फेसबुक को बनाया हथियार | Fight For Right Inspirational Story In Hindi

    मुंबई महानगर के एक झोपड़पट्टी में शिवानी अपने पिता के साथ रहती थी। उसके पिता काफी दिनों से बीमार चल रहे थे। बीमार पिता के इलाज के पैसे वो बड़ी मुश्किल से जुटा पाती ।

 चूंकि शिवानी बहुत ज्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं थी, पर अपनी थोड़ी बहुत योग्यता के आधार पर पास के ही एक नर्सरी स्कूल में वह टीचर की नौकरी करती थी। उसे जो थोड़े बहुत पैसे मिलते उससें दो जुन की रोटी का बंदोबस्त कर पाना ही बड़ा मुश्किल होता था। फिर पिता का इलाज ठीक ढंग से वह कैसे करा पाती।

    इलाज के अभाव में एक दिन शिवानी के पिता हमेशा के लिए चीर निंद्रा में सो गए। पिता के जाने के बाद शिवानी दुनिया में पूरी तरह अकेली हो गई। शिवानी पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, अभी वह खुद को संभाल पाती की तभी शिवानी के घर के बगल वाली जमीन किसी बिल्डर ने खरीद ली, और उसमे इमारत खड़ा करने लगा।

     बिल्डर को जैसे ही पता चला कि शिवानी बिल्कुल अकेली है। उसकी नजरें शिवानी की छोटी सी जमीन के प्रति टेढी होने लगी, बिल्डर शिवानी की जमीन को भी अपने जमीन से मिला कर अपने जमीन का एरिया बढ़ाना चाहता था। जिससे वह और ज्यादा पैसे कमा सकें।

    एक दिन शिवानी घर में खाना पका रही थी। तभी वह बिल्डर शिवानी के घर में दाखिल हुआ और सीधे अपने गुंडों के साथ शिवानी के पास आ धमका, शिवानी सहम गई। शिवानी से बड़ी ही बत्तमीजी से पेश आने लगा उसने शिवानी को अपनी जमीन उसे बेचने को कहा बिल्डर शिवानी को जमीन के बदले जो पैसे अदा कर रहा था वह बहुत ही कम थे।

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    शिवानी इतनी डर गई थी। कि उसकी आवाज ही नहीं निकल पा रही थी। वो कुछ कहना चाह रही थी मगर उसके कन्ठो को मानो किसी ने जोर से दबा रखा हो, और आवाज बाहर ही नहीं निकल पा रही हो, उस दिन के बाद बिल्डर आए दिन शिवानी को परेशान करने लगा, उसे धमकाने लगा।

    ये बात शिवानी ने मोहल्ले के अन्य प्रभावशाली लोगों से कही मगर वो भी बिल्डर से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहते थे।हार मानकर शिवानी ने पुलिस का दरवाजा खटखटाया मगर अफ़सोस पुलिस तो बिल्डर की ही खिदमतगार निकली, शिवानी को जब कुछ नहीं सूझा तो, वह चारपाई पर मुंह के बल लेट गई, और तकिए पर सर रखकर सामने दीवार पर टंगे अपने पिता के फोटो को निहारने लगी उसकी आंखों से डब-डब आंसू बहने लगे। उसके पीछे तो पहले ही कोई नहीं था।

      पिता का सहारा भी चला गया, और फिर अब घर भी छीना जा रहा था अब वह जाए तो कहां जाए, दिन भर रोते रोते शाम को शिवानी अचानक अपना दुपट्टा उठाया और बेसुध होकर घर से निकल पड़ी। आगे जाकर एक बिल्डिंग जिस पर काम अभी चल रहा था। उस बिल्डिंग में सबसे ऊचें माले पर पहुंच गई, वहां पहुंचकर वह अभी बिल्डिंग से छलांग लगाने की सोच ही रही थी, के तभी एक आवाज आई वहां बिल्डिंग में काम कर रहे दो मजदूर फेसबुक पर कुछ पोस्ट पढ़ रहे थे। उसमे से एक ने कहा कि

  “यार सोनू फेसबुक से हमें भी अपनी मन की बात सबसे कहने का मौका मिल गया वरना हमें सुनने वाला कौन था”

    उन मजदूरों की बात शिवानी पर असर कर गई। उसके चेहरे पर अचानक आशा और उम्मीद की नई किरण दिखाई देने लगी। वह झट से वहां से मुड़ी और घर की तरफ चल दी। घर जाकर उसने पिता का संदूक खोला, पिता ने शिवानी के लिए दो सोने के कंगन खरीद रखे थे। शिवानी के लिए शादी से ज्यादा जरूरी अपने सर पर छत को बचाना था।

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    वो उन दोनों कंगन को लेकर पास की ज्वैलरी शॉप पर गई, वहां उसने दोनो कंगनों को बेच दिया। और फौरन थोड़ी दूर पर एक कंप्यूटर विक्रेता की दुकान से एक लैपटॉप खरीद ली।

    घर आकर उसने अपने एक दोस्त से मिली जानकारी से अपना एक फेसबुक अकाउंट बनाया धीरे-धीरे वह इस  अकाउंट मे बहुत से लोगों को जोड़ ली और कई ग्रुप से भी जुड़ गई, उसने यह सतर्कता बरती की उससे जुड़े अधिकांश लोगों व ग्रुप वही मुंबई शहर से ताल्लुक रखते थे।

    फिर उसने अपनी बिल्डर द्वारा उस पर की जा रही ज्यादतियो को फेसबुक पर शेयर करना और मदद की अपील करना शुरु कर दिया। उधर बिल्डर का दबाव भी बढ़ने लगा। मगर शिवानी अब डरने वाली नहीं थी। उसने तो बस जीतने की ठान ली थी। धीरे धीरे सोशल मीडिया पर शिवानी को सपोर्ट करने वालों की संख्या बढ़ने लगी, लोग उसकी पोस्ट को शेयर करने लगे। बात इतनी हाईलाइट हो गई थी, कि पुलिस के आला अफसरों पर दबाव पड़ने लगा।

    आखिरकार बिल्डर को शिवानी से अपनी ज्यादतियो की माफी मांगनी पड़ी, शिवानी अपने सर की छत को बचाने में कामयाब हुई।

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      Karan Mishra

      करन मिश्रा को प्रारंभ से ही गीत संगीत में काफी रुचि रही है । आपको शायरी एवं कविताएं कहने का भी बहुत शौक है । आपको, अपने निजी जीवन एवं कार्य क्षेत्र में मिले अनुभवों के आधार पर प्रेरणादायक विचार एवं कहानियां लिखना काफी पसंद है । करन अपनी कविताओं एवं विचारों के माध्यम से पाठको, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने की कोशिश करते रहे हैं ।

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