर बाद यमराज ने बाबा को नरक की तरफ इशारा करते हुए उन्हें वहां जाने को कहा बाबा यह देखकर अति क्रोधित हुए और यमराज से पूछ बैठे
“तुम्हारा यह कैसा न्याय है एक तरफ वह महिला जिसने आज तक सिर्फ पाप ही पाप किया है उसे तुम स्वर्ग में स्थान दे रहे हो जब कि मैंने हर किसी का भला ही चाहा है परंतु तुम मुझे नर्क भेजना चाहते हो तब यमराज ने कहा “आपकी बात सही है असल मे आप दोनों ने अपने-अपने जीवन यापन के लिए अलग-अलग मार्ग चुना जहां आपने मंदिर के पुजारी का कर्तव्य निभाया वहीं उसने एक वैश्या का रूप धारण किया । परंतु वह वैश्या होकर भी हर किसी के प्रति अच्छी भावना रखने वाली थी वहीं आप लोगों के प्रति घृणा का भाव रखते थे जिसके परिणामस्वरूप उसके लिए स्वर्ग के द्वार खुले हैं वहीं आपको नरक जाना पड़ रहा है ।
कहानी से शिक्षा | Moral Of This Best Inspirational Story In Hindi
ईश्वर हमारे सभी कर्मों का ज्ञान रखता है एक तरफ यदि वह हमारे अच्छे कर्मों का अच्छा फल देता है तो वही हमारे द्वारा किए गए बुरे कार्यों का बुरा परिणाम भी हमें अवश्य दिखाता है इसीलिए सच्ची भक्ति सच्चे मन में निहित है बुरी सोच रखने वालों को एक न एक दिन बुरा परिणाम भोगना ही पड़ता है !
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